Friday 8 February 2008

पता उनको नहीं कुछ आठ बच्‍चों की मदर होकर

प्रसिद्ध हास्‍य कवि स्‍व काका हाथरसी की ये ग़ज़ल सुनें वैसे तो इसमें भी बच्‍चे हैं पर वे मेहबूबा के न होकर अपनी ही सगी वाली पत्‍नी के हैं

हमीं से पूछती हैं भाव चीनी और चावल के

पता उनको नहीं कुछ आठ बच्‍चों की मदर होकर

घटापा चल रहा अपना, मुटापा बढ़ रहा उनका

कुचल देंगें मेरी सैकिल, किसी दिन ट्रेक्‍टर होकर

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

शुरू मे दीखतीं थी खूबसूरत ग़जल फॉर्म में
अब रह गईं हैं वो खालिस फिलर का मैटर हो कर

मुनीश ( munish ) said...

vaaah!! VAAAAAAAAAAh!!