Friday, 28 March 2008

बैंगन की सायरी

अगर सरकार बैंगन के मुख़ालिफ़ है तो फिर बैंगन
मुज़िर है और अगर हज़रत मुआफ़िक़ हैं तो हाज़िम हैं
बहर सूरत नमक ख़्वारों को बैंगन से तअल्लुक क्या
कि हम सरकार के नौकर हैं हज़रत के मुलाज़िम हैं

(मुज़िर: नुकसानदेह)

- रईस अमरोहवी

4 comments:

Unknown said...

वाह वाह क्या मस्त, अकबरी बर्बरी शेर-ऐ-सस्त ; वैसे कलाम-ऐ-सस्त यूँ भी कहा है - "जब तोप मुकाबिल हो तो बैंगन निकालो [ :-)]

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

शेम-शेम. आप किसके लिए क्या निकल रहे हैं!

डॉ .अनुराग said...

vah vah....

अनूप भार्गव said...

वाह !
बैंगन ने शायद ही सोचा होगा कि कभी उसे भी इतनी गम्भीरता से लिया जायेगा ।