Wednesday, 12 March 2008

और अब सुनिये झड़ी हुई ग़ज़ल

प्रदीप चौबे जी की ग़ज़ल को खूब पसंद किया गया और किया भी क्‍यों न जाए है भी तो वैसी ही शख्‍सीयत । आज सुनिये डॉ महेंद्र अग्रवाल जी की एक गज़ल़ के कुछ शेर

अदबी अदब के वास्‍ते जिद पर अड़े हुए

चप्‍पल हवा में उड़ गई जूते खड़े हुए

माइक पकड़ के हो गए शायर अवाम के

आंधी के आम बीन जो लाए झड़े हुए

अदबी तो मानिये मुझे शायर न मानिये

ये शेर मिल गए थे सड़क पर पड़े हुए

4 comments:

इरफ़ान said...

बस सडक पर पडेवाले ही चाहिये. बहुत ख़ूब.

अमिताभ मीत said...

चप्पल पड़े थे सड़क पे या शेर थे जनाब ?
लग जाएं इस से क़ब्ल ही हम उठ खड़े हुए

VIMAL VERMA said...

भाई वाह....अच्छा चोखा माल चुन के लाए हैं..बधाई हो.

Shiv said...

बहुत खूब...वाह!