Friday, 21 March 2008

होरी के हुरियारे !!



मेरे दोनों पहाडी बन्धु जोशी एंड तरुण ,
कर रहे कविता ऐसी जो है बहुत करुण।
प्रकृति को बतावें फकत पेड़, पहाड़ -नाले,
हैं भंग की पिनक में गलबहियाँ दोनों डाले ।
जय होली ! सब सस्तों को सब मस्तों को !

13 comments:

Anonymous said...

क्या बात है क्या बात है
बाकि सब दाल भात है
हम दोनों बैठे हैं दो हलग कोनों में
फिर भी मुनीश कहें हम साथ साथ हैं।

होली मुबारक, अगर अभी तक पता नही है तो होली है

Anonymous said...

हलग को अलग पढ़ें, शायद शनिवार की ठंडाई का असर अभी तक गया नही

मुनीश ( munish ) said...

दूर रह के भी आप मेरे पास हो, आप अपने हो बन्धु बहुत ख़ास हो !!
होली आपको, आपके परिवार को सबको मुबारक।

काकेश said...

किले हो मुनीश दा ,
कस हरीं हाल चाल
हिमाचल बटी के ल्याला
मेरी लिजी माल टाल?

होली तो जागी रै
तुम छा बड़ भागी रे
होली हरै देखण चाण
मुकु नरै लागि रै

होली की बधाई दिनू
जी रया जाग रया
ठूल कपाव तुमर हजौ
काम करण में लाग रया

कभत्ते हमर घर ले आवो हो.वां ले जगा राखि होली अलख. आला ना दाज्यू...

काकेश said...

किले हो मुनीश दा ,
कस हरीं हाल चाल
हिमाचल बटी के ल्याला
मेरी लिजी माल टाल?

होली तो जागी रै
तुम छा बड़ भागी रे
होली हरै देखण चाण
मुकु नरै लागि रै

होली की बधाई दिनू
जी रया जाग रया
ठूल कपाव तुमर हजौ
काम करण में लाग रया

कभत्ते हमर घर ले आवो हो.वां ले जगा राखि होली अलख. आला ना दाज्यू...

Unknown said...

क्या बात है जी - सबेरे सबेरे रंग भर दिया - आपको भी सपरिवार होली की शुभकामनाएं - [ तेल साबुन बनाने वाली कंपनियों की तरफ़ से भी ]

ghughutibasuti said...

होली की शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती

रवीन्द्र प्रभात said...

बढिया है ,आपको भी होली की शुभकामनाएं !!

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

आह होली! वाह होली.
मन से भी है अथाह होली.

परमजीत सिहँ बाली said...

एक अच्छी पोस्ट के सा्थ ,होली के अच्छे रंग बिखेरे हैं। होली मुबारक।

मुनीश ( munish ) said...

बरसों बाद ऐसी निश्छल , औपचारिकता रहित , केवल ओ' केवल भाव सहित शुभकामना मिल रही हैं ! ब्लूगिस्तान में आना बुरा नही रहा यारों ...... धन्यवाद कहकर आज के दिन ''वाद'' के चक्कर में फसना नही चाहता । इन 'वादों'ने ही मटियामेट कर रखा है सो जय होली जय सस्ता मंडल ! इस kumaoni कवित्त का अनुवाद भी देना काकेश भाई।

Anonymous said...

मुनीश, इस कुमाऊंनी कविता का सार कुछ इस तरह है -

क्यों भई मुनीश दा, आप कैसे हो (हालचाल कैसे हैं), हिमाचल से क्या लाओगे, मेरे लिये कुछ मालताल (लाओगे कि नही)।

होली तो चल ही रही है, तुम बड़े भाग्यवान हो, होली तो हर कोई देखना चाहता है, मुझे तो नराई (याद) लग रही है।

होली की बधाई देता हूँ, जीते रहो (खुश रहो टाईप आशीर्वाद),
(तुम्हारा सिर बड़ा हो जाय जिसका मतलब होता है कि) तुम बड़े आदमी बनो, और अपने काम में लगे रहो।

फिर अंत में काकेश ने कहा, कभी हमारे घर भी आओ (यहाँ घर से उनका मतलब ब्लोग से है) हमने वहाँ भी होली की अलख जलायी है (मतलब होली के बारे में लिखा है वैसे ही जैसे हमने भी अपने उत्तरांचल बलोग में लिखा है)। आओगे ना बड़े भाई

कहिये कैसी रही? थोड़ी बहुत कुमाऊंनी हमें भी समझ आती है

मुनीश ( munish ) said...

क्या ब्बात है तरुण ! वल्लाह काकेश के जज़्बे और तुम्हारे तर्जुमे की तारीफ जितनी करूं वो कम है , ऐ काश तुम होते यहाँ अभी बोतल में काफ़ी रम है ! तुम्हारे BLOG पे valley of flowers का video देखा, मज़ा आ गया ।