''सस्ता शेर एक अद्भुत ब्लॉग है , ऑरों से ज़रा हटके । इस पर एक स्टोरी करो यार अपने सन्डे एडिशन में '' उस रोज़ जब मैंने ये बात इंडियन एक्सप्रेस की अपनी एक मित्र से कही तो उन्होंने बड़ा रस लेकर इसे आद्योपांत पढ़ा और कुछ झिझकते हुए कहा कि माल तो सही है मगर इंग्लिश प्रेस के नज़रिये से स्टोरी में ट्विस्ट सिर्फ़ ये है के ये हिन्दी का शायद पहला ''गे''(GAY) ब्लॉग है । ये सुनकर उसकी साँसों से धुंधले पड़ते अपने चश्मे के शीशे साफ करते हुए मैंने पूछा क्यों भई तुम्हे मुझ पर तो शक नहीं होना चाहिए । तब आपने फ़रमाया ..''वो बात नहीं है मगर इसका फर्स्ट हैण्ड इम्प्रेशन कुछ ऐसा जा रहा है , अब देखो तुमने इसमे कुछ सोनी-सोनी तस्वीरें चेपी , कई मर्तबा दारू की भी चेपी दिख रही हैं मगर..मगर दारू की बोतलों पे तो कमेंट फ़िर भी आए मगर सुंदर लड़की वाली पोस्टों को कोई तवज्जो नहीं मिली , अब या तो सारे मेंबर बहोत धार्मिक किस्म के हैं या फ़िर मार्मिक किस्म के हैं....खल्लास ..बोलो करूं स्टोरी ? '' मैंने आज तक इस नज़रिये से सोचा ही न था मगर एक पत्रकार कह रही थी , वो भी अंग्रेज़ी की कोई भास्कर-चासकर टाइप नहीं !!
ये सुन कर जायका तो बहुत ख़राब हुआ मगर क्या कहना था , मैंने कहा 'अच्छा ' वो बोली 'ठीक'। ये बात हुई लास्ट -वीक । जी काफ़ी ख़राब रहा सो मैंने एस ए टेस्ट पोस्ट
'लम्पट प्रार्थना' वाली पोस्ट चेपी । परिणाम वही ढाक के तीन पात । ले देके एक परम जीत बाली का कमेंट आया मगर वो तो मेंबर हैं नहीं । शक यकीन में बदलता लगा मगर फ़िर आखरी try के तौर पे मैंने खुले आम सब मेम्बेर्स
का ध्यान इस तरफ़ खींचा की कोई लड़की यहाँ contribute नहीं करती है, ये बड़ी अब्नोर्मल बात है वगैरह ..वगैरह । नतीजा .......अब तो खैर आपके सामने है.....मनीषा ने ब्लॉग को अब्नोर्मल घोषित होने से बचा लिया है ..उम्मीद है और लड़कियां भी यहाँ लिखने लगेंगी .....मगर साब मेरी जिस पोस्ट को मनीषा ने इतनी शिद्दत से ..,शायद एक चुनौती की तरेह भी लिया किसी एक करम जले मेंबर ने इतनी मौलिक बात पर टिप्पणी तो दूर ,भाईसाब चूं तक नहीं की । अशोक पांडे इस समय केरल में हैं सो वो excluded हैं । और जो लोग न पढ़ पाये हों उन्हें भी मैं करम जलों में नहीं रखता । मगर है कमाल । बहरहाल , शुक्र है की अब ये ब्लॉग 'सामान्य' हो चला है और स्वस्थ परम्पराके मार्ग पर अग्रसर रहेगा ।
एक शेर अर्ज़ है , बहोत पुराना है :
'' झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए , लिखती है कन्या लिखवाने वाला चाहिए ''
मैं हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ मनीषा जी का और उन तमाम ब्लॉग बालाओं का जो इसी तरेह यहाँ लिखेंगी और इस ब्लॉग की फला -ओ -बहबूदी में हमारी हिस्सेदार होंगी । जय सस्तापन । जय बोर्ची.!!!
Wednesday, 12 March 2008
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6 comments:
कोशिशें करते रहो और कारवाँ बनता रहे
cheepness की छाँव में पर काश वो पलता रहे
लिखने वाली कन्या हो या आप जैसा कोई हो
हक़ तो ये है दोस्तो, कि ब्लॉग ये फलता रहे
आपका और शिवकुमार मिश्र जी का अभिनन्दन और ब्लोगेन्द्र इरफान को साधुवाद कि आप यहाँ आए . अजी आप आए बहार आई.
मुनीश- (१) मैं तो समझा था कि ये आपकी persistent गुजारिश का असर था कि मनीषा, तरुण के लिखे पर रोने के बजाय हम सब को अपने लिखे पर रुलाने के लिए चली आयीं [ :-)] (२) नोट किया गया - "उनकी साँसों से धुंधले पड़ते चश्मे" का सन्दर्भ - (३) जिस समस्या का आपने वर्णन किया वह बड़ी विकट है, इस की सन्दर्भ सहित व्याख्या, अवलोकन, पुनरावलोकन, आलोचन, आकलन, [जैसा भी हो] सभी होना चाहिए, और उपाय भी ढूँढने चाहिए, दूरगामी और पासगामी (जैसे भी हों) - (४) मसलन आप अपनी मित्र को स्पष्ट कर दें कि नमूने के तौर पर बच्चों के बाप भी इस ब्लॉग मंडली में हाजिर हैं, और कुछ की बीवियाँ भी इसे पढ़ती हैं - अब रहे सहे बालों को बचाने के लिए ये ज़रूरी है कि कुछ किसिम की तस्वीरों को देख तो लिया जाय पर शोर न मचाया जाय - rgds- अधेड़ उम्र का बच्चों का बाप / पाठक / रंगरूट [ वैसे इस पोस्ट से बड़ी संभावना है - घर में समझाने की ]
मैं आपकी सलाहियतों का कद्रदान हूँ जोशी जी और हालात को समझ सकता हूँ मगर मेरा मानना है के टीवी की तरेह ब्लॉग को मिल-जुल के देखना ,दिखाना जो है वो अपने वैचारिक space के साथ एक किस्म का समझौता है ! ये मेम्बेर्स ओनली वाली चीज़ ही बनी रहे तो बेहतर है बाकि इस मसले पे जो ब्लोगेन्द्र इरफान, ब्लौगेश अशोक भाई , ब्लौगाधिपति विमल भाई, Blogarch अज़दक और हे ब्लोग्बाहु आप जो उचित समझें ...कहें वो मुझे स्वीकार्य होगा !
.....हाँ जहाँ तक अन्यान्य ब्लॉग - भट्टों , ब्लॉग-सुमनों एवं ब्लोगायुक्तों की बात है उनको मैं जानता नहीं ! ब्लॉग-बालाओं के बगैर ब्लॉग की प्रतिष्ठा संदिग्ध है हे ब्लोगाक्ष !अतः उन्हें लाना बुलाना तो होगा ही !
मीतजी ने बहुत अच्छी बात कह दी. उनका शुक्रिया! लेकिन अपना कहना ये है-
हम तो चाहेंगे कोई ज़ौक-ए-हसीना आए,
एक बोअटल के लिए मौज-ए-सफ़ीना आए.
अब मतलब मत पूछने लागियेगा! यकीन से कहते हैं के हमको भी नहीं मुआलूम.
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