मेरे दोनों पहाडी बन्धु जोशी एंड तरुण , कर रहे कविता ऐसी जो है बहुत करुण। प्रकृति को बतावें फकत पेड़, पहाड़ -नाले, हैं भंग की पिनक में गलबहियाँ दोनों डाले । जय होली ! सब सस्तों को सब मस्तों को !
13 comments:
Anonymous
said...
क्या बात है क्या बात है बाकि सब दाल भात है हम दोनों बैठे हैं दो हलग कोनों में फिर भी मुनीश कहें हम साथ साथ हैं।
बरसों बाद ऐसी निश्छल , औपचारिकता रहित , केवल ओ' केवल भाव सहित शुभकामना मिल रही हैं ! ब्लूगिस्तान में आना बुरा नही रहा यारों ...... धन्यवाद कहकर आज के दिन ''वाद'' के चक्कर में फसना नही चाहता । इन 'वादों'ने ही मटियामेट कर रखा है सो जय होली जय सस्ता मंडल ! इस kumaoni कवित्त का अनुवाद भी देना काकेश भाई।
क्यों भई मुनीश दा, आप कैसे हो (हालचाल कैसे हैं), हिमाचल से क्या लाओगे, मेरे लिये कुछ मालताल (लाओगे कि नही)।
होली तो चल ही रही है, तुम बड़े भाग्यवान हो, होली तो हर कोई देखना चाहता है, मुझे तो नराई (याद) लग रही है।
होली की बधाई देता हूँ, जीते रहो (खुश रहो टाईप आशीर्वाद), (तुम्हारा सिर बड़ा हो जाय जिसका मतलब होता है कि) तुम बड़े आदमी बनो, और अपने काम में लगे रहो।
फिर अंत में काकेश ने कहा, कभी हमारे घर भी आओ (यहाँ घर से उनका मतलब ब्लोग से है) हमने वहाँ भी होली की अलख जलायी है (मतलब होली के बारे में लिखा है वैसे ही जैसे हमने भी अपने उत्तरांचल बलोग में लिखा है)। आओगे ना बड़े भाई
कहिये कैसी रही? थोड़ी बहुत कुमाऊंनी हमें भी समझ आती है
क्या ब्बात है तरुण ! वल्लाह काकेश के जज़्बे और तुम्हारे तर्जुमे की तारीफ जितनी करूं वो कम है , ऐ काश तुम होते यहाँ अभी बोतल में काफ़ी रम है ! तुम्हारे BLOG पे valley of flowers का video देखा, मज़ा आ गया ।
दोस्तो, ये तो आप महसूस करते ही होंगे कि शायरी की एक दुनिया वह भी है जिसे शायरी में कोई इज़्ज़त हासिल नहीं है. ये अलग बात है कि इसी दुनिया से मिले कच्चे माल पर ही "शायरी" का आलीशान महल खड़ा होता है, हुआ है और होता रहेगा. तो...यह ब्लॉग ज़मीन पर पनपती और परवान चढ़ती इसी शायरी को Dedicated है. मुझे मालूम है कि आप इस शायरी के मद्दाह हैं और आप ही इस शायरी के महीन तारों की झंकार को सुनने के कान रखते हैं. कोई भी शेर इतना सस्ता नहीं होता कि वो ज़िंदगी की हलचलों की तर्जुमानी न कर सके. बरसों पहले मैंने इलाहाबाद से प्रतापगढ़ जा रही बस में पिछली सीट पर बैठे एक मुसाफ़िर से ऐसा ही एक शेर सुना था जो हमारी ओरल हिस्ट्री का हिस्सा है और जिसके बग़ैर हमारे हिंदी इलाक़े का साहित्यिक इतिहास और अभिव्यक्तियों की देसी अदाएं बयान नहीं की जा सकतीं. शेर था-- बल्कि है--- वो उल्लू थे जो अंडे दे गये हैं, ये पट्ठे हैं जो अंडे से रहे हैं . .............इस शेर के आख़ीर में बस उन लोगॊं के लिये एक फ़िकरा ही रह जाता है जो औपनिवेशिक ग़ुलामी और चाटुकारिता की नुमाइंदगी कर रहे हैं यानी उल्लू के पट्ठे. --------तो, आइये और बनिये सस्ता शेर के हमराही. मैं इस पोस्ट का समापन एक अन्य शेर से करता हूं ताकि आपका हौसला बना रहे और आप सस्ते शेर के हमारे अपर और लोवर क्राईटेरिया को भांप सकें. पानी गिरता है पहाड़ से दीवार से नहीं, दोस्ती मुझसे है मेरे रोजगार से नहीं. --------------------------------------------- वैधानिक चेतावनी:इस महफ़िल में आनेवाले शेर, ज़रूरी नहीं हैं कि हरकारों के अपने शेर हों. पढ़ने-सुननेवाले इन्हें पढ़ा-पढ़ाया या सुना-सुनाया भी मानें. -------------------- इरफ़ान 12 सितंबर, 2007
सात सस्ते शेर इस महफ़िल में भेजने के बाद आपको मौक़ा दिया जायेगा कि आप एक लतीफ़ा भेज दें. तो देर किस बात की ? आपके पास भी है एक सस्ता शेर... वो आपका है या आपने किसी से सुना इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. बस मुस्कुराइये और लिख भेजिये हमें ramrotiaaloo@gmail.com पर और बनिये महफ़िल के सितारे.
13 comments:
क्या बात है क्या बात है
बाकि सब दाल भात है
हम दोनों बैठे हैं दो हलग कोनों में
फिर भी मुनीश कहें हम साथ साथ हैं।
होली मुबारक, अगर अभी तक पता नही है तो होली है
हलग को अलग पढ़ें, शायद शनिवार की ठंडाई का असर अभी तक गया नही
दूर रह के भी आप मेरे पास हो, आप अपने हो बन्धु बहुत ख़ास हो !!
होली आपको, आपके परिवार को सबको मुबारक।
किले हो मुनीश दा ,
कस हरीं हाल चाल
हिमाचल बटी के ल्याला
मेरी लिजी माल टाल?
होली तो जागी रै
तुम छा बड़ भागी रे
होली हरै देखण चाण
मुकु नरै लागि रै
होली की बधाई दिनू
जी रया जाग रया
ठूल कपाव तुमर हजौ
काम करण में लाग रया
कभत्ते हमर घर ले आवो हो.वां ले जगा राखि होली अलख. आला ना दाज्यू...
किले हो मुनीश दा ,
कस हरीं हाल चाल
हिमाचल बटी के ल्याला
मेरी लिजी माल टाल?
होली तो जागी रै
तुम छा बड़ भागी रे
होली हरै देखण चाण
मुकु नरै लागि रै
होली की बधाई दिनू
जी रया जाग रया
ठूल कपाव तुमर हजौ
काम करण में लाग रया
कभत्ते हमर घर ले आवो हो.वां ले जगा राखि होली अलख. आला ना दाज्यू...
क्या बात है जी - सबेरे सबेरे रंग भर दिया - आपको भी सपरिवार होली की शुभकामनाएं - [ तेल साबुन बनाने वाली कंपनियों की तरफ़ से भी ]
होली की शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती
बढिया है ,आपको भी होली की शुभकामनाएं !!
आह होली! वाह होली.
मन से भी है अथाह होली.
एक अच्छी पोस्ट के सा्थ ,होली के अच्छे रंग बिखेरे हैं। होली मुबारक।
बरसों बाद ऐसी निश्छल , औपचारिकता रहित , केवल ओ' केवल भाव सहित शुभकामना मिल रही हैं ! ब्लूगिस्तान में आना बुरा नही रहा यारों ...... धन्यवाद कहकर आज के दिन ''वाद'' के चक्कर में फसना नही चाहता । इन 'वादों'ने ही मटियामेट कर रखा है सो जय होली जय सस्ता मंडल ! इस kumaoni कवित्त का अनुवाद भी देना काकेश भाई।
मुनीश, इस कुमाऊंनी कविता का सार कुछ इस तरह है -
क्यों भई मुनीश दा, आप कैसे हो (हालचाल कैसे हैं), हिमाचल से क्या लाओगे, मेरे लिये कुछ मालताल (लाओगे कि नही)।
होली तो चल ही रही है, तुम बड़े भाग्यवान हो, होली तो हर कोई देखना चाहता है, मुझे तो नराई (याद) लग रही है।
होली की बधाई देता हूँ, जीते रहो (खुश रहो टाईप आशीर्वाद),
(तुम्हारा सिर बड़ा हो जाय जिसका मतलब होता है कि) तुम बड़े आदमी बनो, और अपने काम में लगे रहो।
फिर अंत में काकेश ने कहा, कभी हमारे घर भी आओ (यहाँ घर से उनका मतलब ब्लोग से है) हमने वहाँ भी होली की अलख जलायी है (मतलब होली के बारे में लिखा है वैसे ही जैसे हमने भी अपने उत्तरांचल बलोग में लिखा है)। आओगे ना बड़े भाई
कहिये कैसी रही? थोड़ी बहुत कुमाऊंनी हमें भी समझ आती है
क्या ब्बात है तरुण ! वल्लाह काकेश के जज़्बे और तुम्हारे तर्जुमे की तारीफ जितनी करूं वो कम है , ऐ काश तुम होते यहाँ अभी बोतल में काफ़ी रम है ! तुम्हारे BLOG पे valley of flowers का video देखा, मज़ा आ गया ।
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