प्रसिद्ध हास्य कवि स्व काका हाथरसी की ये ग़ज़ल सुनें वैसे तो इसमें भी बच्चे हैं पर वे मेहबूबा के न होकर अपनी ही सगी वाली पत्नी के हैं
हमीं से पूछती हैं भाव चीनी और चावल के
पता उनको नहीं कुछ आठ बच्चों की मदर होकर
घटापा चल रहा अपना, मुटापा बढ़ रहा उनका
कुचल देंगें मेरी सैकिल, किसी दिन ट्रेक्टर होकर
2 comments:
शुरू मे दीखतीं थी खूबसूरत ग़जल फॉर्म में
अब रह गईं हैं वो खालिस फिलर का मैटर हो कर
vaaah!! VAAAAAAAAAAh!!
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