Tuesday, 19 February 2008

चलिये आज कुछ चप्‍पलें खाने की बात करें आपने खाईं हैं कि नहीं पर इन्‍होंने तो खार्इं हैं नहीं तो खुद ही देख लें

चप्‍पलें खाना भी एक प्रकार का पुण्‍य का ही काम हैं क्‍योंकि वो प्रमिका के पैरों की चप्‍पलें होती हैं जिसके पैरों के नीचे आपके आने वाले बच्‍चों की जन्‍नतें हो सकती हैं अगर आपने आज चप्‍पलें खालीं तो । ये महाशय भी चप्‍पलें ही खा रहे हैं
आशिकी में चप्‍पलें खाने का भी इक पुण्‍य है
जो मज़ा उसमें है मिलता वो मज़ा तो दिव्‍य है
हाय चप्‍पल वो सनम की जो भिड़ीं गोबर में थीं
स्‍वाद के आगे पिटाई का गुनह भी क्षम्‍य है



2 comments:

मुनीश ( munish ) said...

chitra bhi mast hai mitra, vaaah.

इरफ़ान said...

कमाल कर दिया मित्र. मज़ा दिव्य रहा आया है.