Saturday, 26 December 2009
देके अमन का पैगाम करते हैं!!
Sunday, 11 October 2009
Wednesday, 30 September 2009
चन्द शेर पेशे ख़िदमत हैं मुलाहिज़ा फ़रमाएंगे?
दिलों पे दोस्ती की हुक़ुमत है !!
आपके प्यार की वजह से ज़िन्दा हैं !
वर्ना खुदा को भी हमारी ज़रूरत है !!
इससे पहले कि दिल में नफ़रत जागे,
आओ इक शाम मोहब्बत में बिता दी जाय
करके कुछ मोहब्बत की बातें
इस शाम की मस्ती बढ़ा दी जाय
न जाने तुम पे इतना यकीं क्यौं है?
तेरा ख्याल भी इतना हसीं क्यौं है,
सुना है प्यार का दर्द मीठा होता है,
तो आँखों से निकले ये आँसू नमकीन क्यौं है !!
सभी को सब कुछ नहीं मिलता !
नदी की हर लहर को साहिल नहीं मिलता !!
ये दिल वालों की दुनियाँ है दोस्त !
किसी से दिल नहीं मिलता !!
तो कोई दिल से नहीं मिलता !
Sunday, 6 September 2009
कुछ अच्छे किस्म के सस्ते शेर
कुछ तमन्ना-ए-ज़िन्दगी सिखा देती है !!
हम किस तमन्ना के सहारे जीयें !
ये ज़िन्दगी हर तमन्ना टुकरा देती है !!
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आपकी याद में मुरझाए फूल पर बहार वही है !
आप दूर रहते हों मगर मेरा प्यार वही है !!
जानते हैं मिल नहीं पा रहे हैं आपसे !
मगर इन आँखों में इंतिज़ार वही है !!
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मेरे ख्वाबों में आना आपका कुसूर था !
आपसे दिल लगाना हमारा कुसूर था !!
आप आए थे ज़िन्दगी में पल दो पल के लिये !
आपकों ज़िन्दगी समझ लेना हमारा कुसूर था !!
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दिन बीत जाते हैं सुहानी यादें बनकर !
बातें रह जाती हैं कहानी बनकर !!
पर प्यार तो हमेशा दिल के करीब रहेगा !
कभी मुस्कान तो कभी आँसू बनकर !!
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Saturday, 22 August 2009
किस!!!
किस किस्सने किस किस्सको किस-किस तरह किस किया...
एक हम है जिसने हर किस को मिस किया..
और एक आप हो जिसने हर मिस को किस किया..
Monday, 17 August 2009
Friday, 24 July 2009
दिलों से खेलने का हुनर हम नहीं जानते
इसलिये इनकी बाज़ी हम हार गये,
मेरी ज़िन्दगी से शायद उन्हें बहुत प्यार था
इसीलिये मुझे ज़िन्दा ही मार गये,
Thursday, 16 July 2009
निहायत ही सस्ता शेर
न एस एम एस करना ,बात भी नहीं करना !!
मिलने की कोशिश तो भूल कर भी मत करना !
क्यौंकि डॉक्टर ने मुझे !!
मीठी चीज़ से दूर रहने को कहा है !!!!
Friday, 19 June 2009
तू मुझको टिपिया सनम, मैं तुझको टिपियाउं
इन दिनों हमारे ब्लाग जगत में एक अजीब सी परंपरा चल रही है । ये परंपरा है महान बनाने की परंपरा । अ की टिप्पणी ब को मिलती है कि आप महान हैं तो जवाब में ब की भी नैतिक जिम्मेदारी होती है कि वो भी अ को ऐसी ही टिप्पणी दे । सब एक दूसरे को महान बनाने में जुटे हैं । आइये इसी पर एक कुंडली नुमा रचना देखें ।
तू मुझको टिपिया सनम, मैं तुझको टिपियाउं
तू महान बन जायेगा, और मैं भी हो जाउं
'और मैं भी हो जाउं', मेरे बनवारी सैंया
देकर टिप्पणियों का बादल, कर दे छैंया
कह 'धौंधू कवि', ये है टिप्पणियों का जादू
तू कहता मैं आलिम हूं और मैं कहता तू
सस्ती शायरी के फ़ायदे
Thursday, 18 June 2009
ब्लागिंग ब्लागिंग खेलिये सुबह दोपहर शाम
हमारे एक मित्र को डाक्टर के पास ले जाना पड़ा दरअसल में उनको मानसिक कब्ज़ हो गया था । शारीरिक कब्ज़ तो आप जानते ही हैं । मानिसक कब्ज़ में दिमाग में विचार फंस जाते हैं और भड़ास की तरह बाहर नहीं निकलते । डाक्टर ने उनको जो पर्चा दिया वो प्रस्तुत है ।
ब्लागिंग ब्लागिंग खेलिये सुबह दोपहर शाम
और नहीं गर आपको दूजा कोई काम
दूजा कोई काम, धरम पत्नी ना पूछे
चले आओ कम्प्यूटर पर तुम आंखें मींचे
कह 'धौंधू कवि' जहां न कोई लेता रेगिंग
ऐसा इक कालेज हमारा है ये ब्लागिंग
Wednesday, 17 June 2009
घर के बुद्धू लौट के घर को आजा
बहुत दिनों से इस गली में आना ही नहीं हुआ । आज बहुत दिनों बाद आया हूं और एक कुंडलिनी टाइप की रचना पेल रहा हूं । कुडलिनी की विशेषता ये होती है कि जिस शब्द से शुरू होती है उसी पर समाप्त होती है ।
माही जी की ना गली टी ट्वन्टी में दाल
फिर भी हैं बेशर्म ये गेंडे सी है खाल
गेंडे सी है खाल, भाये पैसे की खन खन
किरकिट खेले बिन भी मिलते हैं विज्ञापन
कह 'धोंधू' कविराय, हो चुकी खूब उगाही
घर के बुद्धू लौट के घर को आजा माही
Monday, 15 June 2009
आशिक का जनाज़ा उर्फ़ महबूबा की राहत
Saturday, 13 June 2009
मोहब्बत जुर्म नहीं अगर की जाए उसूल से
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मोहब्बत जुर्म नहीं अगर की जाए उसूल से
ख़ुदा को भी तो मोहब्बत थी अपने रसूल से
लेकिन अबकी बार ईद पर हमारे सितारे हमारी हड्डियां तुड़वा गए
हम चाँद के नजारे में खोए थे और चाँद के अब्बू वहीं पर आ गए.
(कहीं से उड़ाया है, जाओ नहीं बताते)
Tuesday, 2 June 2009
"लालू" के सपोर्ट जैसा कुछ समझता है
सिवा आशिक़ मेरा हमदम मुझे सबकुछ समझता है
मुझे इस तरह करता ट्रीट है हर तीसरे दिन वो
कि गोया "लालू" के सपोर्ट जैसा कुछ समझता है
Tuesday, 26 May 2009
है बम के साथ साथ मुहब्बत भी एटमी !!
Friday, 15 May 2009
Tuesday, 12 May 2009
'नन्हें' कसाई...
Saturday, 9 May 2009
क़लम & कलम...
Thursday, 7 May 2009
Tuesday, 5 May 2009
मैं मर भी न पाऊँगा अब ज़हर खाके...
Sunday, 3 May 2009
आम के आम
आइए जी चटनी खायें सुबह और शाम।
(कृपया इसको पूरा और ग़ज़ल का रूप देने में मदद करें । अच्छा इनाम भी पायें!)
Monday, 27 April 2009
उसे उर्दू जो आती तो मुझे कच्चा चबा जाता....
तुम्हारी माँग भरने को सितारे तोड़कर लाता,
बहा डाले तुम्हारी याद में आँसू कई गैलन,
अगर तुम फ़ोन न करतीं यहाँ सैलाब आ जाता,
तुम्हारे नाम की चिट्ठी तुम्हारे बाप ने खोली,
उसे उर्दू जो आती तो मुझे कच्चा चबा जाता,
तुम्हारी बेवफाई से बना हूँ टाप का शायर,
तुम्हारे इश्क में फँसता तो सीधे आगरा जाता,
ये गहरे शे’र तो दो वक़्त की रोटी नहीं देते,
अगर न हास्य रस लिखता तो हरदम घास ही खाता,
हमारे चुटकुले सुनकर वहाँ मज़दूर रोते थे,
कि जिसका पेट खाली हो कभी भी हँस नहीं पाता,
मुहब्बत के सफर में मैं हमेशा ही रहा वेटिंग,
किसी का साथ मिलता तो टिकट कन्फर्म हो जाता,
कि उसके प्यार का लफड़ा वहाँ पकड़ा गया वर्ना,
नहीं तो यार ये क्लिंटन हज़ारों मोनिका लाता....
Sunday, 26 April 2009
मुंशी मुनक़्क़ा साहब का अगला कता
पिछली ख़ता को माफ़ फ़रमाते हुए
अगला कता फ़रमाते हैं-
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मैं क्यों बनवाऊँ मोची से
ख़रीदूं क्यों मैं बाटा से
जुमा के दिन तो हर मसजिद में
हर कीमत का मिलता है.
Friday, 24 April 2009
पेश है मुंशी मुनक़्क़ा साहब का एक कता
मुग़ल-ए-आज़म और पाकीजा जैसी फिल्मों में उन्होंने काम किया था.
मुनक़्क़ा साहब सिर्फ अभिनेता नहीं थे बल्कि मजाहिया शायरी भी किया करते थे.
पेश-ए-खिदमत है उनका कता-
कभी इज्ज़त का मिलता है
कभी ज़िल्लत का मिलता है
मगर मजबूत और बढ़िया
बड़ी बरकत का मिलता है.
Wednesday, 22 April 2009
Tuesday, 14 April 2009
Sunday, 12 April 2009
एक बार फ़िर

Friday, 10 April 2009
Thursday, 9 April 2009
सस्ता शेर के लिएइंतखाब के नवाब
साथ अपने पांच साला इंकलाब लाये हैं
रोटी की शिकायत क्या खाक करते हैं
ये तो फिरंगी जूस का सैलाब लाये हैं
आपको फुर्सत नहीं ढाई आखर पढ़ने की
ये आलमी भाईचारे का किताब लाये हैं
जुल्म-सितम की अब कभी बात न होगी
ये अमन-ओ-चैन वाला जुर्राब लाये हैं
किस्मत आप फूटी है, इन्हें क्यों कोसना
ये बूढ़ों को जवान करने का हिसाब लाये हैं
अब कहने की ज़रूरत नहीं कि गरीब हैं
हमसाथ अपने ये दौलत बेहिसाब लाये हैं
चंद दिनों की बात है, फिर आप ही कहेंगे
इंतखाब के जरिये नया नवाब लाये हैं
नदीम अख्तर
द पब्लिक एजेंडा
Wednesday, 8 April 2009
आ जाये मुसीबत....
ककहरे का कहर
Monday, 6 April 2009
Friday, 27 March 2009
इत्ता गंदा मत सोचा कर...
Tuesday, 24 March 2009
बिना ऊंट के रेगिस्तान मुकम्मल नहीं होता
बिना मुर्दे के कब्रिस्तान मुकम्मल नहीं होता
बिना मुश के पाकिस्तान मुकम्मल नहीं होता
और, तारीख गवाह है, बुत परस्तों के लिए
बिना बुद्ध के बामियान मुकम्मल नहीं होता
हर अच्छाई के बाद बुराई भी जरूरी है, क्योंकि
बिना मुफ्तखोरी के शैतान मुकम्मल नहीं होता
शाया शेर को सराहें न सही, पर यह भी सोचें
बिना दाद के कोई खाकसार मुकम्मल नहीं होता
-Nadeem Akhtar
Public Agenda
Tuesday, 10 March 2009
Monday, 9 March 2009
किसको सींचूँ सोचे पानी?
Friday, 13 February 2009
मुझे कोई ऐसा क़माल दे बाबा...
जो हर आफ़त को टाल दे बाबा,
कम आमदनी से घर नहीं चलता,
मेरी भी लाँटरी निकाल दे बाबा,
दिल में कोई हसरत बाकी ना रहे,
मुझको इतना सारा माल दे बाबा,
घरवाली के हाथ न लग जाएँ कहीं,
बाहरवाली के ख़त सँभाल दे बाबा,
जो माँगें तेरे बस की न हों ,
बेहतर है कल पे टाल दे बाबा.....
Wednesday, 11 February 2009
नज़्म - 'बक़रा'
क़ाश! मैं भी ऐ बकरे तेरा मालिक होता,
तो बड़े नाज़ से नखरे से बड़ी शान के साथ,
दिखा के सबको मुहल्ले में नहलाता तुझको,
तेरे दो दाँत मैं सब ही को दिखाया करता,
जब कभी सोच में डूबा मैं तुझे घुमाया करता,
तो फिर मूड मे सींगें तू मुझे मारा करता,
मैं तेरे हमलों की शिद्दत से भड़क सा जाता,
जब कभी रात को तू भागने की कोशिश करता,
मैं तेरे कान पकड़ के तुझे लातें धरता,
फिर तेरी दाढी पकड के प्यार से तुझे डाँटा करता,
"अब बता बँधी रस्सी तोड़ के जायेगा क्या?"
मुझे बेताब सा रखता तेरे भागने का नशा,
तू मेरे घर में हमेशा ही गंद मचाता रहता,
तेरी मेंगनी से मेरा घर बस्साता रहता,
कुछ नहीं तो बस तेरा बेनाम सा आशिक़ होता,
क़ाश! मैं भी ऐ बकरे तेरा मालिक होता...
Monday, 9 February 2009
तुम्हारा छोकरा तो लोफ़र दिखाई देता है...
वो खाकसार का लेटर दिखाई देता है,
हज़ार बार तुम करो तारीफ़ लेकिन मौलाना,
तुम्हारा छोकरा तो लोफ़र दिखाई देता है,
कहीं ये मेरी वफ़ाओं का सिला तो नहीं है,
जो ओखली में मेरा ही सर दिखाई देता है,
ये कपडे पहनने का ढब तुम्हारा माशाअल्लाह!,
तुम्हारा जिस्म तो क्लीयर दिखाई देता है,
जतन हज़ार किये तब जा के चढीं हाँडियाँ,
भूखे नंगों को तो बस लंगर दिखाई देता है,
मिलेगा 'पद्म-श्री' का अवार्ड 'सस्ते' को,
ये तो 'A' ग्रेड का जोकर दिखाई देता है...
Friday, 6 February 2009
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर...
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,
याद कर पछतायेगा तू मेरे घर पैदा न हो,
तुझको पैदाइश का हक़ तो है मगर पैदा न हो,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,
हमने ये माना पैदा हो गया, खायेगा क्या,
घर में दाने ही नहीं पायेगा तो भुनवायेगा क्या,
इस निखट्टू बाप से माँगेगा तो पायेगा क्या,
देख कहा मान ले, जाँ-ए-जबर पैदा न हो,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,
यूँ भी तेरे भाई-बहनों कि है घर में रेल-पेल,
बिलबिलाते फिर रहे हैं हर तरफ़ जो बे-नकेल,
मेरे घर के इन चरागों को मयस्सर कब है तेल,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो,
पालते हैं नाज़ से कुछ लोग कुत्ते बिल्लियाँ,
दूध वो जितना पियें और खायें जितनी रोटियाँ,
ये फ़िरासत* ऐ मेरे बच्चे मुझे हासिल नहीं,
उनके घर पैदा हो और बन के बशर पैदा न हो,
ऐ मेरे बच्चे मेरे लख्ते-जिगर पैदा न हो...
*फ़िरासत= क़ूव्वत,क्षमता,हैसियत
Wednesday, 4 February 2009
जो ताकतवर हो...
कमज़ोर दोस्तों को पहलवान कहना ही पड़ता है,
जो रिश्तेदार अपने घर जाने का नाम ना लें,
मज़बूरी में उन्हें मेहमान कहना ही पड़ता है,
घर वाली को खुश रखने की खातिर अक्सर,
उसे "तू है मेरी जान" कहना ही पड़ता है,
जिसने ज़िंदगी भर हसीनों के सैंडल सहे हों,
ऐसे आशिक़ को पार्टी की शान कहना ही पड़ता है..
Monday, 26 January 2009
गणतंत्र दिवस की सभी भारतवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं
Friday, 23 January 2009
...किसका था?
गुलाम अली की गाई एक बड़ी पुरानी ग़ज़ल है. आपने सुनी ही होगी. घबराइए मत, मैं वह आपको सुनवाने नही जा रहा हूँ. मैंने तो बस उसका एक कलजुगी संस्करण तैयार किया है. मैं यहाँ वही ठेल रहा हूँ. अगर आप झेल सकते हैं तो झेलें. आगे तो समझदार हैं ही ख़ुद ही समझजाएँगे की मैं किस ग़ज़ल की बात कर रहा था:
- तुम्हारे छत में नया ik धडाम किसका था
- न था अमीन तो आख़िर वो काम किसका था
- लिखा न बिल में वो खर्च मगर कर्ज रहा
- मुनीम पूछ रहा है मकान किसका था
- वफ़ा करेंगे निभाएँगे बात मानेंगे
- हमें तो याद नहीं ये कलाम किसका था
- गुजर गया वो जनाना कहूं तो किससे कहूं
- रयाल दिल से मेरे सुबहो-शाम जिसका था
मत जान बूझ अनजान बनो
तुम हो मेरी जीवन रेखा
न मरने का सामान बनो
मत जान बूझ अनजान बनो
मैं बनू तुम्हारी केटरीना
और तुम मेरे सलमान बनो
मत जान बूझ अनजान बनों
मैं बन जाऊं पालक-पनीर
तुम पूरी या फ़िर नॉन बनों
मत जान बूझ अनजान बनों
जहाँ मुर्दे भी रोमांस करें
तुम ऐसा कब्रिस्तान बनों
मत जान बूझ अनजान बनों
Sunday, 11 January 2009
बकबक
आपकी बकबक, इनकी बकबक ,उनकी बकबक।
बर्दाश्त की हो गई है हद,खामोश हो जा ,या
और बक ,खूब बक , मेरी बला से करेजा बकबक।