Wednesday, 9 April 2008

मयख़ानवी का एक पुराना शेर


मयख़ानवी का एक पुराना शेर पेश-ए-ख़िदमत है-
अर्ज़ किया है...
इख़्तेयार--तबस्सुम की लौ को तरन्नुम में नुमाइश से आगाह देना,
और जब इसका मतलब पता चले तो आप मुझको भी बता देना.

4 comments:

अमिताभ मीत said...

क्या बात है.
अब ऐसे शेर जो चुन चुन के पोस्ट करते हो
उन्हें समझने का भी कुछ तो हौसला देना !!!

Alpana Verma said...

aap ne kaha-''कोई भी शेर इतना सस्ता नहीं होता कि वो ज़िंदगी की हलचलों की तर्जुमानी न कर सके.''bahut sateek laga.

aur aaj ke sher ka arth bilkul aap ke diye chitr ki tarah hai-wo band taale ki tarah- jis ki ek chabi tuut gayee aur dusri tale mein band hai!

Wah! kya sahi milaaan kiya hai!

मुनीश ( munish ) said...

thanx for reminding people n me as well. in fact it has been more than 12 years when i composed this sher! today people send it each other as sms message ,but few know about its creator.
yani tum mujhe gumnaam nahin marne doge . thnx !

दीपक said...

दिमाग का हो गया दही ,बाल नोच डाला "
अर्थ नही मिला ,गुस्से मे किताब फ़ाड डाला