Saturday, 2 February 2008

आदमी


बचपन में वो उडाता है कन्कव्वे और जवानी में यारों फाख्ता /
फिर बुढापे में धूप सेंकता है के जैसे कोई कबूतर सज़ायाफ्ता !!

2 comments:

Ashok Pande said...

ये ornithological शेर, मुनीश बाबू ,हिस्टोरिकल मह्त्व के सस्तत्व को प्राप्त हो गया. साधु, साधु!!

मुनीश ( munish ) said...

हाँ ,'शायरी का अधः पतन ' नामक कोई रिसाला छपे तो उसमे डलवा देना भाई जी! totally ओरिजनल माल है!