कई बरस पहले एक दोस्त ने मोहन मीकिन्स कम्पनी की एक डायरी गिफ़्ट की थी। उस में एक उम्दा सस्ता शेर था। मुझे हैरत है वह अब तक यहां कैसे नहीं पहुंचा:
इज़हार-ए-मोहब्बत पे वो मरम्मत हुई मेरी
पहले था मेरे दिल में, अब घुटने में दर्द है.
महंगाई के दौर में एक राहत की सांस
5 comments:
वाह वाह....
इजहार-ए-इश्क में घुटनों की शामत आ सकती है.....
वाह वाह जी वाह वाह.
ही ही ही
इरशाद-इरशाद! लगता है रचना आपकी मौलिक है.
ghutne ka dard hua laillaj
dil ki baat ab n hogi yaad
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