Thursday, 21 February 2008

गुजिश्ता पखवाड़े भर से नुक्कड़ के मैखाने में बलानोशी फरमा रहा था. दिमाग़ उड़नखटोला हो रहा है.इसी हालत में एक शेर पकड़ लाया हूँ- इसे 'सस्ता शेर' में अब तक बोतलों की फोटुएँ दिखा-दिखा कर दारू से तर शेरों के एक्शन का रिएक्शन समझा जाए- अलबत्ता ये शेर कहने वाला अब भी मैखाने के मैनेजर से बहस फंसाये हुए है-

शहंशाह-ए-शेर है कि-

अब तो उतनी भी नहीं मिलती है तेरे मैखाने में

जितनी हम कभी छोड़ दिया करते थे पैमाने में.

No comments: