डाक साब ' ये शेर समझने के लिए कभी ट्रक में सफर करना बहुत ज़रूरी माना गया है ! हमने करा है कभी सुबह अखबार ले जाने वाले छोटे ट्रक में तो कभी भैंस ले जा रहे बड़े ट्रक में , एक दफा तो रात को एक ऐसा ट्रक मिला जिसमें भोस्डी के ड्राईवर ने केमिकल लाद रखा था जिसकी बदबू से दो सवारी उलटी करते करते लगभग बेहोश हो गयीं ।
दोस्तो, ये तो आप महसूस करते ही होंगे कि शायरी की एक दुनिया वह भी है जिसे शायरी में कोई इज़्ज़त हासिल नहीं है. ये अलग बात है कि इसी दुनिया से मिले कच्चे माल पर ही "शायरी" का आलीशान महल खड़ा होता है, हुआ है और होता रहेगा. तो...यह ब्लॉग ज़मीन पर पनपती और परवान चढ़ती इसी शायरी को Dedicated है. मुझे मालूम है कि आप इस शायरी के मद्दाह हैं और आप ही इस शायरी के महीन तारों की झंकार को सुनने के कान रखते हैं. कोई भी शेर इतना सस्ता नहीं होता कि वो ज़िंदगी की हलचलों की तर्जुमानी न कर सके. बरसों पहले मैंने इलाहाबाद से प्रतापगढ़ जा रही बस में पिछली सीट पर बैठे एक मुसाफ़िर से ऐसा ही एक शेर सुना था जो हमारी ओरल हिस्ट्री का हिस्सा है और जिसके बग़ैर हमारे हिंदी इलाक़े का साहित्यिक इतिहास और अभिव्यक्तियों की देसी अदाएं बयान नहीं की जा सकतीं. शेर था-- बल्कि है--- वो उल्लू थे जो अंडे दे गये हैं, ये पट्ठे हैं जो अंडे से रहे हैं . .............इस शेर के आख़ीर में बस उन लोगॊं के लिये एक फ़िकरा ही रह जाता है जो औपनिवेशिक ग़ुलामी और चाटुकारिता की नुमाइंदगी कर रहे हैं यानी उल्लू के पट्ठे. --------तो, आइये और बनिये सस्ता शेर के हमराही. मैं इस पोस्ट का समापन एक अन्य शेर से करता हूं ताकि आपका हौसला बना रहे और आप सस्ते शेर के हमारे अपर और लोवर क्राईटेरिया को भांप सकें. पानी गिरता है पहाड़ से दीवार से नहीं, दोस्ती मुझसे है मेरे रोजगार से नहीं. --------------------------------------------- वैधानिक चेतावनी:इस महफ़िल में आनेवाले शेर, ज़रूरी नहीं हैं कि हरकारों के अपने शेर हों. पढ़ने-सुननेवाले इन्हें पढ़ा-पढ़ाया या सुना-सुनाया भी मानें. -------------------- इरफ़ान 12 सितंबर, 2007
सात सस्ते शेर इस महफ़िल में भेजने के बाद आपको मौक़ा दिया जायेगा कि आप एक लतीफ़ा भेज दें. तो देर किस बात की ? आपके पास भी है एक सस्ता शेर... वो आपका है या आपने किसी से सुना इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. बस मुस्कुराइये और लिख भेजिये हमें ramrotiaaloo@gmail.com पर और बनिये महफ़िल के सितारे.
3 comments:
chaliye daad de hidete hai..vaise ye sher samjh nahi aaya.
कीचड में रखोगी पाँव तो धोना पड़ेगा
ड्राईवर जो की शादी तो रोना पड़ेगा ।
मैंने ये एक टाटा-४०७ के पीछे आज ही पढ़ा है !
डाक साब ' ये शेर समझने के लिए कभी ट्रक में सफर करना बहुत ज़रूरी माना गया है ! हमने करा है कभी सुबह अखबार ले जाने वाले छोटे ट्रक में तो कभी भैंस ले जा रहे बड़े ट्रक में , एक दफा तो रात को एक ऐसा ट्रक मिला जिसमें भोस्डी के ड्राईवर ने केमिकल लाद रखा था जिसकी बदबू से दो सवारी उलटी करते करते लगभग बेहोश हो गयीं ।
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