मुझ जैसे अल्पज्ञानी के लिये ही शायद ’विकीपीडिया’ बनाया गया है । खोज करनें पर यह दिखा :
यमक अलंकार ========== जब एक शब्द का प्रयोग दो बार होता है और दोनों बार उसके अर्थ अलग-अलग होते हैं तब यमक अलंकार होता है। उदाहरण - १ ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहन वारी, ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती हैं। (यहाँ पर मन्दर के अर्थ हैं अट्टालिका और गुफा।) २ कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, या खाये बौराय जग, वा पाये बौराय। (यहाँ पर कनक के अर्थ हैं धतूरा और सोना।)
श्लेष अलंकार ======== जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है पर उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हैं तब श्लेष अलंकार होता है। उदाहरण - रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून। यहां पानी का प्रयोग एक बार ही किया गया है, किन्तु उसके तीन अर्थ हैं - मोती के लिये पानी का अर्थ चमक, मनुष्य के लिये इज्जत (सम्मान) और चूने के लिये पानी है। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है। =============
अनूप भाई ! इसे पढने के बाद आज की सर्वश्रेष्ट टिप्पणी का पुरुस्कार ’सुजाता’ को जाता है :-)
हमने गलती मानी। हमें ये तो पता था और है भी कि यमक अलंकार के लिये एक से अधिक बार प्रयोग होना चाहिये। हर बार मतलब अलग भी होना चाहिये। लेकिन ये नहीं पता था कि आपने ऊपर वाले खुदा को ह्टा दिया। सुजाता बधाई की पात्रा हैं कि हिंदी में पी.एच.डी. होने के बावजूद इत्ता ध्यान से पढ़ती हैं। उनको इनाम की बधाई! :)
दोस्तो, ये तो आप महसूस करते ही होंगे कि शायरी की एक दुनिया वह भी है जिसे शायरी में कोई इज़्ज़त हासिल नहीं है. ये अलग बात है कि इसी दुनिया से मिले कच्चे माल पर ही "शायरी" का आलीशान महल खड़ा होता है, हुआ है और होता रहेगा. तो...यह ब्लॉग ज़मीन पर पनपती और परवान चढ़ती इसी शायरी को Dedicated है. मुझे मालूम है कि आप इस शायरी के मद्दाह हैं और आप ही इस शायरी के महीन तारों की झंकार को सुनने के कान रखते हैं. कोई भी शेर इतना सस्ता नहीं होता कि वो ज़िंदगी की हलचलों की तर्जुमानी न कर सके. बरसों पहले मैंने इलाहाबाद से प्रतापगढ़ जा रही बस में पिछली सीट पर बैठे एक मुसाफ़िर से ऐसा ही एक शेर सुना था जो हमारी ओरल हिस्ट्री का हिस्सा है और जिसके बग़ैर हमारे हिंदी इलाक़े का साहित्यिक इतिहास और अभिव्यक्तियों की देसी अदाएं बयान नहीं की जा सकतीं. शेर था-- बल्कि है--- वो उल्लू थे जो अंडे दे गये हैं, ये पट्ठे हैं जो अंडे से रहे हैं . .............इस शेर के आख़ीर में बस उन लोगॊं के लिये एक फ़िकरा ही रह जाता है जो औपनिवेशिक ग़ुलामी और चाटुकारिता की नुमाइंदगी कर रहे हैं यानी उल्लू के पट्ठे. --------तो, आइये और बनिये सस्ता शेर के हमराही. मैं इस पोस्ट का समापन एक अन्य शेर से करता हूं ताकि आपका हौसला बना रहे और आप सस्ते शेर के हमारे अपर और लोवर क्राईटेरिया को भांप सकें. पानी गिरता है पहाड़ से दीवार से नहीं, दोस्ती मुझसे है मेरे रोजगार से नहीं. --------------------------------------------- वैधानिक चेतावनी:इस महफ़िल में आनेवाले शेर, ज़रूरी नहीं हैं कि हरकारों के अपने शेर हों. पढ़ने-सुननेवाले इन्हें पढ़ा-पढ़ाया या सुना-सुनाया भी मानें. -------------------- इरफ़ान 12 सितंबर, 2007
सात सस्ते शेर इस महफ़िल में भेजने के बाद आपको मौक़ा दिया जायेगा कि आप एक लतीफ़ा भेज दें. तो देर किस बात की ? आपके पास भी है एक सस्ता शेर... वो आपका है या आपने किसी से सुना इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. बस मुस्कुराइये और लिख भेजिये हमें ramrotiaaloo@gmail.com पर और बनिये महफ़िल के सितारे.
6 comments:
जन्म के भी क्या गजब-गजब के तरीके होते हैं! नईं?
यहां खुदा में यमक अलंकार है। :)
Anoop jee kyaa baat kaha rahe hai , yahaan yamak nahee shlesh alankaar hai :-)
मुझ जैसे अल्पज्ञानी के लिये ही शायद ’विकीपीडिया’ बनाया गया है ।
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यमक अलंकार
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जब एक शब्द का प्रयोग दो बार होता है और दोनों बार उसके अर्थ अलग-अलग होते हैं तब यमक अलंकार होता है। उदाहरण -
१ ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहन वारी, ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती हैं।
(यहाँ पर मन्दर के अर्थ हैं अट्टालिका और गुफा।)
२ कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, या खाये बौराय जग, वा पाये बौराय।
(यहाँ पर कनक के अर्थ हैं धतूरा और सोना।)
श्लेष अलंकार
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जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है पर उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हैं तब श्लेष अलंकार होता है। उदाहरण -
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
यहां पानी का प्रयोग एक बार ही किया गया है, किन्तु उसके तीन अर्थ हैं - मोती के लिये पानी का अर्थ चमक, मनुष्य के लिये इज्जत (सम्मान) और चूने के लिये पानी है। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
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अनूप भाई ! इसे पढने के बाद आज की सर्वश्रेष्ट टिप्पणी का पुरुस्कार ’सुजाता’ को जाता है :-)
हमने गलती मानी। हमें ये तो पता था और है भी कि यमक अलंकार के लिये एक से अधिक बार प्रयोग होना चाहिये। हर बार मतलब अलग भी होना चाहिये। लेकिन ये नहीं पता था कि आपने ऊपर वाले खुदा को ह्टा दिया। सुजाता बधाई की पात्रा हैं कि हिंदी में पी.एच.डी. होने के बावजूद इत्ता ध्यान से पढ़ती हैं। उनको इनाम की बधाई! :)
इधर खुदा है उधर खुदा है
जिधर देखो उधर खुदा है
जिधर नही खुदा है
उधर कल खुदेगा ..
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