Wednesday, 19 March 2008

एक हृष्ट-पुष्ट दोहा

पेल-ए-खिदमत है:-

जब वो थीं तब मैं नहीं, अब मैं हूँ वो नाहिं,
दोनों की साइज़ विकट, इक घर में न समाहिं.

--विजय डनलपी.

2 comments:

मुनीश ( munish ) said...

kya vazan baithaya hai vije baboo tohar javaab nahi !!

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

सतर्क रहिये! उड़न तश्तरी वाले समीर लाल जी आप पर कापीराईट का मुकदमा करने ही वाले हैं.