Wednesday, 16 April 2008

नवी मुम्बई के तुर्भे नाका पर खड़े एक ट्रक के सौजन्य से-

अबे देखता क्या है इतने गौर से,
आ रहा हूँ डाईरेक्ट बंगलौर से.

1 comment:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

अव्वल तो मैं ये अर्ज़ कर दूँ के इस उपकरण में कुछ लिखते हुए भी डर लगता है. इसमें तो का टू हो जाता है. आर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र हासिल;ऐ-इल्म से ये गुजारिश है के वो इसमें तसद्दुद की बेरहमी न फरमाएं. गालिब का एक शेर याद आता है- यहाँ गर्दिश में हैं सात आसमाँ, हो रहेगा कुछ घबरायें क्या! मुश्किल यही के मैंने बहुत जेर=ज़बर की, लीकिन मसला हल न हुआ.