पिछले दिनों सस्ता शेर के दो नये शायरों भाई विजयशंकर और भाई पंकज सुबीर ने क़ाबिले तारीफ़ बल्लेबाज़ी करके मुझे क़ायल कर दिया। मैं उन दिनों बहुत रेगुलर नहीं था और उनके लिखे पर वक़्त से दाद न भेज सका.
पेश हैं ये चंद लाइनें हमारे इन्हीं दो रणबाँकुरों के लिये-
मरीज़े इश्क़ का क्या है जिया जिया जिया न जिया
बस एक साँस का मसला है लिया लिया लिया न लिया
हमारे नाम से आया है जाम महफ़िल में
ये और बात है हमने पिया पिया पिया पिया न पिया.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
शेर "इरफ़ान" का मैं ने पढ़ा, क़ायल भी हुआ
दाद क्या चीज़ है यारो, दिया, दिया न दिया !
शेर "इरफ़ान" का मैं ने पढ़ा, क़ायल भी हुआ
दाद क्या चीज़ है यारो, दिया, दिया न दिया !
vaaaaaaaaah! mast hai !!
Post a Comment