चप्पलें खाना भी एक प्रकार का पुण्य का ही काम हैं क्योंकि वो प्रमिका के पैरों की चप्पलें होती हैं जिसके पैरों के नीचे आपके आने वाले बच्चों की जन्नतें हो सकती हैं अगर आपने आज चप्पलें खालीं तो । ये महाशय भी चप्पलें ही खा रहे हैं
आशिकी में चप्पलें खाने का भी इक पुण्य है
जो मज़ा उसमें है मिलता वो मज़ा तो दिव्य है
हाय चप्पल वो सनम की जो भिड़ीं गोबर में थीं
स्वाद के आगे पिटाई का गुनह भी क्षम्य है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
chitra bhi mast hai mitra, vaaah.
कमाल कर दिया मित्र. मज़ा दिव्य रहा आया है.
Post a Comment