Friday, 29 February 2008

नई बहस

ये नया शिगूफ़ा है गांव गांव ,
न बात चीत बस कांव कांव
मूंडी हिलाओ हां में सब ,
या फिर सुनो मेरी खांव खांव

6 comments:

झालकवि 'वियोगी' said...

करके बहाना बहस का करते रहे बस कांव-कांव
देखी जो इनकी ये अदा, फूले हैं मेरे हाथ-पाँव

Ashok Pande said...

बहोत फ़ाइन सेर माड्डाला बेनाम साहब.

मुनीश ( munish ) said...

sone ....sone ...sheron ke liye shukriya!

मुनीश ( munish ) said...

aji bha se vahi jo bho se!

परमजीत सिहँ बाली said...

आप का लिखा और बेनाम का लिखा शेर,बहुत बढिया है।

ghughutibasuti said...

मुझे यह कौवों का अनादर लगता है । इनकी बेइज्जती खराब करने की शिकायत काकेश जी से करनी ही होगी ।
घुघूती बासूती