उदयपुर के प्यारे नौजवान पल्लव ने एक नई पत्रिका 'बनास' का पहला अंक निकाला है।यह अंक कथाकार स्वयं प्रकाश पर केंद्रित है.अभी पढ रहा हूं .इसी में छपे एक शेर पर निगाह टिक गई ,सो हाजिर है.पल्लव प्यारे मुझे पूरे बनास पर लिखना है.आखिर मैं आपसे पूरी नदी मांगकर लाया हुं. अभी माफ़ करेंगे.यात्रा की थकान -खुमार उतरने तक यह शेर तो चलेगा ही -
कह रहा है ले चलो फ़िर कूचा-ए-कातिल मुझे,
जूतियां पड़वाएगा उल्लू का पट्ठा दिल मुझे .
कह रहा है ले चलो फ़िर कूचा-ए-कातिल मुझे,
जूतियां पड़वाएगा उल्लू का पट्ठा दिल मुझे .
8 comments:
अरे मिंया आप तो जुतिया उठा ही लाये,कहां से लाते हो इतने सस्ते सस्ते शेर,ओर हमे भी आदत पड गई हे इन सस्ते शेरो की, धन्यवाद
वाह वाह ! भाई छा गया ये शेर. वाह, एकदम लाजवाब.
पड़वाने के लिए जूतियाँ खूबसूरत चुनी हैं।
वाह - क्या मोजरी शेर है
वाह जूतियां तो हैं लेकिन मखमल में लिपती हुईं ...
maar daala! adbhut , unparalleld ,matchless, sublime poetry!!
matchless, adbhut ! vah!
Achi lagi, makhamali vo chapalein, aur shabdon ke vo surmayi jaal
Devi
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