Tuesday, 1 April 2008

खुदा जाना .....

काकेश जी की पिछली पोस्ट को पढ कर कलम चल पड़ी और इस सस्ते शेर का ज़न्म हुआ :

चला था ढूँढने उसको ,निगाहें मेरी अम्बर पर
गया जब पाँव खड्ड़े में, तभी मैनें ’खुदा’ जाना ।







6 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

जन्म के भी क्या गजब-गजब के तरीके होते हैं! नईं?

अनूप शुक्ल said...

यहां खुदा में यमक अलंकार है। :)

सुजाता said...

Anoop jee kyaa baat kaha rahe hai , yahaan yamak nahee shlesh alankaar hai :-)

अनूप भार्गव said...

मुझ जैसे अल्पज्ञानी के लिये ही शायद ’विकीपीडिया’ बनाया गया है ।
खोज करनें पर यह दिखा :

यमक अलंकार
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जब एक शब्द का प्रयोग दो बार होता है और दोनों बार उसके अर्थ अलग-अलग होते हैं तब यमक अलंकार होता है। उदाहरण -
१ ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहन वारी, ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती हैं।
(यहाँ पर मन्दर के अर्थ हैं अट्टालिका और गुफा।)
२ कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, या खाये बौराय जग, वा पाये बौराय।
(यहाँ पर कनक के अर्थ हैं धतूरा और सोना।)

श्लेष अलंकार
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जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है पर उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हैं तब श्लेष अलंकार होता है। उदाहरण -
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
यहां पानी का प्रयोग एक बार ही किया गया है, किन्तु उसके तीन अर्थ हैं - मोती के लिये पानी का अर्थ चमक, मनुष्य के लिये इज्जत (सम्मान) और चूने के लिये पानी है। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
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अनूप भाई ! इसे पढने के बाद आज की सर्वश्रेष्ट टिप्पणी का पुरुस्कार ’सुजाता’ को जाता है :-)

अनूप शुक्ल said...

हमने गलती मानी। हमें ये तो पता था और है भी कि यमक अलंकार के लिये एक से अधिक बार प्रयोग होना चाहिये। हर बार मतलब अलग भी होना चाहिये। लेकिन ये नहीं पता था कि आपने ऊपर वाले खुदा को ह्टा दिया। सुजाता बधाई की पात्रा हैं कि हिंदी में पी.एच.डी. होने के बावजूद इत्ता ध्यान से पढ़ती हैं। उनको इनाम की बधाई! :)

Sohan said...

इधर खुदा है उधर खुदा है
जिधर देखो उधर खुदा है
जिधर नही खुदा है






उधर कल खुदेगा ..