भाइयो, अबकी गीदडभभकी नहीं; दुर्घटनावश मंहगा शेर हो गया है क्योकि भाई रवीश के बाद अब रवि रतलामी भी हमारे दीदा-ओ- दाद-ए-परवर हैं. उनसे हमारा पिछले जन्म (ब्लॉग से पूर्व) का नाता नहीं है.
शेर मर्ज़ किया है के-
अभी देहली में आके हम पूरा इक ड्रम पी जावैंगे,
फिर उगने 'भास्कर' तक पूरा 'हिन्दुस्तान' देखेगा।
-विजय ड्रमसोखवी। (ऋषि अगस्त्य का वंशज हूँ. हाँ!)
इरफ़ान भाई, ५ बोतल पीके ट्राई किया है. कम हो गया है तो बताइए. और २-४ लीटर और जमा लूँ.
आखिर को शेर सस्ता ही निकला. लाहौल विला कुव्वत!
Friday, 2 May 2008
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2 comments:
विजयभाई, आपने मेरी बात का मान रखा, ऐसी ही उम्मीद थी. आप पर ड्रमको (पढें हमको) बहुत नाज़ है.
दिल्ली के गटर में बड़ी आग बा.....
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