Thursday, 13 March 2008

रौ-ऐ -जज़्बात


खटमल दीवान में मेरे और ज़ख्म उनके हरे हुए
खटमल दीवान में मेरे और ज़ख्म उनके हरे हुए
जिंदे हैं अब भी जज़्बे कि जिनको माना मरे हुए !

1 comment:

Anonymous said...

भिनभिनाते हुये जज़्बों को दबायें तो फिर कैसे
एक भगाया तो दूजा आया मच्छरों के जैसे