Monday 31 March 2008

रम पियो तो आये मजा.

महफिल में एक शेर अर्ज़ है.दो पैग पीने के बाद.

हम को भी रम ने मारा , तुम को भी रम ने मारा
हम को भी रम ने मारा , तुम को भी रम ने मारा
हम को भी रम ने मारा , तुम को भी रम ने मारा
आओ ये पव्वा खतम कर, हम रम को मार डालें

हाथ हम मिलाये क्यो ??



" जब दील हि ना मिले तो हाथ हम मिलाये क्यो ""

दोस्ती दिखावे की बताओ हम निभाये क्यो ।

Sunday 30 March 2008

इश्क, इजहार, इंटरनेट

इश्क, इजहार, इंटरनेट (बड़ा अनुप्रास-मय है न!)...इनके बारे में पॉपुलर मेरठी साहब क्या कहते हैं....पढ़िए..

तौबा तौबा प्यार का इजहार टेलीफोन पर
दोस्तों से करना जिक्र-ए-यार टेलीफोन पर
चार आशिक कर रहे थे तस्करा माशूक का
एक जैसी गुफ्तगू थी चार टेलीफोन पर


इतने हकले थे कि हाल-ए-दिल न कह पाये मगर
अब धड़ा-धड़ करते हैं इजहार इंटरनेट पर
लाला मिट्ठन भी, मियां कल्लन भी बैठे हैं वहाँ
काटते हैं अपना सब इतवार इंटरनेट पर

मेरे, तुम्हारे और हमारे

इरादा पुरा हैं आपसे मिल के बतियाने का
पर क्या करे ,किराया ज्यादा हैं आने जाने का""
खैर यही से कुछ पँक्तियाँ अर्ज करता हूँ ,इर्शाद फ़रमाये""

एक विधवा के तीन बच्चे ,सब अच्छे ’
एक विधुर के तीन बच्चे ,सब अच्छे ’
विधवा ने विधुर से शादी की’उनके हुये तीन बच्चे ’
इस प्रकार नौ बच्चे सब अच्छे"
एक दिन पत्नी ने पति को फ़ोन लगाया’
कहा प्राणनाथ आप जल्दी घर आइये
आप वहाँ कलम घसीट रहे हैं’
और यहाँ मेरे बच्चे और तुम्हारे बच्चे
मिलकर हमारे बच्चे को पीट रहे हैं ।

Saturday 29 March 2008

मयख़ानवी का बचपन !


था बचपन भी क्या खूब के 'मयख़ानवी' बड़े लाड़ में रहा
फिर तो उम्र तमाम बस दाल रोटी रायते के जुगाड़ में रहा !

बिजली जाती है तो पानी भी चला जाता है

पॉपुलर मेरठी साहब बुढ़ापे में प्यार घट जाने के बारे में क्या कहते हैं? देखिये....

अपनी बीवी को सलीके से वो समझाता है
ये तो सच है कि जवानी में मज़ा आता है
प्यार घट जाए बुढ़ापे में तो हैरत कैसी
बिजली जाती है तो पानी भी चला जाता है

खुद्दार हो गये "

सबसे पहले अपनी महफ़ील मे शामिल करने के लिये धन्यवाद ,,
कही पढा हुआ शेर अर्ज किया हैं
अब और क्या गिरायेगा कोइ निगाह से "
इतने हुए जलील कि खुद्दार हो गये""

इज़हार-ए-मोहब्बत

कई बरस पहले एक दोस्त ने मोहन मीकिन्स कम्पनी की एक डायरी गिफ़्ट की थी। उस में एक उम्दा सस्ता शेर था। मुझे हैरत है वह अब तक यहां कैसे नहीं पहुंचा:

इज़हार-ए-मोहब्बत पे वो मरम्मत हुई मेरी

पहले था मेरे दिल में, अब घुटने में दर्द है.

Friday 28 March 2008

नयन लडाऊ शेर !


तूफाँ से लड़-लड़ के ऐ मयखान्वी कश्ती सागर पार होती है
बच के रहना मगर उन नैनों से कि जिनमें धार होती है !

--मायाखान्वी

बैंगन की सायरी

अगर सरकार बैंगन के मुख़ालिफ़ है तो फिर बैंगन
मुज़िर है और अगर हज़रत मुआफ़िक़ हैं तो हाज़िम हैं
बहर सूरत नमक ख़्वारों को बैंगन से तअल्लुक क्या
कि हम सरकार के नौकर हैं हज़रत के मुलाज़िम हैं

(मुज़िर: नुकसानदेह)

- रईस अमरोहवी

तेरी याद

तेरी याद आज भी रह रह कर कुछ इस तरह आ जाती है
कि जैसे म्युनिसपलटी के बन्द पड़े नल से
कभी कभी पानी की बूँद अनायास टपक जाती है ।


अनूप भार्गव

Thursday 27 March 2008

धरती- धसान शेर


तीर पै भी भारी दोस्त कभी कमान होती है ,
के
शीरीं-लब भी कोई ज़ालिमा धरती-धंसान होती है !
--मयखान्वी

बोतल बनाम पव्वा




बोतल से नहीं परहेज़ मुज्को मगर......
बोतल से नहीं परहेज़ मुज्को मगर......
पव्वा ज़रा TRENDY है , खीसे में समा जाय है ये आइटम घना HANDY है !!
--मयखान्वी

मगर फ़िर भी

दो ये शेर फिराक साहब की ओर से. उन्होंने काफी पहले एक ग़ज़ल लिखी थी. उसमें बाद में कुछ सुधार कर दिया है स्वर्ग से चलाए जा रहे अपने ब्लॉग में उन्होंने यह संशोधन लागू किया है. संशोधन सहित यह पेश है आपके लिए भी:
रम हो या विस्की सबका पव्वा है, मगर फ़िर भी
हर कोई चाहता है यहाँ पूरी बोतल फ़िर भी
हजार बार दारू का ठेकेदार इधर से गुजरा है
हजार बार खाली रहा मेरा सागर फ़िर भी

वफ़ा की तलाश में 'शमशान' जा रहे थे

'सस्ते शायरों के बादशाह' बिल्लू बादशाह के बारे में मैंने पहले बताया था. उनका एक और शेर 'सुनिए'...

इंसान के कन्धों पर इंसान जा रहे थे
कफ़न में लिपटे कुछ अरमान जा रहे थे
जिन्हें मिली थी बेवफाई हमेशा प्यार में
वफ़ा की तलाश में 'शमशान' जा रहे थे

Tuesday 25 March 2008

welcome to मयखाना !!


कह दो को कि हम नहीं हैं यहाँ ये हमने बोल रक्खा है ,
' ये भी बताओ साथ में के मैखाना खोल रक्खा है !

एक सस्त : मौकापरस्त

बिरादर सस्ते गौर फरमाएं, मौसम की सदाएं :

पटखनी दे के छुड़ा देते छक्के अच्छे अच्छों के
बस ज़रा इम्तिहान तो हो जाएं घर के बच्चों के

अब इश्क नहीं मुश्किल, बस इतना समझ लीजिये

सागर खय्यामी साहब कहते हैं कि 'उनके जमाने' का इश्क कुछ और था. आग का दरिया था जिसमें से डूबकर जाना पड़ता था. आज का इश्क बहुत आसान है. कहते हैं;

अब इश्क नहीं मुश्किल, बस इतना समझ लीजिये
कब आग का दरिया है, कब डूब कर जाना है
मायूस न हों आशिक, मिल जायेगी माशूका
बस इतनी सी जहमत है, मोबाइल उठाना है

या नया कोई तमाशा है ...

अर्ज़ किया है :

वो मैय्यत पे मेरी आये और झुक के कान में बोले
सचमुच मर गये हो या नया कोई तमाशा है .........




अनूप भार्गव

Monday 24 March 2008

आइये कुछ रायता फैलाया जाए


मजाज़ लखनवी

होली में विभिन्न प्रकार के साधनों की सहायता से टुन्न होने का सत्कर्म करने वालों को रायते का महात्म्य भली भांति मालूम है।


'शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ' लिखने वाले मरहूम शायर मजाज़ साहब पैरोडियां बनाने में एक्सपर्ट की हैसियत रखते थे। एक दावत में उन्होंने रायते पर कई शेर कहे थे। अलग अलग शायरों की स्टाइल में कहे गए इन शेरों में दो मुझे अभी तलक याद हैं। फैज़ साहब की ज़मीन पर शेर देखें:

"तेरी अन्गुश्त-ऐ-हिनाई में अगर रायता आए
अनगिनत जायके याल्गार करें मिस्ल-ऐ-रकीब"

(यानी अगर तेरी मेंहदी लगी उँगलियों पर रायता लग जाए तो तमाम स्वाद शत्रुओं की तरह आपस में आक्रमण करने लगें।)

ख़ुद अपने एक शेर को मजाज़ साहब ने इस तरह रायतामय बनाया:

"बिन्नत-ऐ-शब-ऐ-देग-ऐ-जुनून रायता की जाई हो
मेरी मगमूम जवानी की तवानाई हो"

फिराक साब की ज़मीन पर फकत एक मिसरा है। सस्ते भाई लोग उसे पूरा कर सकते हैं:

"टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम ..."

इन दिनों इस जबरजस्त बिलाग पर लगातार फैल रहे रायते को और भी अगली ज़मीनों तक फैलाये जाने की शुभेच्छाओं के साथ सारे मिल कर बोलें: बोर्ची की जय!!!

Saturday 22 March 2008

हिमालयी सितारे !!





किसी ब्लोगान्जना (ब्लॉग जैसे मादक 'अंजन' याने कजरे से सजे हैं नयन' जिसके ) की स्मृति में दो लाईनों की 'एक ब्लोगांजलि' भेंट की और तस्वीर प्रिटी जी की लगा दी के ''दरबार--जालिम '' के प्रणेता सुनील डोगरा 'ज़ालिम' ने चेताया ''ज़रा...संभल के..........''। हमारे क़ाबिल दोस्त ज़ालिम चूंकि एक पत्रकार हैं सो उनका कहा मायने रखता है भाई !चूंकि प्रिटी उनके राज्य की हैं सो उनके कहे का वज़न भी दो मन अढाई सेर और बढ़ जाता है । सो उनको बता दें भाई के वो इससे अन्यथा न लेवें चूंकि प्रिटी के इलाके की यात्रा का चर्चा यहाँ कई दिन से गर्म था और उनकी कोई फोटू हमने यहाँ चेपी न थी, वजह --हम नहीं चाहते थे कि कोई हमसे कहे कि हमने ख़ुद की मशहूरी के लिए एक
फिलमी हस्ती का दामन थामा। सो ये तो प्रिटी जी के चाहने वालों का दबाव था के भाई उनका उनका एक 'मरहबा' फोटो हमने यहाँ चेपा । बाक़ी उनके एक fan हम भी हैं चूंकि हमारे प्रिय हिमालयी इलाके की हैं और उनके अलावा मनीषा कोइराला और डैनी ही हिमालय की वादियों से फिल्मी हस्ती हुए हैं । वैसे ये जान कर हैरत होती है कि जिन प्रदेशों के युवा सबसे सुंदर और स्वस्थ हैं उन्हें ही फ़िल्म उद्योग ने नकारे रखा है चूंकि वो छल कपट और चापलूसी में आगे नहीं हैं और बिना इन खासियतों के तो फिलिम line में गुज़ारा है नहीं। एक बार हमारी एक मित्र डैनी साहब से FM कि खातिर एक interview कर रही थीं । उन्होंने पूछा आपका फ़िल्म नगरी का पहला अनुभव कैसा रहा तो आपने बताया कि पुणे से फ़िल्म अभिनय का डिप्लोमा लेकर जब वो मुम्बई आए तो पता लगा कि फलां फ़िल्म में एक पहाडी आदिवासी नौजवान का रोल है वो उन्हें मिल सकता है और उनका चयन भी हो गया मगर शूटिंग पे पहुंचे तो पाया सुजीत कुमार का make up हो रहा है उनकी आँखें छोटी दिखाने के लिए और रोल तो उन्हें दे दिया गया है !!!यानी एक बना बनाया character और एक्टिंग trained नौजवान सिफारिश के बिना मिला मिलाया रोल खो बैठा । फ़िर उनकी पहली फ़िल्म आई 'धुंध' जिसमे उनके उबलते आक्रोश कि वजह यही अनुभव बना । आपने देखी है ? बढ़िया murder मिस्ट्री है साहब !! बाक़ी फ़िर कभी ! तरुण ने अपने ब्लॉग पर कुछ लोकल video लगाये हैं उन्हें देखें और सोचें की उनमे नाच रहे कलाकारों को कोई mainstream बॉलीवुड director मिल जाए तो ?? हिन्दी सिने जगत का बासी सडा- पन दूर होगा और क्या !

हाय तेरी ब्लॉग सी आँखें !


देखता हूँ जिधर बेवफा बस एक तुझको वहां पाता हूँ
एक ब्लॉग सा है तेरी आंखों में जिसमे खो सा जाता हूँ

हम न खेलेंगे होली मगर ...................





हम खेलेंगे होली- वोली रहने दे यार छोटू ,
तुम लोग खेलो हम खेंचेंगे तुम्हरा फोटू !

Friday 21 March 2008

संदेह अलंकार का एक उदाहरण

मुझे बताओ ये अंग्रेजी की बोतल में देसी की बू क्या है

हम तो हिन्दी की जानते थे, अंगरेजी की लू क्या है

कह रहे हैं मनीष की ऐसे ही गए थे, चलो मान ली

पर जिसके लिए न जाए कोई एक्स्क्लुसिव्ली, वो खूबरू क्या है?

आज उसकी ही जेब से पौवा निकला

एक शायर हैं. नाम है बिल्लू बादशाह. आज ही उनकी किताब के बारे में मेरे मित्र सुदर्शन ने बताया. बिल्लू बादशाह जी के शेरों का एक नमूना देखिये.....

जिसे समझते थे कोयल वो कौवा निकला
जिसे समझते थे दोस्त, वो हौवा निकला
जो मुझे हरदम रोकता था शराब पीने से
आज उसकी ही जेब से पौवा निकला

होरी के हुरियारे !!



मेरे दोनों पहाडी बन्धु जोशी एंड तरुण ,
कर रहे कविता ऐसी जो है बहुत करुण।
प्रकृति को बतावें फकत पेड़, पहाड़ -नाले,
हैं भंग की पिनक में गलबहियाँ दोनों डाले ।
जय होली ! सब सस्तों को सब मस्तों को !

Thursday 20 March 2008

रोहडू(हिमाचल प्रदेश ): फोटू - माला : भाग ३------ TRP की खातिर





'' पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाडों के कभी काम नि आनी '' चौकीदार परमेशरी निर्विकार भाव से बीडी
सुलगाते हुए कहता है । ''उसकी बात में दम है बॉस ! '' मेरा कजिन रोह्डू के ताज़े सेब का लुत्फ़ लेते हुए सुर में सुर मिलाता है । मैं हठेश्वरी मन्दिर के करीब बहती बिष -कुल्टी को देखते हुए हैरान होता हूँ की इसे विष की नदी क्यों कहा गया । ये भी तो और नदियों की तरह वनस्पति और पशु, पक्षी को पोसती है ,इंसान की भी प्यास बुझाती है । सेब , हठेश्वरी मन्दिर और प्रिटी जिंटा के अलावा रोह्डू का कोई और' क्लेम टू फेम ' नहीं है । सैलानी यहाँ कम ही आते हैं । गए साल ' रोड एंड्स हियर ' लिखे बोर्ड तक पहुँच कर हमने जाना की जगह का नाम टिर्की
है । आगे भी सड़क बनेगी बताते हैं ''चान्सल तक जैगी साब्ब जी , उधर दुनिया का सबसे बड़ा रिजोर्ट बनेगी बरफ का खेल की '' सड़क महकमे का ओवेरसीर कहता है । '' ''यानी हम लोग यहाँ सही टाइम पे आ गए बाऊ जी वरना कल को यहाँ भी वही रंड -रोना शुरू हो जाना हैगा '' कजिन हिमांशु कहता है और मैं सब पहाडों की इक्लोती पसंद capstan का कश खींचते हुए कहता हूँ '' बात में दम है बॉस'' !

Wednesday 19 March 2008

preity zinta village :एक्सक्लूसिव






मोअज्जिज़ मेम्बरान-ऐ -ब्लोगान हमारे क़ाबिल दोस्त जनाब इष्टदेव सांकृत्यायन ने पूछा है के हम रोह्डू इन
हिमाचल परदेश आखिर करने क्या गए थे ? ये बहोत अहम् सवाल है योर ऑनर चूंकि हम पहले ही बता चुके थे के हम वहां प्रिटी जिंटा का गाँव देखने गए थे !
चूंकि जनाब इष्टदेव एक पत्रकार हैं इसीलिए शक करना उनकी आदत है और उनकी ये आदत बिल्कुल वाजिब है , उनका शक बिल्कुल बा-बुनियाद है । दरअसल हम तो यूं ही आदतन तफरीह की गरज से वहां गए थे और वहीं जाकर हमने ये जाना के सनीमे की मशहूर अदाकारा प्रिटी जिंटा उसी तहसील रोह्डू की हैं जहाँ हम तीन रोज़ से झख मार रहे थे । '' क्यों गुरु क्या प्रिटी जी अब भी यहाँ आती हैं ?" जब मेरे कजिन ने ये सवाल हठ कोटी में वाके ब्रिज गेस्ट हाउस के chowkidaar परमेशरी प्रजापत से पूछा तो उसी ने हमसे कहा '' बचपन में आते होते थे जी , अब तो बड़े आदमी हो गए हैं , हाँ जी उनकी माता जी गाँव पुज्याली में रहते हैं वो जरूर आंदे हैं मंदर मत्था टेकन वास्ते "
तो साहेबान आज हमने आपको सवेरे ही उस मंदर की एक्सक्लूसिव फोटू दिखा दी थीं । वो फोटू जो और किसी ब्लोगिए के पास नहीं हैं । हम आपको और भी सोनी सोनी फोटू दिखाना चाहते हैं , देखते रहिये सस्ता शेर चूंकि चीता भारत से लुप्त हो चुका है और इसीलिए काफ़ी महंगा है।

एक हृष्ट-पुष्ट दोहा

पेल-ए-खिदमत है:-

जब वो थीं तब मैं नहीं, अब मैं हूँ वो नाहिं,
दोनों की साइज़ विकट, इक घर में न समाहिं.

--विजय डनलपी.

आजकल बीमा वाले इत्‍ता परेशान करते हैं कि मैंने तो ये लाइनें एक काग़ज़ पर लिख कर टांग दी हैं आपने ऑफिस में

फलां कम्‍पनी ढिकां कम्‍पनी रोज एक नया बंदा बैग लटकाए दरवाजे पर खड़ा मिलता है और कहता है आपका बस आधा घंटा चाहिये कुछ समझाना है सो मैंने कहीं सुनी ये पंक्तियां लिख कर बाहर टांग दी हैं आप भी ऐसा कर सकते हैं मुझे तो ये करने से मुक्ति मिल गई है ।

बीमा ना   करवाइये  जा से कछु ना होय

पैसा पत्‍नी को मिले मरण आपका होय

हठकोटी (हिमाचल) का वो मन्दिर जहाँ प्रिटी जिंटा की माँ पूजा करने आती हैं












इन तस्वीरों का सस्ता शेर से कोई लेना-देना नहीं है और मकसद महज़ TRP बढाना है । हाँ ,देखने दिखाने और बिन मेकप के हुस्न का जो चर्चा मीत बाबू ने किया है वो इसका प्रेरणा स्त्रोत ज़ुरुर है । ''आज के माहौल में एक प्रीटी जिंटा के अलावा सब हीरोइन नकली हैं चूंकि उनका हुस्न महज़ मेक - अप का करिश्मा है '' ये बात नाइ की दूकान में टंगे बिपाशा के पोस्टर को देख कर मेरे कजिन हिमांशु ने गए साल किसी रोज़ कही थी । उसके ये कहते ही ये तै पाया गया कि हमारे अगले सफर कि मंजिल अब बस प्रिटी का गाँव ही हो सकता है और बस भारत की सबसेसस्ती कार मारुति ८००(हे नैनो तेरे आने तलक! ) चल पड़ी एक सस्ते सफर पर .........
Harper collins India की गाइड के मुताबिक रोह्डू की शिमला से दूरी 92km है जो दरअस्ल 105km से कम नहीं है , ऐसी और तमाम बातें बता कर मुझे ट्रेवल-राइटिंग का तमगा हासिल नही करना है सो आप मज़ा लीजिये इन चंद तस्वीरों का ! दिल्ली में मार्च महीने में ही तापमान ३७ डिग्री से'.पहुँच चुका है और आज कूलर रिपैर करवा के उसमें pad डलवाने जा रहा हूँ । बाकी फोटू cooler चलने के बाद।

Tuesday 18 March 2008

क्या ज़ौक है, क्या शौक़ है, सौ मर्तबा देखूं

दोस्तो आज के दौर का "दाग़" क्या कुछ यूँ कहेगा ?

"क्या ज़ौक है, क्या शौक़ है, सौ मर्तबा देखूं
फिर ये कहूँ मेक-अप को हटा कर ज़रा देखूं"

Sunday 16 March 2008

धतूरे के बीज !!


गुज़रे बरस के अक्टूबर की दूसरी को हर साल की तरेह 'ड्राई -डे' था और यार लोग बक्चोदी पे आमादा थे ! अब ऐसे में उनका मुंह बंद करने की कोशिश बेकार थी । दिल कह रहा था कि जब तक मैं इनके साथ पीने पिलाने की महिमा की , ड्राई डे के बाद होने वाली पार्टी की या फ़िर इसकी-उसकी बुराई करूंगा मैं इन्हे पसंद आऊँगा वरना या ये मुझे 'महात्मा जी ' कह के कट लेंगे या फ़िर गाली- गुप्चा होगा । उस रोज़ जब महफिल बर्खास्त हुई तो मेरे इस शेर के साथ :
यार दिलदार शख्स पीने पिलाने वाले सबको अज़ीज़ होते हैं ,
और.............बाक्की सब महात्मा या धतूरे के बीज होते हैं !!
इसके बाद मौन हुआ दो मिनट का। क्यों हुआ ? वाह जी अब मौन पे भी टैक्स लगाओगे हैं जी ?


एक संस्कृत - कुमाऊँनी सायरी

बचपन में हमारे पिताजी के एक सहकर्मी निम्नलिखित सायरी सुनाया करते थे। इसे सुना कर वे इस कदर हंसते थे की उन की आंखों से आंसू आ जाया करते। उन्हें हंसते देख कर हमारी हँसी फूटना भी लाजिम था। दया सिंधु भगवान् से लेकर मनुष्य व मनुष्येतर जीवों का ज़िक्र इस सेर में होता है। सही अर्थ तो मुझे अब भी नहीं आता, अलबत्ता मुश्किल लफ़्ज़ों के मायने दे रहा हूँ:

यस्य ज्ञान दयासिंधो, लगा धका, घुरी पड़ा
यौ बाछी बाघे लै मारी, तुम मुयाँ मुयीं तसिकै मरा।

*घुरी पड़ा : गिर पड़ा
बाछी :बछिया
मुयाँ मुयीं : छोकरे- छोकरियाँ
तसिकै : इसी भांति

खबरदार!!


ब्लूगिस्तान के तमाम बाशिंदों को आज ये मानने में भला क्यों उज्र होगा के सल्तनत - -ब्लूगिस्तान में 'सस्ता शेर' ने आज जो क़ामयाबी , जो तरक्की हासिल की है और एक अहम् सूबे के तौर पे जो मकाम चूमा है , उससे बड़े -ब्बडे ब्लोगमखान रश्क करते हैं ! गवाह है ब्लॉग की बायीं बगल में पैबस्त वो मीटर जो हर घड़ी उन सैलानिओं का हिसाब रखता है जिन्होंनें अपने मुबारक़ कदम इसकी सरज़मीन पे रखे हैंअपनी पुरानी रवायतों के मुताबिक 'सस्ता -शेर' हर सैय्याह का खैर -मक्दम करता है मगर आज आगाह भी कर देना चाहता है ऐसी ताकतों को जो महज़ दिल्क़शी के वास्ते यहाँ तशरीफ़ लाते हैं और बगैर कोई दाद दिए ब्लूगिस्तान की पतली गलियों में खो जाते हैं अपनी बेमुरव्वत शख्सीयत के साए में लिपटे-चिपटे ! शेरों को पसंद करके भी बगैर दाद दिए जाने वालों की खातिर ये ऐलान आज हर खासो - आम सुने :

अंड -बंड प्रचंड धनिया पुदीना लहसन प्याज
दाद दिए बिन जो निकले होवे उसको खाज !!

Saturday 15 March 2008

तुम तो दोस्त निकले यार !!

ये इनायतें हैं कैसी, भला क्यों ये मेहरबानी
दारू पिला रहे हो, मैं माँगता हूँ पानी

शायर समाज के हर वर्ग के लिए लिखता है....

शायर बड़ा भला मानुष होता है. जो कुछ भी लिखता है, उसमें हर एक के लिए कुछ न कुछ अवश्य रहता है. पॉपुलर मेरठी साहब को ही देखिये. उन्होंने जनता को कितनी बढ़िया सलाह दी है. लिखते हैं;

अजब नहीं है जो तुक्का भी तीर हो जाए
फटे जो दूध तो फिर वो पनीर हो जाए
मवालियों को न देखा करो हिकारत से
न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए

नेता जी के लिए भी सलाह देते हैं. लिखते हैं;

लफंगों, लुच्चों का हाथों में हाथ लेके चलो
बने हो दूल्हा तो पूरी बरात लेके चलो
शरीफ लोग इलेक्शन नहीं जिता सकते
जो जीतना हो तो गुंडों को साथ लेकर चलो

कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे कि शायर दो विपरीत ध्रुवों पर बैठे इन लोगों को साथ में आने के लिए प्रोत्साहित करता है. ना ना, ऐसा सोचना भी पाप है......:-)

मंहगे शायर का सस्ता शेर

टेस्ट चेंज के बास्ते पेस है बाबा मीर तकी मीर का एक सस्ता वाला:

सुना है मैंने अय धतिए, तिरे खल्वत नशीनों से
के तू दारू पिए है रात को मिल कर कमीनों से

पेला कदम


शुरुआत - राम के नाम, रोटी के नाम, आलू के नाम और तमाम आलू के पराठों के नाम
पेला सलाम:
"शेर खां मिल गए, शेर-बब्बर मिले, टके सेर ताजे औ खस्ते
हम लुटे, लुट गए, लुटा के इकन्नी, यहाँ मिल गए शेर सस्ते "

हाजिरी लगाने के साथ साथ ब्लॉग चक्रवर्ती, ब्लॉग नरेश, ब्लॉग भूपति, की सेवा में अर्पण दो लाईना:
"जिस किसिम के हरकारे, महफ़िल में आने वाले हैं हमारे तो बाल थे ही नहीं, आपके भी जाने वाले हैं"
[ अच्छा / ठीक ]
जादा टैम ख़राब नीं करके पेस हैं - दो पुराने सस्ते एक्स्पीरिएंस सारे सीटी वाले सारे आसिकों के नाम [कल्लो परी के खासकर] -
(१) पेला वाला
तेरी ज़ीनत कमाल, ............. तेरी ज़ीनत कमाल, तेरे गेसू हैं जाल, ............. तेरी ज़ीनत कमाल, तेरे गेसू हैं जाल, घटा है तेरी ओढ़नी, ...... तेरी ज़ीनत कमाल, तेरे गेसू हैं जाल, घटा है तेरी ओढ़नी, ..... अब जरा रूमाल भी दे देईयो बांके, तेरी नाक बस है पोंछ्नी

(२) पेले के बाद पेला वाला
अंधेरी रात थी, ............. अंधेरी रात थी, सन्नाटा था, ............. अंधेरी रात थी, सन्नाटा था, तुम थीं दिल में ज्वार भाटा था ..... अंधेरी रात थी, सन्नाटा था, तुम थीं दिल में ज्वार भाटा था ..... जालिम धड़ाके से भू पर ले आया, उसमे लिखा लफ्ज़ "बाटा" था

[मुनीश जी ध्यान दें ; उनकी सखी भी ध्यान दें ; ब्लोगेन्द्र ध्यान दें की सखी को भी न्योता भेज दें ]

ग़ुस्से में गायक मुकेश उर्फ़ गाली का गाना!


आम और ख़ास में एक फ़र्क़ शायद यह भी है कि आम भावना गाने को गाली की तरह गाती है और ख़ास आदमी गाली देते-देते रुक जाता है.
भाई अशोक पांडे ने मेरा ध्यान इस ओर दिलाया कि सुनिये मुकेश अपनी महबूबा से ख़फ़ा तो हैं कि उसने उनका दिल तोडा, लेकिन ख़फा होकर भी वो "तेरी ##ं%$# की $#@?%$" कहने के बजाय क्या कह रहे हैं!


फिल्म हरियाली और रास्ता का यह गाना सागर चंद नाहर ने मेरे अनुरोध पर मुझे भेजा है. आभार.

Photo curtesy: Photonet

Friday 14 March 2008

वाह-वाह-वाह साहब वाह!

भाई शिव कुमार मिश्र से मिली दाद पर एक दिनाई आप सब को पेशे खिदमत है:
वाह-वाह-वाह साहब
लग गया कि आप भैरो बाबा की नगरी से बिलांग करते हैं.
जहाँ लोग हाथ नहीं धर पाते वहाँ आप टांग करते हैं.
बाकी हमारा क्या, हम तो ऐसहीं हैं
वही करते हैं जो सब उरांग उटांग करते हैं.

कोई से कोई भी क्ष‍मा याचना नहीं क्‍योंकि पता ही नहीं ये किसकी है

अब अपन होली के हुरियारे होने लगे हैं होली के दस दिनन पेले से ही हमको होरी की मस्‍ती चड़बे लग जाए है सो हम जाने किसकी ये लाइनें पेल रहे हैं

थी ग़ज़ब की मुझमें फुर्ती ग़मे आशिक़ी के पहले

मैं घसीटता था ठेला तेरी दोस्‍ती के पहले

तेरी बाल्‍टी पकड़ने मैं खड़ा रहा था वरना

मेरा डोल भर चुका था तेरी बाल्‍टी के पहले

हमें तो लूट लिया


हमें तो लूट लिया कल्लोपरी की चालों ने
काले काले बालों ने, काले काले गालों ने

अफ़सोस कि अफ़सोस नहीं है

चाचा गालिब से माफी मांगना जरूरी हो तो ये काम मेरी और से इरफान भी कर लें. हम चूंकि पेटेंट का कानून आने के पहले से उनकी बौद्धिक सम्पदा के नकली वारिस हैं, लिहाजा नक़ल करना और वो भी अक्ल से हमारा मौलिक हक़ है. हम यही मान कर यह कर रहे हैं. आगे जिसे जो करना हो कर ले :

गिरिया निकाले है तेरी बोतल से किसको

हाय! कि पीने पे इख्तियार नहीं है

हमको बहुत है बोतल न हो तो अद्धा-ऐ-क्वाटर

अफसोस कि साथ देने को कोई तैयार नहीं है.

Thursday 13 March 2008

"शाद" अज़ीमबादी से क्षमायाचना सहित




तड़पना है तो जाओ जा के तड़पो "शाद" खि़लवत में .....

"शाद" साहब नाशाद न होइयेगा, अब आगे माफ़ करियेगा

तड़पना है तो जाओ दारु मारो जा के ठेके में
वहाँ छक के पियो ओर फ़ोन पर कह दो "तड़पते हैं"

शायरी जितनी करो वो कम है ,शायरी जितनी करो वो कम है ,
दरअस्ल...................... सुखनवर कि ये दिमागी बलगम है !!!

रौ-ऐ -जज़्बात


खटमल दीवान में मेरे और ज़ख्म उनके हरे हुए
खटमल दीवान में मेरे और ज़ख्म उनके हरे हुए
जिंदे हैं अब भी जज़्बे कि जिनको माना मरे हुए !

पेल-ए-खिदमत है एक खटमल शेर

मुनीष भाई के 'दीवान' की पोल-

'दीवान' में खटमल है मगर दिख नहीं रहे,
भेजे में बहुत शेर हैं अपन लिख नहीं रहे.

-- विजय खटमलवी.

(गुरु, इतना ठीक है कि स्तर और गिराएं. कमर कस ली है कि सस्तई के अखाड़े की लाईट वेट कैटेगरी में गोल्ड मेडल हासिल करके ही दम लेना है. हैवी वेट कैटेगरी की कुश्ती इरफ़ान भाई के लिए आरक्षित है. जय बजरंगबली!)

पेल-ए-खिदमत है एक खटमल शेर

मुनीष भाई के 'दीवान' की पोल-

'दीवान' में खटमल है मगर दिख नहीं रहे,
भेजे में बहुत शेर हैं अपन लिख नहीं रहे.

-- विजय खटमलवी.

(गुरु, इतना ठीक है कि स्तर और गिराएं. कमर कस ली है कि सस्तई के अखाड़े की लाईट वेट कैटेगरी में गोल्ड मेडल हासिल करके ही दम लेना है. हैवी वेट कैटेगरी की कुश्ती इरफ़ान भाई के लिए आरक्षित है. जय बजरंगबली!)

दीवान इक्क दीवाने का !!


मेरा 'दीवान ' है आबनूस का ये कोई खटिया नहीं है
हाँ शेर हैं कुछ सस्ते ज़ुरूर मगर घटिया नहीं हैं !!!

थानेदार शायर!

आजकल मैं साग़र खैय्यामी साहब के खुमार में डूबा हूँ. जब होश आता है तो उनका कोई शेर चढ़ा देता हूँ. मुलाहिजा फ़रमाइए-

रफ़्ता-रफ़्ता हर पुलिस वाले को शाइर कर दिया,
ऐसा इक क़ानून भी बनवा दिया सरकार ने.
सुब्ह को इक कैदी फाँसी लगाकर मर गया,
रात भर गज़लें सुनाईं उसको थानेदार ने.

हैं शेर-पहम सब मेरे साले कमाल के

शायर अगर मुश्किलों न घिरे तो बड़ा शायर नहीं बन सकता. पापुलर मेरठी साहब की मुश्किलें देखिये. आख़िर एक शायर को क्या चाहिए? दाद (ग़लत मत समझिए, मैं वाह वाह की बात कर रहा हूँ) . लेकिन साहब को उनके सालों से मिली तारीफ गंवारा नहीं है. वो लिखते हैं;

हैं शेर-पहम सब मेरे साले कमाल के
बैठे हैं शायरी का समंदर खंगाल के
तारीफ कर रहे हैं वो यूं मेरे शेर की
कागज़ पर रखा दिया है कलेजा निकाल के

उनकी एक और मुश्किल के बारे में बताते हुए लिखते हैं;

रहा करता है खटका जाने क्या अंजाम हो जाए
ख़बर ये आम हो जाए तो फिर कोहराम हो जाए
मोहब्बत हो गई है डाकू सुल्ताना की बेटी से
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए

Wednesday 12 March 2008

सस्ता शेर : स्वास्थ्य की ओर !!

''सस्ता शेर एक अद्भुत ब्लॉग है , ऑरों से ज़रा हटके । इस पर एक स्टोरी करो यार अपने सन्डे एडिशन में '' उस रोज़ जब मैंने ये बात इंडियन एक्सप्रेस की अपनी एक मित्र से कही तो उन्होंने बड़ा रस लेकर इसे आद्योपांत पढ़ा और कुछ झिझकते हुए कहा कि माल तो सही है मगर इंग्लिश प्रेस के नज़रिये से स्टोरी में ट्विस्ट सिर्फ़ ये है के ये हिन्दी का शायद पहला ''गे''(GAY) ब्लॉग है । ये सुनकर उसकी साँसों से धुंधले पड़ते अपने चश्मे के शीशे साफ करते हुए मैंने पूछा क्यों भई तुम्हे मुझ पर तो शक नहीं होना चाहिए । तब आपने फ़रमाया ..''वो बात नहीं है मगर इसका फर्स्ट हैण्ड इम्प्रेशन कुछ ऐसा जा रहा है , अब देखो तुमने इसमे कुछ सोनी-सोनी तस्वीरें चेपी , कई मर्तबा दारू की भी चेपी दिख रही हैं मगर..मगर दारू की बोतलों पे तो कमेंट फ़िर भी आए मगर सुंदर लड़की वाली पोस्टों को कोई तवज्जो नहीं मिली , अब या तो सारे मेंबर बहोत धार्मिक किस्म के हैं या फ़िर मार्मिक किस्म के हैं....खल्लास ..बोलो करूं स्टोरी ? '' मैंने आज तक इस नज़रिये से सोचा ही न था मगर एक पत्रकार कह रही थी , वो भी अंग्रेज़ी की कोई भास्कर-चासकर टाइप नहीं !!
ये सुन कर जायका तो बहुत ख़राब हुआ मगर क्या कहना था , मैंने कहा 'अच्छा ' वो बोली 'ठीक'। ये बात हुई लास्ट -वीक । जी काफ़ी ख़राब रहा सो मैंने एस ए टेस्ट पोस्ट
'लम्पट प्रार्थना' वाली पोस्ट चेपी । परिणाम वही ढाक के तीन पात । ले देके एक परम जीत बाली का कमेंट आया मगर वो तो मेंबर हैं नहीं । शक यकीन में बदलता लगा मगर फ़िर आखरी try के तौर पे मैंने खुले आम सब मेम्बेर्स
का ध्यान इस तरफ़ खींचा की कोई लड़की यहाँ contribute नहीं करती है, ये बड़ी अब्नोर्मल बात है वगैरह ..वगैरह । नतीजा .......अब तो खैर आपके सामने है.....मनीषा ने ब्लॉग को अब्नोर्मल घोषित होने से बचा लिया है ..उम्मीद है और लड़कियां भी यहाँ लिखने लगेंगी .....मगर साब मेरी जिस पोस्ट को मनीषा ने इतनी शिद्दत से ..,शायद एक चुनौती की तरेह भी लिया किसी एक करम जले मेंबर ने इतनी मौलिक बात पर टिप्पणी तो दूर ,भाईसाब चूं तक नहीं की । अशोक पांडे इस समय केरल में हैं सो वो excluded हैं । और जो लोग न पढ़ पाये हों उन्हें भी मैं करम जलों में नहीं रखता । मगर है कमाल । बहरहाल , शुक्र है की अब ये ब्लॉग 'सामान्य' हो चला है और स्वस्थ परम्पराके मार्ग पर अग्रसर रहेगा ।
एक शेर अर्ज़ है , बहोत पुराना है :
'' झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए , लिखती है कन्या लिखवाने वाला चाहिए ''
मैं हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ मनीषा जी का और उन तमाम ब्लॉग बालाओं का जो इसी तरेह यहाँ लिखेंगी और इस ब्लॉग की फला -ओ -बहबूदी में हमारी हिस्सेदार होंगी । जय सस्तापन । जय बोर्ची.!!!

उम्‍दा सस्‍तत्‍व को प्राप्‍त एक रचना



सस्‍ता शेर में मेरी पहली सस्‍तत्‍व को प्राप्‍त प्रस्‍तुति, थोड़ी बनाई, थोड़ी चुराई।

समय समय की बात है
बकरी मारे लात है
काउ खाती घास है
दुनिया बड़ी उदास है
मुझको इस दुनिया से
अब ना कोई आस है
फोड़ दूं मैं सिर उसका
जो बोले, पोयम मेरी बकवास है।

कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है....

कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है

कि


कि


कि


कि

उफ़

आज नहीं आया

कहा ना, कभी- कभी तो आता है ।

और अब सुनिये झड़ी हुई ग़ज़ल

प्रदीप चौबे जी की ग़ज़ल को खूब पसंद किया गया और किया भी क्‍यों न जाए है भी तो वैसी ही शख्‍सीयत । आज सुनिये डॉ महेंद्र अग्रवाल जी की एक गज़ल़ के कुछ शेर

अदबी अदब के वास्‍ते जिद पर अड़े हुए

चप्‍पल हवा में उड़ गई जूते खड़े हुए

माइक पकड़ के हो गए शायर अवाम के

आंधी के आम बीन जो लाए झड़े हुए

अदबी तो मानिये मुझे शायर न मानिये

ये शेर मिल गए थे सड़क पर पड़े हुए

कर गई घर मेरा खाली, मेरे सो जाने के बाद

पापुलर मेरठी साहब को सुनना हमेशा से एक बढ़िया अनुभव रहा है. लेकिन उन्हें पढ़ना? आप एक बार बढ़कर देखिये, क्या पता पढ़ना भी ठीक-ठाक अनुभव रहे....

कर गई घर मेरा खाली, मेरे सो जाने के बाद
मुझको धड़का था, कि कुछ होगा तेरे आने के बाद
मैंने दोनों बार थाने में लिखाई थी रपट
एक तेरे आने से पहले, एक तेरे जाने के बाद

या फिर;

रात को छम्मो के कोठे पर, पुलिस ने दी दबिश
मनचलों की भीड़ से, कैसा समां बनता गया
अपना कल्लन तो सयाना था, निकल भागा मगर
लोग साथ आते गए, और कारवाँ बनता गया

तुम भी क्या याद करोगे - चलो अब सर पीटो

इरफ़ान भाई शुक्रिया.

इतनी सस्ती जगह ले आए सस्ते में
वरना हम - पड़े थे कही रस्ते में .......
अब मियाँ बुला ही लिया है तो झेलो भी

तुम भी क्या याद करोगे - चलो अब सर पीटो.

याद नहीं आता किसका लिखा है मगर इस इंटरनेट के ज़माने में भी ये झेलेंगे ?

"निराली शान के या रब ! हमारे डाकखा़ने हैं
जो तार आया सो लेट आया, जो ख़त आया ग़लत आया
मेरे इक दोस्त ने लिखा था कि आता हूँ करांची में
वो आ कर चल दिए ... और छः महीने बाद ख़त आया"

Monday 10 March 2008

चचा गालिब से प्रदीप चौबे जी की क्षमा याचना

पुरानी ग़ज़लों का चरबा करना और उनमें से अच्‍छी बाते निकाल लाना ये तो प्रदीप जी के ही बस का है तभी तो उन्‍होंने चचा गालिब को भी नहीं बक्‍शा है

डाक अब वक्‍त पर नहीं आती

दोस्‍तों की खबर नहीं आती

पहले आती थी चुटकुलों पे हंसी

अब किसी बात पर नहीं आती

हमने चाहा कि मौत आ जाए

मौत बोली कि 'मर' , नहीं आती

Sunday 9 March 2008

दुल्हन वही

दुल्हन वही जो पिया मन भाए/

बीवी वही जो कमा कर लाए//

अब्बा बना गई

टूटे हुए दिल को मुरब्बा बना गई , घर को मेरे कचरे का डब्बा बना गई /

शादी को अभी तीन महीने भी नही गुजरे , ना जाने किस हिसाब से अब्बा बना गई /

Saturday 8 March 2008

सस्ता शेर : THE MOST MALE DOMINATED BLOG TODAY?

दोस्तो बड़े तह्ज़ीबो -तमद्दुन से बैनुलक्वामी सतह पे' वीमंस - डे ' मनाया जा रया है मगर इस अहम् दिन का ये ढलता सूरज जो अनसुलझे सवालात छोडे जा रया है उनमे एक ये भी है के 'सस्ता शेर ' की दिनों दिन तरक्की के बावुजूद खावातीन की भागीदारी इसमे कभी नज़र नही आन पाई है । मैंने कल भी ये सवाल उठाने की गुस्ताखी की थी मगर लहजे की 'संसकिरती खनक ' हजरात को शायद रास न आई । बहरहाल पूरी शिद्दत से आज भी मैं वही सवाल उठाने की हिमाकत यहाँ कर रया हूँ के भई ' ये सस्ता शेर अमरीकनो की stag - party के मानिंद एक मेल- डोमेन क्यों बना है और एकाध मर्तबा की जाने दें तो कभी कोई ' ब्लोगेश वरी ' या कहें के 'ब्लॉग कन्या ' या के ब्लोगान्गना कभी क्यों इधर का रुख भूले से भी नहीं करतीं ? ये एक ऐसा सवाल है हजरात जिस से आज नहीं तो कल हमें जूझने की ज़ुरूरत पड़ेगी । सो अपने चाक गिरेबान में झाँक कर यहाँ मौजूद तमाम ब्लौगाधीश , ब्लूगिस्तान के नामचीन कमानदार अब बड़ी नेकनीयती और साफगोई से इज़हारे ख़याल करेंगे ऐसी उम्मीद हम कर रए हैं तो क्या ग़लत कर रए हैं?

Friday 7 March 2008

.....और अब एक लम्पट प्रार्थना


हे ब्लौगेन्द्र -ब्लौगाधिपति मित्रवर इरफान !
अब ब्लौगान्ग्नाएँ बुलवाइए तो आये जान में जान !!