बहुत सालों के बाद पिछले दिनों पत्रकार मित्र श्रीप्रकाश टकरा गए दिल्ली में। उन की मारफ़त एक जबरजस्त सेर आया है। सो पहला शुक्रिया उन का। एक शुक्रिया उन साहेब के वास्ते ड्यू है जो इस महान कविता के मूल रचनाकार का नाम-पता मुहैय्या कराएगा।
तरदामनी पर शेख़ हमारी न जाइयो
दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें
Thursday, 28 February 2008
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4 comments:
badi baat hai ji.
शेर की पहली पंक्ति में 'जाइए' की जगह 'जाइयो' कर दें . जो सही होगा शायर का नाम भी बताऊंगा,डायरी देखकर .
-- प्रियंकर
'जाइयो' कर दिया प्रियंकर जी. अब तो बता दीजिए सायर का तस्मे-सरीफ.
साजन पेशावरी के हवाले से कह सकता हूं कि यह मीर 'दर्द' का शेर है .
यह कोई दूसरे मीर हैं . मीर तकी मीर से अलग .
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