Thursday, 21 February 2008

मैं और मेरी 'कवीता ' !

यह मेरा कलुषित काव्यकर्म जो आज गर्हित और त्याज्य है/
कल कू ये एक 'वाद' बने ये भी सहज संभाव्य है.!!

इत्यलम अर्थात इत्ता ही भोत है !

2 comments:

इरफ़ान said...

लैचड्य और कैचड्यवाद के प्रणेताओं को प्रणाम.

इरफ़ान said...
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