गरमी पड़ने लगी है और बढ़ने लगी है. ऐसे में शायर "कर्कश कुमांउनी" चुप रहें ऐसा कैसे हो सकता है. ये दो बंद खास तौर पर गरमी के लिये लिख कर भेजें हैं. मुलाहिज़ा फ़रमायें.
कितने स्मार्ट हो मेरे हमदम , खुद को दुनिया की नजरों से बचाया करो.
आंखों में चश्मा लगाना ही काफी नहीं, गले में नींबू मिर्ची भी लटकाया करो.
अगला बंद जो शायर के दर्द को बयां कर रहा है.
हक़ीकत समझो या अफसाना,
अपना समझो या बेग़ाना ,
मेरा तुम्हारा रिश्ता पुराना,
इसलिये फ़र्ज था बताना,
गर्मी शुरु हो चुकी है,
प्लीज अब रोज नहाना.
" कर्कश कुमांउनी"
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1 comment:
गर्मी हो या सर्दी
कर्कश अपनी चोंच डुबाना
पेंचदार दिमाग पर जोर लगाना
एक सस्ता शेर बनाना
उसको यहां पर टिकाना ।
लेकिन तुम रोज नहाना
देखो तुम भूल मत जाना
चोंच डुबाना नहीं है नहाना
इसके लिए पोखर में जाना
पूरी पूरी काया डुबाना
फिर जल्दी बाहर आना
और सर्दीला शेर सुनाना ।
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