Friday, 9 May 2008

तुम्हारा घर जलाना चाहता हूँ .....

गिरगिट ’अहमदाबादी’ जी की एक गज़ल स्म्रूति से दे रहा हूँ , कितनी सस्ती है इसका फ़ैसला आप खुद करें । कुछ बरस पहले एक मुशायरे में सुनी थी, यदि गलती हो तो सुधारें :


अंधेरे को मिटाना चाहता हूँ
तुम्हारा घर जलाना चाहता हूँ

मै अब के साल कुरबानी करूँगा
कोई बकरा चुराना चाहता हूँ

नई बेगम ने ठुकराया है जब से
पुरानी को मनाना चाहता हूँ

और अंत में मेरा सब से पसंदीदा शेर :

मेरा धँधा है कब्रें खोदने का
तुम्हारे काम आना चाहता हूँ


11 comments:

अनूप शुक्ल said...

मेरा धँधा है कब्रें खोदने का
तुम्हारे काम आना चाहता हूँ

नेक इरादे हैं।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

kamaal hai anoop saahab!aapakaa pasnadeedaa sher aaj se meraa bhee pasanadeedaa thaharaa

Yunus Khan said...

पंकज मलिक अपने फेवरेट हैं ।
हमारे पास उनकी महिषासुर मर्दिनी वाली रिकॉर्डिंग है
जो कलकत्‍ता रेडियो पर वो हर साल लाइव गाते थे ।
और हां पंकज मलिक के कुछ गाने हम भी लाएंगे ।
शुक्रिया इस गीत के लिए ।

डॉ .अनुराग said...

मेरा धँधा है कब्रें खोदने का
तुम्हारे काम आना चाहता हूँ
hamara bhi yahi pasandida hai....

VIMAL VERMA said...

अरे ये यूनुस जी का कमेन्ट समझ में आया नहीं...शायद मीत के लिखा था चढ़ गया सस्ते शेर पर....पर आज का शेर नायाब है मज़ा आ गया पढ़ कर...बहुत बहुत शुक्रिया

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अरे ...ये क्या अनूप दा :-)
ये आपका फेवरीट शेर है ?
तौबा !!;-))
- लावण्या

अनूप भार्गव said...

युनुस भाई:
कहीं पे निगाहें , कहीं पे निशाना ... :-)

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

मेरा धँधा है कब्रें खोदने का
तुम्हारे काम आना चाहता हूँ
इरादा बहुत नेक है भाई! किसी से कही की इसे ले जाकर संसद के पटल पर चिपका आए.

दीपक said...

गजब है अनुप जी !! उस पर इष्ट जी का मशिवरा और गजब है !

आप खुश रहे आप आबाद रहे
चाहे अमेरिका रहे या अहमदाबाद रहे

Aalamgir said...

Last wala misra Satic baithega Hamare Netaoo pe

Aalamgir said...

Last wala misra Satic baithega Hamare Netaoo pe