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पिस्टल से आम तोड़ दें, निशाना अचूक था,
पर आ गिरी बटेर, क्या ग़ज़ब का फ्लूक था.
हम समझे थे सड़क पे सिक्का पड़ा हुआ है
नज़दीक जाके देखा, तो बेग़म का थूक था।
-विजय चित्रकूटवी
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2 comments:
vah..vaahi se aapki kamar kootne ka man kar raha hai bhai log ka chitrakootvi ji!
भाई, 'कूतने' या 'कूटने' की बात कर रहे हो. अगर कूटने की बात है तो मैं डर गया. हालांकि ग़ालिब का इक शेर कमर के ताआलुक से है इसलिए ज्यादा नर्वस नहीं हो रहा हूँ. अगर बात कूतने से है तो मैं हाजिर हूँ. बताइये, कब और कहाँ पहुँचना है बचपन की पट्टी और मीटर लेकर ..हा हा हा!
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