फरवरी का महीना घुमक्कड़ी के नाम पे लिख गया है.
इस बीच ढेर सारा साहित्य ट्रकों के पीछे दिख गया है.
भाइयों और भैनों!मैं एक छोटे से गाम का कबाड़ी दिल्ली में किताबॉं का मेला देखने गया था .मेला भी खूब देखा और झेला भी खूब. एक ट्रक के पीछे दिक्खा एक शेर भौत बोफ्फाइन लगा मिजको . उसको हियां पै पेश कर रिया हूं.भाई लोग बुरा ना मान जाएं इसलिए डर भी रिया हूं.चलो जी एडवांस में माफी-'खेर', लो जी 'सेर' -अब काहे की देर-
बागों में मोरनी पूछे , चौराहे पर पूछे सिपाही
बोम्बे में एसवरिया पूछे ७९११ क्यों नहीं आई.
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2 comments:
भौत बढिया. बौफ्फाइन.
aate raho yar. mast baat hai!
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