ये इबारत गेट पर एक चर्च के तहरीर थी
'थक चुके हों गर गुनाहों से तो अन्दर आईये'
उसके नीचे ही लिपस्टिक से किसी ने लिख दिया
'गर अभी तक न थके हों तो मेरे घर आईये'
---पॉपुलर मेरठी
Saturday, 5 April 2008
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महंगाई के दौर में एक राहत की सांस
4 comments:
पता लिखना भुल गये मियां,बहुत अच्छा कहा लेकिन यह शेर नही,बल्कि बबर शेर कहना उचित होगा
क्या आपने उसी जगह एक मयखाने का बोर्ड नहीं देखा -
"गर मुकम्मल न हो फ़िर भी चाह आपकी,
तो ज़नाब, तशरीफ़ इधर लाइये."
ek aor dad...us lipistik vale ka pata gar likha ho to vo bhi bata de.ham meerut me hi rahte hai.
नीचे पता नहीं लिखा था क्या? या पापुलर साहब अकेले चले गए? किसी और को बताना नहीं चाहते?
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