Tuesday, 25 March 2008

एक सस्त : मौकापरस्त

बिरादर सस्ते गौर फरमाएं, मौसम की सदाएं :

पटखनी दे के छुड़ा देते छक्के अच्छे अच्छों के
बस ज़रा इम्तिहान तो हो जाएं घर के बच्चों के

5 comments:

मुनीश ( munish ) said...

marhaba! qasam se kya bbat hai vaaaaaaaaaaaaaah!

पारुल "पुखराज" said...

ye to bout badhiyaa hai...

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

और बाहर वाले बच्चों का क्या होगा?

Unknown said...

गिन्तियाँ चालू हैं प्रभु - [ :-)]

Unknown said...
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