Wednesday 9 April 2008

एक महंगा शेर

चचा गालिब, आप तो जानते हैं बड़े प्यारे शायर है. उन्होंने कुछ शेर तो इतने अच्छे लिखे हैं, की उन पर कई दीवान (सोने और सरकारी डंडा चलाने वाले) कुर्बान किए जा सकते हैं. उनका ऐसा ही एक शेर है, जो ग़लत हाथों में पड़कर ग़लत रूप में लोगों तक पहुँचा. उसका असली रूप उन्होंने हाल में मुझे मेल किया है और इस ताकीद के साथ कि इसका असली मे'आर तुम सस्ता शेर के माध्यम से आम जनता तक पहुँचा देना. यूँ है तो यह बहुत महंगा शेर, पर चूंकि शायर की इच्छा इसे बजरिये सस्ता शेर ही जनता तक ले आने की है, सो मैं अब इसे आपके हवाले कर रहा हूँ. आगे क्या करना है, यह आप जानें:

हमने माना के तुम कम न दोगे, लेकिन

बिन पिए सो जाएँगे हम रम सिपुर्द-ऐ-सागर होने तक

गर्दभ के खुर से है यहाँ सत्ता की तामील

जो भी है, है कुर्सी के घरर-घरर होने तक

1 comment:

डॉ .अनुराग said...

chacha galib padhege to bahut royenge ,aapni iski ........ek kar di hai..bahut mahnga sher hai.