मुहब्बत भी बड़ी अजीब चीज़ होती है लोग कहते हैं कि मैं उससे मुहब्बत करता था पर कह नहीं पाया यो शर्म में ही रह गया । मगर उम्र शर्म थोड़े ही देखती है आपकी शर्म ही शर्म में उसके बच्चे आकर आपको मामा भी कह जाते हैं । वरिष्ठ कवि आदरणीय प्रदीप जी चौबे की ये ग़ज़ल तो ये ही कहती है
ग़रीबों का बहुत कम हो गया है वेट क्या कीजे
अमीरों का निकलता आ रहा है पेट क्या कीजे
हमें जिससे मुहब्बत थी उसे अब चार बच्चे हैं
तकल्लुफ़ में बिरादर हो गए हम लेट क्या कीजे
4 comments:
ये चार लाइन मेरी भी
बिलोगों ने किया माइन्ड सब अपसेट क्या कीजे
कि वो इस्पाइसी से हो गई इस्ट्रेट क्या कीजे
ये चौदह फरवरी जो आयेगी क्या खाक कल्लेगी
हमें है इश्क उनको हो गई है हेट क्या कीजे
अब क्या ख़ाक कीजे ? जिन्हें जो करना था वो कर गये. आप तो अब बस सर को धुन लीजे.
मस्त कर दिया, अहा हम भी लेट हो गये तो क्या कीजे।
ये गाडी तो छूट गई अब वेटिंग रूम की राह पकज लीजे ।
अच्छा और सस्ता
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