सस्ता शेर में मेरी पहली सस्तत्व को प्राप्त प्रस्तुति, थोड़ी बनाई, थोड़ी चुराई।
समय समय की बात है बकरी मारे लात है काउ खाती घास है दुनिया बड़ी उदास है मुझको इस दुनिया से अब ना कोई आस है फोड़ दूं मैं सिर उसका जो बोले, पोयम मेरी बकवास है।
सस्ती रचना के लिये शुक्रिया,बकवास और सस्ते में ज़मीन आसमान का फ़र्क होता है.... है कि नही?अब तो इसे याद करके मंच पर सुनाने का मन है किसी ने भी बकवास कहा वहीं उसका सिर फ़ोड़ देंगे ठीक है ना...
भाई लोगन, का गजब कर रहे हैं। ब्लॉगवाणी पे दो ठो पसंद दिखा रहा है और यहां एक भी दाद नहीं। मतलब कि टीप नहीं। गुरुजन ऐसा गजब न करें। लोग कहेंगे, खुद ही पसंद टिपियाई होंगी। टिप्पणी तो एको है नहीं। पसंद में क्लिक किए हैं, तो दो लाइन भी लिख दें। और हां, कपार प्यारा हो तो पोयम को बकवास कतई न कहें।
अईसा है कि हम सोच रहे हैं एक ठो कवि सम्मेलन यानी मुसायरा आयोजित कर डालें । जिसमें अईसे अईसे प्रतिभासाली सायरों और सायरिनों को बुला लिया जाए । मनीसा जी अब सुरू हो गयी हैं तो अईसी सायरी आगे भी करिएगा । हम वाह वाह कर रहे हैं यहां से ।
दोस्तो, ये तो आप महसूस करते ही होंगे कि शायरी की एक दुनिया वह भी है जिसे शायरी में कोई इज़्ज़त हासिल नहीं है. ये अलग बात है कि इसी दुनिया से मिले कच्चे माल पर ही "शायरी" का आलीशान महल खड़ा होता है, हुआ है और होता रहेगा. तो...यह ब्लॉग ज़मीन पर पनपती और परवान चढ़ती इसी शायरी को Dedicated है. मुझे मालूम है कि आप इस शायरी के मद्दाह हैं और आप ही इस शायरी के महीन तारों की झंकार को सुनने के कान रखते हैं. कोई भी शेर इतना सस्ता नहीं होता कि वो ज़िंदगी की हलचलों की तर्जुमानी न कर सके. बरसों पहले मैंने इलाहाबाद से प्रतापगढ़ जा रही बस में पिछली सीट पर बैठे एक मुसाफ़िर से ऐसा ही एक शेर सुना था जो हमारी ओरल हिस्ट्री का हिस्सा है और जिसके बग़ैर हमारे हिंदी इलाक़े का साहित्यिक इतिहास और अभिव्यक्तियों की देसी अदाएं बयान नहीं की जा सकतीं. शेर था-- बल्कि है--- वो उल्लू थे जो अंडे दे गये हैं, ये पट्ठे हैं जो अंडे से रहे हैं . .............इस शेर के आख़ीर में बस उन लोगॊं के लिये एक फ़िकरा ही रह जाता है जो औपनिवेशिक ग़ुलामी और चाटुकारिता की नुमाइंदगी कर रहे हैं यानी उल्लू के पट्ठे. --------तो, आइये और बनिये सस्ता शेर के हमराही. मैं इस पोस्ट का समापन एक अन्य शेर से करता हूं ताकि आपका हौसला बना रहे और आप सस्ते शेर के हमारे अपर और लोवर क्राईटेरिया को भांप सकें. पानी गिरता है पहाड़ से दीवार से नहीं, दोस्ती मुझसे है मेरे रोजगार से नहीं. --------------------------------------------- वैधानिक चेतावनी:इस महफ़िल में आनेवाले शेर, ज़रूरी नहीं हैं कि हरकारों के अपने शेर हों. पढ़ने-सुननेवाले इन्हें पढ़ा-पढ़ाया या सुना-सुनाया भी मानें. -------------------- इरफ़ान 12 सितंबर, 2007
सात सस्ते शेर इस महफ़िल में भेजने के बाद आपको मौक़ा दिया जायेगा कि आप एक लतीफ़ा भेज दें. तो देर किस बात की ? आपके पास भी है एक सस्ता शेर... वो आपका है या आपने किसी से सुना इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. बस मुस्कुराइये और लिख भेजिये हमें ramrotiaaloo@gmail.com पर और बनिये महफ़िल के सितारे.
12 comments:
सस्ती रचना के लिये शुक्रिया,बकवास और सस्ते में ज़मीन आसमान का फ़र्क होता है.... है कि नही?अब तो इसे याद करके मंच पर सुनाने का मन है किसी ने भी बकवास कहा वहीं उसका सिर फ़ोड़ देंगे ठीक है ना...
भाई लोगन, का गजब कर रहे हैं। ब्लॉगवाणी पे दो ठो पसंद दिखा रहा है और यहां एक भी दाद नहीं। मतलब कि टीप नहीं। गुरुजन ऐसा गजब न करें। लोग कहेंगे, खुद ही पसंद टिपियाई होंगी। टिप्पणी तो एको है नहीं। पसंद में क्लिक किए हैं, तो दो लाइन भी लिख दें। और हां, कपार प्यारा हो तो पोयम को बकवास कतई न कहें।
Ha ha ha ha ha ha sayari kyaa bchchon kaa khel hai,
Maano yaa na maano tumhare sar mein tel hai
पोयेम बड़ी झकास है.
मेरे सिर में तेल है
ढक्कन छाप खेल है
पटरी पे चलती रेल है
उसमें धक्कम-पेल है
ऊपर से ठेलम-ठेल है
इनबॉक्स में मेल है
बस.... बहुत हो गया.... अब नहीं बन रहा.... लेकिन क्या इतना कम है, मेरी अद्भुत, अनूठी प्रतिभा की पहचान के लिए....
किसकी जुर्रत है, कहे; 'पोयम ये बकवास'
वो भी तब, जब पोयम में काऊ खाए घास
काऊ खाए घास, सर भी फूटने का डर है
पढ़कर ऐसी पोयम, सबकी तबियत तर है
शायरी हो तो ऐसी !
घुघूती बासूती
अईसा है कि हम सोच रहे हैं एक ठो कवि सम्मेलन यानी मुसायरा आयोजित कर डालें । जिसमें अईसे अईसे प्रतिभासाली सायरों और सायरिनों को बुला लिया जाए । मनीसा जी अब सुरू हो गयी हैं तो अईसी सायरी आगे भी करिएगा । हम वाह वाह कर रहे हैं यहां से ।
वाह, वाह, वाह
इरफ़ान दद्दा ई का है !
ई तो बहुतै 'ससता ' है
और इसके जवाब में क्या आपकी वही 'हा हा हा 'है?
आप बोलोगे हां है
तो मुझे उज्र का है
अर्ज किया है-
'अशआर हैंगे बड्ड्डे बदिया ते सस्ते
मनीषा को आदाब सलाम ,नमस्ते!
mat mari gai kya meri
jo saste sher ko bakwaas kahun
padhke is sher ko
mann ki thakaan gai
waah!
पोयम क्यो बकवास होगी ,जो लिखी है आपने”
शब्द नही हैं मेरे पास देने को दाद मे ""
Post a Comment