Wednesday, 16 April 2008

कभी मुंह तो ला मेरी नांद में

जनाब बशीर बद्र से एक बार और क्षमायाचना के साथ उनकी पौन बीघा ज़मीन पर एक सस्ता वाला:

कभी मुंह तो ला मेरी नांद में, कि तेरी अकल पे बजर गिरे

मुझे कुछ रकम तो उधार दे, फिर अपना चेहरा तू धो न धो

4 comments:

मुनीश ( munish ) said...

madhosh shayri.

Priyankar said...

क्या बात है पंडिज्जी !

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अच्छा! तो नांद है किधर?

राज भाटिय़ा said...

अरे वाह कया बात हे फ़िर मुहं लगने की बात ही कहां, पेसा दे कर पगां तो लो एक बार