Friday, 29 February 2008

वो बोली ''मैं रही रदीफ सी ज्‍यों की त्‍यों ''

मित्रों आपको कोई जवानी की प्रेमिका कभी अधेड़ावस्‍था में मिली है । हमें  मिली तो श्रीमती सरोज व्‍यास का शेर पेल गई । क्‍यों, दरअस्‍ल में वे तो वैसी की वैसी ही नजर आ रहीं थीं ( जय हो ब्‍यूटी पार्लर) जैसी हमें जवानी में मिलीं थीं मगर हम तो उस अवस्‍था का अंश भी नहीं बचे थे । और इसीलिये वो शेर कह गईं कि

ये है मौसमों का कोई असर, या ग़ज़ल का कोई निज़ाम है

मैं रही रदीफ़ सी ज्‍यूं की त्‍यूं, तुम्‍हीं काफि़ये से बदल गए