Tuesday, 29 April 2008

थियोरी ऑफ रिलेटिविटी का शेर


मैदान से देखा तो खिड़की पर कोई नहीं था
खिड़की से देखा तो मैदान में कोई नहीं था ।
कमबख्‍त चक्‍कर क्‍या था ।
कहीं कोई था या कहीं कोई नहीं था । हंय ।।

4 comments:

Ashok Pande said...

भौत पटक के मारा है ... वाह जनाब!

कुश said...

बहुत अच्छे.. खिड़की कौनसी है कही माइक्रोसॉफ्ट की तो नही.. विंडोज़ 98

Anonymous said...

मैदान से देखा, कोई खिड़की तो नहीं थी
अगर थी तो कहीं खुली तो नहीं थी,
खुली थी तो वां से कोई झाँकता तो ना था,
अगर होता तो भाई थोड़ा आड़ में बैठते.

मुनीश ( munish ) said...

sundar..vah!