Sunday 27 April 2008

भाइयो और बहनो, दम है तो रिक्त स्थान की पूर्ति करें

भाइयो और बहनो, जो भाइयो और बहनो पर बिंदी लगाते हैं उन्हें मुबारक!

पेल-ए-खिदमत है यह ऐतिहासिक शेर जो हमें हमारे गुरूजी सुनाया करते थे। नाम नहीं खोलूंगा क्योंकि अब वह वफ़ात पा चुके हैं। वैसे यह बताने में कोई गुरेज नहीं है कि वह महाराष्ट्र सरकार में वसंतदादा पाटिल से लेकर वसंतदादा के चेले शरद पवार के मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुके हैं. हिंट केवल इतनी मिलेगी कि वह हिन्दीभाषी थे.

अब शेर वही रिक्तस्थानों की पूर्ति वाला:-

इश्क़ वो खेल नहीं है मियाँ कि लौंडे खेलें,
.... .....फट जाती है सदमात के सहते-सहते।

10 comments:

Ashok Pande said...

भाइयो और बहनो पर बिंदीं लगानें वालों को एंक लांत मेंरीं तंरफ़ सें भीं. क्यां बांत कंह डांलीं आंपनें.

बिन्दी लगाना सीखो ओ बिन्दी लगाने वालो
हिन्दी लिखना सीखो, ओ कद्दू खाने वालो

बेहतरीन प्रस्तुति. मज़ा आया और लेंडी तर हुई सो अलग!

Admin said...

इश्क को तो रहने दीजिये.. हमारा तो शेर पढकर ही बुरा हाल है.. वैसे हमे लगा की दो शब्द भरे जायेंगे वरना एक आध तो हम भी लिख देते...

राज भाटिय़ा said...

दईया री दईया केसी केसी रिक्तस्थानों की पुर्ति करवाता हे यह सस्ते शेर वाला,
भाई आप का शेर पढ कर हम तो बेदम हो गये,**झोली** तो हो नही सकती

VIMAL VERMA said...

इश्क़ वो खेल नहीं है मियाँ कि लौंडे खेलें,
पौ/ आँख?....फट जाती है सदमात के सहते-सहते। हा हा हा अब वो मैं नहीं लिखुंगा जो आप लिखाना चाहते हैं...पर शेर दमदार है भाई....

VIMAL VERMA said...

इश्क़ वो खेल नहीं है मियाँ कि लौंडे खेलें,
पौ/ आँख?....फट जाती है सदमात के सहते-सहते। हा हा हा अब वो मैं नहीं लिखुंगा जो आप लिखाना चाहते हैं...पर शेर दमदार है भाई....

VIMAL VERMA said...

इश्क़ वो खेल नहीं है मियाँ कि लौंडे खेलें,
पौ/ आँख?....फट जाती है सदमात के सहते-सहते। हा हा हा अब वो मैं नहीं लिखुंगा जो आप लिखाना चाहते हैं...पर शेर दमदार है भाई....

Anonymous said...

इरफ़ान भाई ,
आपका भी - " सर सजदे में, ....... दगेबजी में " ?

दीपक said...

हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है !!

हमाम मे सभी नंगे है आपको पता है "
पर लिख नही सकते यही खता है "

इरफ़ान said...

@ Aflatoon- Bhai ummeed hai ki jab aap ghaur se dekheinge to Vijashankar Chaturvediji ko sajde mein paayeinge. Aap mujh par naahaq khafaa hain! "khel bigaade bulbul...maaraa jaaye gadahaa?"

अजित वडनेरकर said...

फटे क्य टांग अड़ाना ?
वैसे आनंद रहा...