Friday 1 February 2008


इस मर्तबा पेश-ए-खिदमत है एक क्लासिक शेर-

उचक रहा है चिड़ीमार, बांस छोटा है
ये साजिशें हैं फ़कत मेरे आशियाँ के लिए।


(ये शेर मरहूम बाक़माल अदाकार बलराज साहनी साहब ने अपनी आत्मकथा में इस्तेमाल फ़रमाया है. हमने यहाँ इस्तेमाल फ़रमाया. कोई उज्र?)

3 comments:

Ashok Pande said...

हमें कोई उज्र ना हैगा. हम तो जे रिक्वेस्ट करते हैं कि और लाओ और लाओ. उम्दा शेर है साहब. साधुवाद! साधुवाद!!

मुनीश ( munish ) said...

aji aap is shayri ke azemmoshan markaz ko naye uroj ya urooz ,jo bhi hai, pe le ja raye hain so isme bhala kya uzra? chaloo rahiye!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

dono bandhuon ko farshee salaam!