Thursday 10 April 2008

रिक्त स्थान की पूर्ति करें

पेल-ए-खिदमत है कल्पनाशील नाज़रीन के लिए एक अल्ट्रा रोमांटिक शेर--

हम ढूँढते थे जिनको गुलिस्ताँ के आस-पास,

वो ............... रहे थे, बयाबाँ के आस-पास।


-- (इस शेर का क्रेडिट माइल लखनवी को दिया जाता है.)

14 comments:

rakhshanda said...

ham dhhoontte they jinko gulistaan ke as paas
vo muskura rahe they,bayaabaan ke aas paas

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

आपकी कल्पना बहुत पवित्र है. शुक्रिया!... लेकिन हम यहाँ सस्ती कल्पना की तवक्को ज़ियादा रखते हैं.

दीपक said...

पहले बयाबाँ याने क्या ?? ये तो बताईये हमे यही नहि पता तो आगे क्या फ़रमाये !!

Anonymous said...

हम ढूँढते थे जिनको गुलिस्ताँ के आस-पास,

वो सू-सू कर रहे थे, बयाबाँ के आस-पास

Unknown said...

वाह सस्ते खाली स्थान भरें - १ सठिया / २ गरिया / ३ चिरकुटा / ४ पटपटा

मुनीश ( munish ) said...

I agree with Rakhshanda !

मुनीश ( munish ) said...

......& better u all agree with US !

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

तमाम दोस्तों में अब तक अवनीश जी ही थोड़ा सस्ता प्रयास कर पाये हैं. उन्हें मुबारकबाद! लेकिन इतने से ही काम नहीं चलेगा.

दीपक जी, बयाबाँ समझने के लिए चचा गालिब का एक शेर पेश है-
दर-ओ-दीवार पर उग आया है सब्ज़ा गालिब,
हम बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है.

जोशिम जी, इस शेर की जड़ (मूल भावना) तक पहुँचने के लिए अभी आपको पर्याप्त सस्ता होना पड़ेगा. वैसे इन चार सुंदर प्रयासों के लिए धन्यवाद!

मुनीश जी की धमकी के लिए चचा गालिब का एक मिसरा-ए-उला पेश करता हूँ-

धमकी से डर गया जो न बाब-ए-नबर्द था....

लगे रहो टुन्नाभाई! 'आओ थोड़ा और सस्ता हो जाएं.'

डॉ .अनुराग said...

bhah ji bhah .....

मुनीश ( munish ) said...

are yaar sanskriti bhi koi cheez hai ki nahin ! baat saste mahange ki nahin cultural values ki hai jo yahan kam se kam kisi mein to hain !

Unknown said...

yes boss - completely agree with you - like i said before - कसम धुंधले चश्मे वाले की!!! [ :-)]

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

जोशिम भाई, मेरे चश्मे पर तंज करके आपने ये अच्छा नहीं किया. याद रखिये, मैं 'दरख्त-ए- संस्कृति' हूँ!!!!! हा--हा-हा! ...वैसे अब मैंने अपना चश्मा अख़बार के पन्ने से पोंछ लिया है, अब ये धुंधला नहीं रहा.

Unknown said...

अरे विजय बाबू - ओ सतना वाले बाबू जी - धुंधले चश्मे की कहानी के नायक आप नहीं - इसे समझने के लिए आपको पुराने पन्ने पलटने पड़ेंगे या मुनीश जी से गुफ्तगू करें [:-)]याद रखें उधार प्रेम की कैंची है और भूल चूक लेनी देनी और जगह मिलने पर साईड दी जाएगी [ :-)]

मुनीश ( munish ) said...

HA..HA..HA..HO...HUUU...GARRRR!