Thursday 3 April 2008

E.M.I. की शायरी


यूँ कि नाचीज़ भी चिडिमार रहा अपने इक ज़माने में
फ़िर घिस गयीं चप्पलें वगैरह E.M.I.चुकाने में !!

दोस्तो मयखाना खुला है ,चालू है तशरीफ़ लायें .

3 comments:

दीपक said...

हमने चिडिया मारी ,जब हम बच्चे थे "
गर चप्पल ही घिसना है तो चिडिमार ही अच्छे थे "

Tarun said...

मयखाना खुला है कहते हो और दरवाजे पर ही इतने खतरनाक लोग खड़े कर रखे हैं फैंटम जैसे ना जाने कितेन

Unknown said...

EMI चीज़ ही एइसी है - मिया मयखान्वी - शुक्र कीजिये आपके बाल बचे हैं - चप्पलें तो आती जाती रहेंगी मंदिरों/ कवि सम्मेलनों में आते जाते रहिये - [वैसे अपनी हमने अब तक तो डॉलर कूट कर खत्म कर ली]