Saturday, 15 March 2008
पेला कदम
शुरुआत - राम के नाम, रोटी के नाम, आलू के नाम और तमाम आलू के पराठों के नाम
पेला सलाम:
"शेर खां मिल गए, शेर-बब्बर मिले, टके सेर ताजे औ खस्ते
हम लुटे, लुट गए, लुटा के इकन्नी, यहाँ मिल गए शेर सस्ते "
हाजिरी लगाने के साथ साथ ब्लॉग चक्रवर्ती, ब्लॉग नरेश, ब्लॉग भूपति, की सेवा में अर्पण दो लाईना:
"जिस किसिम के हरकारे, महफ़िल में आने वाले हैं हमारे तो बाल थे ही नहीं, आपके भी जाने वाले हैं"
[ अच्छा / ठीक ]
जादा टैम ख़राब नीं करके पेस हैं - दो पुराने सस्ते एक्स्पीरिएंस सारे सीटी वाले सारे आसिकों के नाम [कल्लो परी के खासकर] -
(१) पेला वाला
तेरी ज़ीनत कमाल, ............. तेरी ज़ीनत कमाल, तेरे गेसू हैं जाल, ............. तेरी ज़ीनत कमाल, तेरे गेसू हैं जाल, घटा है तेरी ओढ़नी, ...... तेरी ज़ीनत कमाल, तेरे गेसू हैं जाल, घटा है तेरी ओढ़नी, ..... अब जरा रूमाल भी दे देईयो बांके, तेरी नाक बस है पोंछ्नी
(२) पेले के बाद पेला वाला
अंधेरी रात थी, ............. अंधेरी रात थी, सन्नाटा था, ............. अंधेरी रात थी, सन्नाटा था, तुम न थीं दिल में ज्वार भाटा था ..... अंधेरी रात थी, सन्नाटा था, तुम न थीं दिल में ज्वार भाटा था ..... जालिम धड़ाके से भू पर ले आया, उसमे लिखा लफ्ज़ "बाटा" था
[मुनीश जी ध्यान दें ; उनकी सखी भी ध्यान दें ; ब्लोगेन्द्र ध्यान दें की सखी को भी न्योता भेज दें ]
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8 comments:
कल्लोपरी के आसिकों, मुनीस जी, ओर सभी सस्ते सायरों को एक सस्ती नज़्र
उनकी ज़ुल्फें बेतरतीब, चेहरे पर बदहवासी थी
उनकी आंखों में लाली, और थोड़ी सी उदासी थी
थी ये मेहबूब की तड़प, या कहीं से पिट के आये हैं?
हमें तो लगा था आप ज्वालामुखी फोड़े बिना नही हटने वाले शुक्र है बला कुछ रूपये और ९९ पैसे वाले बाटा पर निपट गयी। बड़े उम्दा सस्ते शेर लेकर ठिकरा फोड़ा है आपने दाज्यू, जी रिया बची रिया एक आध दिन छोड बे सस्ते शेर दिं रिया।
अंधेरी रात थी, अंधेरी रात थी, ग़नीमत थी मेरे हाथ में तेरी ब्लाग थी.. ब्लाग के ऊपर हमारी बिगड़ी हुई ज़ुल्माना बेगम की भागी हुई बारात थी.. हद है अंधेरी रात थी (मगर क्यों थी?)
बहुत फाइन टाइप का मटेरियल लाए हो जोसी जी। स्यानदार और जबरजस्त। अब आने लग्गे सारे मह्सूर सायर ... जय बोर्ची।
वाह! वाह!
सस्त बचन महराज , मिट गई जी कि खाज !
अदब से बोलो ....वाह ताज ..वाह ताज !!
"वल्लाह इरफान मियां क्या कर दी खलबली खलबली
बौड़म सी पोस्ट को बनाय दिए जालिम अनारकली " - शुक्रिया मेहरबानी करम - [:-)] मनीष
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