Friday, 25 April 2008

खोये वहीं पर .....

गाये थे जहां पर कभी खुशियों के तराने
मुकद्दर देखिये रोये वहीं पर
हुए मंदिर में गुम जूते हमारे
जहां से पाये थे खोये वहीं पर

---------
गिरगिट अहमदाबादी

3 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

ऊ सुने नहीं हैं न? बुरे कम का बुरा नतीजा.. हाँ भाई चाचा हाँ भतीजा

इरफ़ान said...

चलिये अफ़सोस की बात ज़्यादा नहीं है. हिसाब बराबर.

anuradha srivastav said...

हाााहाहाहाहााह