Tuesday, 22 April 2008

जल्दी में लिपिस्टिक भूल गये...

वो अपनी याद दिलाने को इक इश्क़ की दुनिया छोड गए...
फ़िल्म जुगनू, 1947
रफ़ी गाते और नाचते दिख रहे हैं.




देखने में कष्ट हो तो यहाँ सुनिये....



अगर कष्ट कम न हुआ हो तो यहाँ सुनिये-

9 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

कमाल ही है जनाब, बस कमाल से एक माशा भी कम नहीं.

azdak said...

सही है, साम नरायण..

Yunus Khan said...

भाई मियां बड़ी दूर का शेर लाए हो । छा गए गुरू ।
किस चक्‍की का आटा खाकर सर्च करते हो । हंय

Abhishek Ojha said...

वाह भई !
इरशाद !

Anonymous said...

यूनुस भइया जी कोई किसी चक्की के आटे का कमाल नही है. यह सरासर चोरी है . जुगनू फ़िल्म का यह गीत हाल ही में सारेगामा द्वारा जारी ४० गानों की सीडी से उड़ाया गया माल है.

Manas Path said...

वाह वाह.

इरफ़ान said...

राजेन्द्र भइया, आप सारेगामा के चालीस गानों पर इतराने लगे. उन चार सौ गानों का क्या होगा जो पिछले बीस वर्षों में मैंने जुटाए और जिनमें से कई अब सारेगामा हमसे लेने वाला है. जुगनू का यह गाना (ऑडियो)भी जुगनू के एलपी से ही डिजिटाइज़ किया गया है और मैंने ख़ुद ही किया है. और चोरी की इतनी आदत की ख़बर यूनुस भइया को है ही. आप उनकी चक्की की समस्या वीडियो के सिलसिले में हल करें तो हम भी मानें कि आप आटा खाकर ही चोरी पकडने निकलते हैं. जय बोर्ची.

दीपक said...

इस गाने सा गोल्ड और इरफ़ान सा बोल्ड ढुँढते रह जाओगे !!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

वाह इरफ़ान भई, क्या शाल में लपेट कू चांटा मारे कते!