Monday 18 February 2008

तेरे इंतजार में मेरे प्यारे

फरवरी का महीना घुमक्कड़ी के नाम पे लिख गया है.
इस बीच ढेर सारा साहित्य ट्रकों के पीछे दिख गया है.
भाइयों और भैनों!मैं एक छोटे से गाम का कबाड़ी दिल्ली में किताबॉं का मेला देखने गया था .मेला भी खूब देखा और झेला भी खूब. एक ट्रक के पीछे दिक्खा एक शेर भौत बोफ्फाइन लगा मिजको . उसको हियां पै पेश कर रिया हूं.भाई लोग बुरा ना मान जाएं इसलिए डर भी रिया हूं.चलो जी एडवांस में माफी-'खेर', लो जी 'सेर' -अब काहे की देर-
बागों में मोरनी पूछे , चौराहे पर पूछे सिपाही
बोम्बे में एसवरिया पूछे ७९११ क्यों नहीं आई.

2 comments:

इरफ़ान said...

भौत बढिया. बौफ्फाइन.

मुनीश ( munish ) said...

aate raho yar. mast baat hai!