कल आपने राष्ट्रभाषा पर फ़िराक़ गोरखपुरी साहब की लम्बी कविता 'बन्दे मातरम' के दो टुकड़े पढ़े थे। एक और हिस्सा देखिए:
अब जिगर थाम के बैठो मेरी बारी आई
क्या हम को समझ रखा है तुमने हम कांग्रेसिये लीडर हैं
हो भैंस चराने की न लियाक़त, पार्लिमेंट के मेम्बर हैं
हम नरक बना दें भारत को, यानी हम लोग मिनिस्टर हैं
मालिक हैं सफ़ेद-ओ-सियाह के हम, हम हिन्दुस्तां के मुकद्दर हैं
भारत की दुखती छाती पर भारी से भारी पत्थर हैं
- बन्दे मातरम
हम गांधियत के नख़रे, गांधियत के नाज़-ए-बेज़ा हैं
जनता को पयामे-ए-मर्ग हैं हम, भारत के गले का फ़न्दा हैं
हम हिन्द की मिटी उमीदें हैं, जम्हूर का ख़ून-ए-तमन्ना हैं
हैं सत्य अहिंसा की मूरत क्या तुमको बताएं हम क्या हैं
सब लोग हमारी जय बोलें, हम राजा हैं, हम परजा हैं
-बन्दे मातरम
Thursday, 28 February 2008
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1 comment:
कमाल कर दिया है ददा.
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