FUCK FEAR ,
DRINK BEER,
HAPPY NEW YEAR.
Monday, 31 December 2007
नया साल मुबारक
पुराना साल ये जा रहा है,नया साल वो आ रहा है ।
देखें कौन क्या पी रहा है ,और कौन क्या खा रहा है? ॥
ब्लॉगर बेचारा रात-रात भर,रात-रात भर जाग रहा है ,
उसे क्या खबर कौन क्या पी रहा है और क्या खा रहा है ।
(दद्दा इरफान! कुछ पता लगे तो बता दीजो
फिलहाल तो मेरे 'सेर ' पे ना खीजो .)
देखें कौन क्या पी रहा है ,और कौन क्या खा रहा है? ॥
ब्लॉगर बेचारा रात-रात भर,रात-रात भर जाग रहा है ,
उसे क्या खबर कौन क्या पी रहा है और क्या खा रहा है ।
(दद्दा इरफान! कुछ पता लगे तो बता दीजो
फिलहाल तो मेरे 'सेर ' पे ना खीजो .)
Sunday, 30 December 2007
सस्ती महफ़िल में एक चेन्ज के वास्ते
आज कुछ और पढ़वाया जाए भाई लोगों को. शुन्तारो तानीकावा जापानी शायर हैं. उन्हीं की चार लैना:
खाली पेट एक बच्चा उदास था क्योंकि खाली था उस का पेट
भरे पेट वाला एक राजा उदास था क्योंकि भरा हुआ था उस का पेट
बच्चे ने हवा की आवाज़ सुनी, राजा ने संगीत सुना
दोनों की आंखों में आए आंसू, यहां - इसी नक्षत्र पर।
खाली पेट एक बच्चा उदास था क्योंकि खाली था उस का पेट
भरे पेट वाला एक राजा उदास था क्योंकि भरा हुआ था उस का पेट
बच्चे ने हवा की आवाज़ सुनी, राजा ने संगीत सुना
दोनों की आंखों में आए आंसू, यहां - इसी नक्षत्र पर।
mujhe daad na dene valo ke naam...
YE GUL O' NAGMA SHAAYRI, MERE GEET MAST AUR GHAZAL,
BADE LOGON KI BAATEIN HAIN, NAHI BACHCHON KE YE SHAGAL
BADE LOGON KI BAATEIN HAIN, NAHI BACHCHON KE YE SHAGAL
Wednesday, 26 December 2007
nostalgia
yaad un shamo ki ab bhi basi hai meri nason mein,
vo le ke pavva karna safar roadways ki Buson mein.
vo le ke pavva karna safar roadways ki Buson mein.
सर्वहारा शेर
डरो ट्रेन से नहीं, डरो ट्रक से नहीं, डरो ब्लू लाइन से नहीं....2
उनमे तो फिर भी ब्रेक होता हैं...
डरो तो उस रिक्शे से जिसमे किसी का खून जलता हैं..
उनमे तो फिर भी ब्रेक होता हैं...
डरो तो उस रिक्शे से जिसमे किसी का खून जलता हैं..
Sunday, 23 December 2007
इस दफ़ा जनाब बशीर बद्र से माफ़ी मांगते हुए
कोई पान भी न खिलाएगा, जो पडे़ मिलोगे उधार में
ये नई दुकां है खुली यहां, कभी कैश पैसे दिया करो
ये नई दुकां है खुली यहां, कभी कैश पैसे दिया करो
Thursday, 20 December 2007
बाग़ीचा-ए-अल्ताफ़
बाग़ीचा-ए-अल्ताफ़* में कुटिया मेरे आगे
धोता है हरेक वक़्त वो पजामा मेरे आगे
(बाग़ीचा-ए-अल्ताफ़: अल्ताफ़ भाई का कालाढूंगी स्थित आम का विख्यात बग़ीचा जहां अब आम नहीं उगते. उस बग़ीचे में अब शंकर की झोपड़ी है. शंकर कालाढूंगी का एक स्ट्रग्लर धोबी है. यह पूरी सूचना सत्य है. उपरिलिखित शेर इसी सूचना पर आधारित है.)
धोता है हरेक वक़्त वो पजामा मेरे आगे
(बाग़ीचा-ए-अल्ताफ़: अल्ताफ़ भाई का कालाढूंगी स्थित आम का विख्यात बग़ीचा जहां अब आम नहीं उगते. उस बग़ीचे में अब शंकर की झोपड़ी है. शंकर कालाढूंगी का एक स्ट्रग्लर धोबी है. यह पूरी सूचना सत्य है. उपरिलिखित शेर इसी सूचना पर आधारित है.)
Wednesday, 19 December 2007
Tuesday, 18 December 2007
मुकुल की भेजी शायरी
पहन मुद्रिका अंगुरी बांचत फिरत कबीर
यौं मूढन की गांठ हौ काहे हवत अधीर
- कुमार मुकुल
मांग के खाते थे रोटी और सोचते थे
जी रहे हैं लोग यूं भी कोटि-कोटि
- कुमार मुकुल
यौं मूढन की गांठ हौ काहे हवत अधीर
- कुमार मुकुल
मांग के खाते थे रोटी और सोचते थे
जी रहे हैं लोग यूं भी कोटि-कोटि
- कुमार मुकुल
Monday, 17 December 2007
इंटर गफिल्ला द किल किल द पौं पौं

हरसिंह उर्फ़ हरदा की छोटी सी दुकान है नैनीताल की सब्जी-अंडा-मीट मार्केट में। वो कई सालों से हमें कई सारे शेर सुनाते रहे हैं लेकिन एक अदभुत शेर है जिसका मतलब और जुबां आज तक समझ में नहीं आये। आप भी ट्राई कीजिए ककड़ी की तरी का यह स्वाद:
इंटर गफिल्ला द किल किल द पौं पौं
नार द कमसिन, फिल्टर झां पौं
झंको रे नत्ता, नत्ता झंको
नत्ता झंको, झंको नत्ता
Thursday, 13 December 2007
सुनिये राग दरबारी से रामाधीन भीखमखेडवी का हाल हवाल

श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास राग दरबारी किसी परिचय का मुहताज नहीं है. उधर हमने टूटी हुई बिखरी हुई पर कई दिनों से एलान कर रखा है कि हम वहाँ राग दरबारी आपको सुनवाएँगे. इसे शुरू न कर पाने में दुविधा यही है कि इसके प्रोडक्शन की गुणवत्ता को लेकर अभी मैं आश्वस्त नहीं हूँ. अब, जब कि अशोक पांडे ने रामाधीन भीखमखेडवी को सस्ते शेर की महफिल में आमंत्रित कर ही लिया है, तो ये मौज़ूँ लगता है कि जैसा भी है इसे एक बानगी के तौर पर आपके सामने पेश करूँ. आपको कैसा लगा- राय भेजियेगा.
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क़िस्सागो: मुनीश
Dur. 08 Min. 43 Sec.
रामाधीन भीखमखेडवी उर्फ़ कल्लोपरी का सबसे पुराना आसिक

'राग दरबारी' जिसने नहीं जानी, वो इसे न देखे
श्रीलाल शुक्ल जी के कालजयी उपन्यास 'राग दरबारी' के एक अविस्मरणीय चरित्र रामाधीन भीखमखेडवी की आत्मा ने कल शहर हल्द्वानी के डहरिया गांव में अपना शेर पूरा किया (परम आदरणीय श्रीलाल शुक्ल जी माफ़ कर देंगे इस शरारत पर)। प्रस्तुत है रामाधीन भीखमखेडवी का चौपाया:
रात को रोशन तू कर और चन्द्रमा सियाह बना
रात होते ही वो दरवाज़ों को सारे भेड जाती हैं
मुझे भी कभू नसीब हो वस्ल महज़बीनों का
कलूटी लडकियां हर शाम मुझको छेड जाती हैं
श्रीलाल शुक्ल जी के कालजयी उपन्यास 'राग दरबारी' के एक अविस्मरणीय चरित्र रामाधीन भीखमखेडवी की आत्मा ने कल शहर हल्द्वानी के डहरिया गांव में अपना शेर पूरा किया (परम आदरणीय श्रीलाल शुक्ल जी माफ़ कर देंगे इस शरारत पर)। प्रस्तुत है रामाधीन भीखमखेडवी का चौपाया:
रात को रोशन तू कर और चन्द्रमा सियाह बना
रात होते ही वो दरवाज़ों को सारे भेड जाती हैं
मुझे भी कभू नसीब हो वस्ल महज़बीनों का
कलूटी लडकियां हर शाम मुझको छेड जाती हैं
Tuesday, 11 December 2007
मोहल्ले में कल्लोपरी का आगमन

सल्फ़ास का पैकेट लाया तो था, मोहल्ले में मगर कल्लोपरी आ गई
कतरनें
अशोक पांडे,
कल्लो परी,
मीटर पे न जा जज़्बा देख
हिसाब बरोब्बर
१२ नवम्बर को विमल वर्मा जी ने एस एम एस वाली एक अदभुत कविता लगाई थी। आज मुझे एक सज्जन ने उसी का लम्बा वर्ज़न भेज डाला। कुछ जादै सस्ता हैगा:
मैं कल रास्ते में था
कि मेरी चप्पल टूट गई
अब चप्पल तो मोची सीता है
सीता तो दर्ज़ी भी है
दर्ज़ी तो कपडे सीता है
कपडे तो रंगीन होते हैं
रंगीन तो मग भी होता है
मग तो बाथरूम में होता है
बाथरूम में नल भी होता है
नल तो लोहे का होता है
लोहे की तो इस्तरी होती है
इस्तरी तो गरम होती है
गरम तो कस्टर्ड भी होता है
कस्टर्ड तो पीला होता है
पीला तो चूज़ा भी होता है
चूज़ा तो अण्डे से निकलता है
अन्डा तो सफ़ेद होता है
सफ़ेद तो दूध भी होता है
दूध तो भैंस देती है
भैंस तो काली होती है
काला तो बंगाली भी होता है
बंगाली तो पान खाता है
पान तो लाल होता है
लाल तो गुलाब भी होता है
गुलाब में तो कांटे होते हैं
कांटे तो मछ्ली में भई होते हैं
मछ्ली तो अच्छी होती है
अच्छा तो बन्दर भी होता है
बन्दर तो बन्दर होता है
पढ्ने वाले भी तो बन्दर होते हैं
जो पढ के अपना टाइम बरबाद करते हैं
...
खैर ऊपर वाले ने आप को भेजा तो भेजा
पर भेजा तो ऐसा भेजा
कि
भेजे में भेजा नहीं भेजा
...
ये मुझे किसी और ने भेजा
इस लिए मैंने आपको भेजा ।
आप को बुरा लगा?
तो आप किसी और को भेज दो
...
हिसाब
बरोब्बर
मैं कल रास्ते में था
कि मेरी चप्पल टूट गई
अब चप्पल तो मोची सीता है
सीता तो दर्ज़ी भी है
दर्ज़ी तो कपडे सीता है
कपडे तो रंगीन होते हैं
रंगीन तो मग भी होता है
मग तो बाथरूम में होता है
बाथरूम में नल भी होता है
नल तो लोहे का होता है
लोहे की तो इस्तरी होती है
इस्तरी तो गरम होती है
गरम तो कस्टर्ड भी होता है
कस्टर्ड तो पीला होता है
पीला तो चूज़ा भी होता है
चूज़ा तो अण्डे से निकलता है
अन्डा तो सफ़ेद होता है
सफ़ेद तो दूध भी होता है
दूध तो भैंस देती है
भैंस तो काली होती है
काला तो बंगाली भी होता है
बंगाली तो पान खाता है
पान तो लाल होता है
लाल तो गुलाब भी होता है
गुलाब में तो कांटे होते हैं
कांटे तो मछ्ली में भई होते हैं
मछ्ली तो अच्छी होती है
अच्छा तो बन्दर भी होता है
बन्दर तो बन्दर होता है
पढ्ने वाले भी तो बन्दर होते हैं
जो पढ के अपना टाइम बरबाद करते हैं
...
खैर ऊपर वाले ने आप को भेजा तो भेजा
पर भेजा तो ऐसा भेजा
कि
भेजे में भेजा नहीं भेजा
...
ये मुझे किसी और ने भेजा
इस लिए मैंने आपको भेजा ।
आप को बुरा लगा?
तो आप किसी और को भेज दो
...
हिसाब
बरोब्बर
कतरनें
अशोक पांडे,
ये तो शेर ही नहीं है,
हिसाब बरोब्बर
(अ) धार्मिक शेर : खुदा ही खुदा
Monday, 10 December 2007
पाठ कुपाठ : ठेठ ब्रुक हिल का ठाठ
(कबाड़खाना के पन्नों पर कई दफा ब्रुक हिल का ज़िक्र आया है । नैनीताल में यह एक आम छात्रावास देश-दुनिया के बाक़ी छात्रावासों की तरह ही था । यहाँ पर भी और जगहों की तरह कुछ न कुछ रोज नया रचा जाता रहा-कुछ ठेठ कुछ भदेस । उसी में से कुछ माल कम्पनी के प्रचार के वास्ते और आम जनता के फायदे के बाबत यहाँ डिस्पले किया जा रहा है। माल नंबर एक का उत्पादंकर्ता आजकल चेन्नई में साइंस पढा रिया है और माल नंबर दो वाला इस नाचीज़ को ही मान लें ।)
एक नंबर(का माल)-
रात के अँधेरे में मेरे सिर पर बजती है ,
तीन सूत की सरिया तडा ताड़ -तडा ताड़ ,तडा ताड़ ,तडा ताड़, तडा ताड़ .....
दो नंबर (का माल)-
तेरे हुस्न की मिसाइल मेरे दिल के पता नहीं किस स्तान पर गिरी है,
पर जे तो जुलुम है तू अंतर्राष्ट्रीय संस्था की तरह चुप-सी काय कू खड़ी है।
एक नंबर(का माल)-
रात के अँधेरे में मेरे सिर पर बजती है ,
तीन सूत की सरिया तडा ताड़ -तडा ताड़ ,तडा ताड़ ,तडा ताड़, तडा ताड़ .....
दो नंबर (का माल)-
तेरे हुस्न की मिसाइल मेरे दिल के पता नहीं किस स्तान पर गिरी है,
पर जे तो जुलुम है तू अंतर्राष्ट्रीय संस्था की तरह चुप-सी काय कू खड़ी है।
लोग कहते हैं: "पी के आया है"
हर तरफ खामोशी का साया है
जिस को देखो वही पराया है
गिर पड़ा हूँ मुहब्बत की मार से
लोग कहते हैं: "पी के आया है"
जिस को देखो वही पराया है
गिर पड़ा हूँ मुहब्बत की मार से
लोग कहते हैं: "पी के आया है"
Sunday, 9 December 2007
शमशान में पिया करूंगा
कफ़न के भीतर मेरे इक बोतल छुपा देना, शमशान में पिया करूंगा
जब हिसाब मांगेंगे भगवान् जी, उन्हें भी थोड़ी दिया करूंगा
जब हिसाब मांगेंगे भगवान् जी, उन्हें भी थोड़ी दिया करूंगा
Friday, 7 December 2007
अश्लील शेर
वो आगे आगे वस्ल का वादा किये हुए
हम पीछे पीछे सिर पे चारपाई लिए हुए
(मेरे मित्र सी एस तिवारी का सुनाया शेर)
हम पीछे पीछे सिर पे चारपाई लिए हुए
(मेरे मित्र सी एस तिवारी का सुनाया शेर)
Thursday, 6 December 2007
BHAVUKTA KE PAL
FALAK PE SITARON KO NEEND AA RAHI HAI
FALAK PE SITARON KO NEEND AA RAHI HAI,
TERI AISI KI TAISI.....TU AB AA RAHI HAI!!!
FALAK PE SITARON KO NEEND AA RAHI HAI,
TERI AISI KI TAISI.....TU AB AA RAHI HAI!!!
Sunday, 2 December 2007
इस बार हैरी बैलाफोंते के बहाने अंग्रेजी के सस्ते शेर
'किंग ऑफ़ कैलिप्सो' के नाम से मशहूर उस्ताद हैरी बैलाफोंते जमैका के सफलतम गायकों में थे। मानवतावादी सरोकारों और नागरिक अधिकारों की पैरोकारी करते रहे और हाल के दिनों में (फिलहाल वे अस्सी के हैं) अमरीकी झाड़ जॉर्ज बुश के सबसे मुखर विरोधियों में शुमार होते हैं। ' Man Smart, Woman Smarter' उनकी लोकप्रिय रचना है। फिलहाल अंग्रेजी बोल लगा रह हूँ। समय मिलते ही हिन्दी अनुवाद लगाने की कोशिश करूंगा.
I say let us put man and a woman together
To find out which one is smarter
Some say man but I say no
The woman got the man de day should know
And not me but the people they say
That de man are leading de women astray
But I say, that the women of today
Smarter than the man in every way
That’s right de woman is uh smarter
That’s right de woman is uh smarter
That’s right de woman is uh smarter, that’s right, that’s right
Ever since the world began
Woman was always teaching man
And I you listen to my bid attentively
I goin’ tell you how she smarter than me
Samson was the strongest man long ago
No one could a beat him, as we all know
Until he clash with Deliah on top of the bed
She told them all the strength was in the hair of his head
You meet a girl at a pretty dance
Thinking that you would stand a chance
Take her home, thinking she’s alone
Open de door you find her husband home
I was treating a girl independently
She was making baby for me
When de baby born and I went to see
Eyes was blue it was not by me
Garden of Eden was very nice
Adam never work in Paradise
Eve meet snake, Paradise gone
She make Adam work from that day on
Methuselah spent all his life in tears
Lived without a woman for 900 years
One day he decided to have some fun
The poor man never lived to see 900 and one
I say let us put man and a woman together
To find out which one is smarter
Some say man but I say no
The woman got the man de day should know
And not me but the people they say
That de man are leading de women astray
But I say, that the women of today
Smarter than the man in every way
That’s right de woman is uh smarter
That’s right de woman is uh smarter
That’s right de woman is uh smarter, that’s right, that’s right
Ever since the world began
Woman was always teaching man
And I you listen to my bid attentively
I goin’ tell you how she smarter than me
Samson was the strongest man long ago
No one could a beat him, as we all know
Until he clash with Deliah on top of the bed
She told them all the strength was in the hair of his head
You meet a girl at a pretty dance
Thinking that you would stand a chance
Take her home, thinking she’s alone
Open de door you find her husband home
I was treating a girl independently
She was making baby for me
When de baby born and I went to see
Eyes was blue it was not by me
Garden of Eden was very nice
Adam never work in Paradise
Eve meet snake, Paradise gone
She make Adam work from that day on
Methuselah spent all his life in tears
Lived without a woman for 900 years
One day he decided to have some fun
The poor man never lived to see 900 and one
Saturday, 1 December 2007
bhaaiyon.........
ZAMANE SE NA DAB GALIB TU USKE LIYE HO JA HAUVVA,
KHEESE KO KAR ZARA DHEELA, HALAK SE UTAR LE PAUVVA.
KHEESE KO KAR ZARA DHEELA, HALAK SE UTAR LE PAUVVA.
Friday, 30 November 2007
OLD MONK PREMIYO KE LIYE
BUJHAANA PYAAS KA SEEKHA HUMNE SEHRA KE OONT SE,
AUR GAM KO GALAT KARTE GAYE HUM RUM KE GHOONT SE.
AUR GAM KO GALAT KARTE GAYE HUM RUM KE GHOONT SE.
Tuesday, 27 November 2007
Monday, 26 November 2007
अकल से मोटा
अकल से मोटा हमारा चाम होना चाहिऐ /
हो भले थू- थू मगर कुछ नाम होना चाहिऐ //
प्यार करने के लिए काफी कलेजा ही नही /
बाप से बेटा तनिक बदनाम होना चाहिऐ //
हो भले थू- थू मगर कुछ नाम होना चाहिऐ //
प्यार करने के लिए काफी कलेजा ही नही /
बाप से बेटा तनिक बदनाम होना चाहिऐ //
Friday, 23 November 2007
इक़्बाल और माजिद लाहौरी की रूह से माफ़ी के साथ

कमज़ोर मक़ाबल हो तो फ़ौलाद हे जरनील
अमरीकी हुं सरकार तो औलाद हे जरनील
क़मारी व ग़फ़ारी व क़दोसी व जबरोत
इस क़सम की हर क़ैद से आज़ाद हे जरनील
जरनील की आंखो में खटकती हे अदालत
हुं जज जो आज़ाद तो बरबाद हे जरनील
हर वक़्त वा पहने हे सदारत में भी वर्दी
बीवी भी उतरवाये तो नाशाद हे जरनील
दरानी व अफ़गन की क़सोरी व शजाएत
शीतान के इन, उन चीलयां का उस्ताद हे जरनील
Thursday, 22 November 2007
`बन्दर सभा´ के कुछ अशआर
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850-1885)संभवत: हिन्दी के पहले पैरोडीकार हैं।उन्होंने नवाब वाजिद अली शाह `अख्तर` के नाटक `इन्दर सभा´ की पैरोडी `बन्दर सभा´ के नाम से लिखी थी ।इसी का एक टुकड़ा पेश है-
(आना शुतुरमुर्ग परी का बीच सभा के )
आज महफिल में शुतुरमुर्ग परी आती है।
गोया महमिल से व लैली उतरी आती है।
तैल ओ पानी से पट्टी है संवारी सिर पर
मुंह पै मांझा दिए जल्लादो जरी आती है।
झूठे पठ्ठे की है मूबाफ पड़ी चोटी में
देखते ही जिसे आंखों में तरी आती है।
पान भी खाया है मिस्सी भी जमाई हैगी
हाथ में पायंचा लेकर निखरी आती है।
मार सकते हैं परिन्दे भी नही पर जिस तक
चिड़या वाले के यहां अब व परी आती है।
(आना शुतुरमुर्ग परी का बीच सभा के )
आज महफिल में शुतुरमुर्ग परी आती है।
गोया महमिल से व लैली उतरी आती है।
तैल ओ पानी से पट्टी है संवारी सिर पर
मुंह पै मांझा दिए जल्लादो जरी आती है।
झूठे पठ्ठे की है मूबाफ पड़ी चोटी में
देखते ही जिसे आंखों में तरी आती है।
पान भी खाया है मिस्सी भी जमाई हैगी
हाथ में पायंचा लेकर निखरी आती है।
मार सकते हैं परिन्दे भी नही पर जिस तक
चिड़या वाले के यहां अब व परी आती है।
Wednesday, 21 November 2007
फ़्रस्टु शेर..
डाली डाली डाली १ फ़ूल पर मैने नजर डाली
हाय रे मेरी किस्मत, जिस फ़ूल पर मैने नजर डाली
उसे पहले ही काट लिया माली..
हाय रे मेरी किस्मत, जिस फ़ूल पर मैने नजर डाली
उसे पहले ही काट लिया माली..
पी के का जीवन और सारे सस्ते शायरों को खुला निमंत्रण
मय्यत में गया पी के, शादी में गया पी के
दिल्ली गया तो पी के, घर लौट पहुँचा पी के
हुआ पोपुलर वो पी के, था नाम उस का पी के
पी के की वजह लोगो, यारों की बढ़ी जी के
उस पी के नाम शख्स का कल पढ़ के फ़ातेहा
हम घर की रहगुज़र थे कि घटा एक सानेहा
इक भूत मिला हाथ में पव्वा लिए कहता
कुछ भात दो और कुछ दो मुझे छोले कढ़ी पी के
(समस्त सस्ते शायर भाइयों से अपील है कि इन दो छंदों में मीटर की कमियाँ दूर करें और अपनी तरफ से कम-अज-कम एक एक छंद अवश्य जोडें। पी के भाई के जीवन की कहीं तो कोई कथा रेकार्ड हो जावे। जय बोर्ची! जय सस्तापन!!)
दिल्ली गया तो पी के, घर लौट पहुँचा पी के
हुआ पोपुलर वो पी के, था नाम उस का पी के
पी के की वजह लोगो, यारों की बढ़ी जी के
उस पी के नाम शख्स का कल पढ़ के फ़ातेहा
हम घर की रहगुज़र थे कि घटा एक सानेहा
इक भूत मिला हाथ में पव्वा लिए कहता
कुछ भात दो और कुछ दो मुझे छोले कढ़ी पी के
(समस्त सस्ते शायर भाइयों से अपील है कि इन दो छंदों में मीटर की कमियाँ दूर करें और अपनी तरफ से कम-अज-कम एक एक छंद अवश्य जोडें। पी के भाई के जीवन की कहीं तो कोई कथा रेकार्ड हो जावे। जय बोर्ची! जय सस्तापन!!)
Tuesday, 20 November 2007
लाईनमारु शेर
तेरे नयनो कि ब्यूटी ने मुझे एट्रक्ट किया।
औरो को रिजेक्ट किया, बस तुझे ही सेलेक्ट किया॥
तुझसे रिक्वेस्ट है कि रिफ़्युज ना करना।
मेरे मोहब्बत के बल्ब को फ़्युज ना करना..
औरो को रिजेक्ट किया, बस तुझे ही सेलेक्ट किया॥
तुझसे रिक्वेस्ट है कि रिफ़्युज ना करना।
मेरे मोहब्बत के बल्ब को फ़्युज ना करना..
Monday, 19 November 2007
Sunday, 18 November 2007
लावनी के रंग

लोक गायकी में लावनी अब एक मृतप्राय कला है. जौनपुर के जिन लावनी गायकों से हम परिचित है वे सार्थक आदोलन से जुड़े गायक थे. अध्येताओं ने इस कला पर अध्ययन के दौरान पाया है कि यह लोकप्रिय और ऊर्जा से भरपूर कला थी. इसमें सक्रिय घरानों ने ख़ूब नाम कमाया और जनसंवेदना को हरा-भरा बनाए रखा. तुर्रा और कलगी से अलग किये जानेवाले दो घरानों के बीच चलने वाली नोकझोंक आज भी उन्हें याद है जो उस दौर की लावनी के गवाह हैं. बात को कहने की कलात्मक मजबूरियां कभी उनकी राह में रोडा नहीं बनीं. उन्होंने मौक़ा-ब-मौक़ा अपने ख़ालिस अंदाज़ का सहारा लिया लेकिन कभी लोगों की नज़र में हेय नहीं बने.
बादल मियां तुर्रावाले ने जब पूछा-
यह किधर से आई घटा किधर से पानी,
दो जवाब इसका आप जो हो गुर ज्ञानी.
तो बाबा बनारसी कलगीवाले ने जवाब दिया-
पढ़-पढ के फ़ाज़िल हुए, बात नहीं जानी,
बादल की फट गई गांड़ बरसता पानी.
बादल मियां तुर्रावाले ने जब पूछा-
यह किधर से आई घटा किधर से पानी,
दो जवाब इसका आप जो हो गुर ज्ञानी.
तो बाबा बनारसी कलगीवाले ने जवाब दिया-
पढ़-पढ के फ़ाज़िल हुए, बात नहीं जानी,
बादल की फट गई गांड़ बरसता पानी.
TRUCK PE LIKHA EK SHER
HUMKO TO DARU NE MARA CIGARETTE ME KAHAN DUM THA,
AJI KISTI VAHIN DOOBI APNI KE PANI JAHAN PE KAM THA.
AJI KISTI VAHIN DOOBI APNI KE PANI JAHAN PE KAM THA.
Thursday, 15 November 2007
ARUN MADHUMAY DESH:2
KOI SHAIDAI WHISKEY KA ,TO KOI RUM PE FIDA HAI,
MANZIL HAI SABKI EK YAARA,RASTA MAGAR JUDA HAI.
MANZIL HAI SABKI EK YAARA,RASTA MAGAR JUDA HAI.
Tuesday, 13 November 2007
अकबर चचा के अशआर : २
अकबर चचा के अशआर : एक
Monday, 12 November 2007
TRIBUTE TO PAVVA
ADDHEY SE NAHI PARHEZ MUJKO,
ADHDHEY SE NAHI PARHEZ MUJHKO, PAR PAVVA ZARA TRENDY HAI,
KHEESAY ME SAMA JAYE HAI , YE ITEM BADA HANDY HAI.
ADHDHEY SE NAHI PARHEZ MUJHKO, PAR PAVVA ZARA TRENDY HAI,
KHEESAY ME SAMA JAYE HAI , YE ITEM BADA HANDY HAI.
अंडा तो सफ़ेद होता है !!!!

अंडा तो सफ़ेद होता है !
सफ़ेद तो दूध भी होता है !!
दूध तो भैंस देती है !
भैंस तो काली होती है !
काला तो आदमी भी होता है !
आदमी तो पान खाता है !!
पान तो लाल होता है !
लाल तो गुलाब भी होता है !!
गुलाब में कांटे होते हैं !
कांटे तो मछली में भी होते हैं !!
मछली तो अच्छी होती है !
अच्छा तो इंसान भी होता है !!
इंसान तो लम्बा होता है !
लम्बा तो ये मैसेज भी है !!
मुझे तो दिमाग खाना था !
खा लिया !!
( ये एक sms msg है )
Thursday, 8 November 2007
स्वर्गीय अवधेश का एक शेर और संक्षिप्त परिचय 'टंटा' समिति का
१९९० में मैंने पहली बार देहरादून के संस्कृति कर्मियों के बेहद ऊर्जावान केंद्र 'टिपटौप' रेस्त्रां के दर्शन किये थे। पता लगा था कि मशहूर कवि-कलाकार अवधेश (जिन्हें अज्ञेय जी ने अपनी अन्तिम सप्तक श्रृंखला में जगह दी थी) और गजलकार हरजीत सिंह भी यहीं से ऑपरेट करते हैं। अन्य साथियों के साथ ये दोनों पर अपने तमाम साहित्यिक ऑपरेशन 'टंटा' समिति के नाम से चलाया करते थे। आमतौर पर टंटों से दूर रहने वाली इस संस्था का यह abrreviated नाम था। TANTA का पूरा नाम था : Total Awareness for Neo Toxic Adventures. ज़रा देखिए यह समिति अपने हिन्दी अनुवाद में किस कदर आकर्षक लगती थी : 'पूर्ण टुन्नावस्था का नव नशीलित रोमांच'।
संस्था के अघोषित मुखिया स्वर्गीय अवधेश का एक सस्ता खुसरोवादी शेर मंत्रवाक्य की हैसियत रखता था। पेश है:
गोरी सोवत सेज पे, सो मुँह पर डारे खेस
चल खुसरो घर आपने साँझ भई अवधेस
संस्था के अघोषित मुखिया स्वर्गीय अवधेश का एक सस्ता खुसरोवादी शेर मंत्रवाक्य की हैसियत रखता था। पेश है:
गोरी सोवत सेज पे, सो मुँह पर डारे खेस
चल खुसरो घर आपने साँझ भई अवधेस
Wednesday, 7 November 2007
दर्द भोगपुरी एक दफा फिर बज़रिये नवीन नैथानी
सूखे गले के साथ भी वाइज़ के पास थे
अपनी क़सम! ख्वाब में क्या क्या नहीं किया
* सुधी पाठकों को याद दिलाता चलूँ कि नवीन नैथानी उर्फ़ दर्द भोगपुरी मशहूर कहानीकार हैं। कुछ समय पहले मैंने उनका एक शेर यहाँ लगाया था जो कतिपय कारणों से तब हटा दिया गया था। उसी शेर को दुबारा यहाँ लगाते हुए मुझे देहरादून के दो शानदार शायर याद आ रहे हैं : स्वर्गीय अवधेश और स्वर्गीय हरजीत की सदारत में चलने वाली देहरादून की टंटा समिति के प्रमुख स्तंभ थे दर्द साहब। दर्द साहब के ये तमाम शेर उसी दौर के हैं। अब न हरजीत भाई हैं न अवधेश भाई न देहरादून। खुद नवीन भाई भी डाक पत्थर में जमे हैं आजकल। टंटा समिति पर एक पोस्ट जल्द आयेगी। फिलहाल जादै इमोस्नल न होता हुआ मैं दर्द साहब के स्थाई भाव को व्यक्त करता उन्ही का शेर लगाता हूँ :
शराब-ओ-जाम के इस दर्जा वो करीब हुए
जो दर्द भोगपुरी थे गटर नसीब हुए
अपनी क़सम! ख्वाब में क्या क्या नहीं किया
* सुधी पाठकों को याद दिलाता चलूँ कि नवीन नैथानी उर्फ़ दर्द भोगपुरी मशहूर कहानीकार हैं। कुछ समय पहले मैंने उनका एक शेर यहाँ लगाया था जो कतिपय कारणों से तब हटा दिया गया था। उसी शेर को दुबारा यहाँ लगाते हुए मुझे देहरादून के दो शानदार शायर याद आ रहे हैं : स्वर्गीय अवधेश और स्वर्गीय हरजीत की सदारत में चलने वाली देहरादून की टंटा समिति के प्रमुख स्तंभ थे दर्द साहब। दर्द साहब के ये तमाम शेर उसी दौर के हैं। अब न हरजीत भाई हैं न अवधेश भाई न देहरादून। खुद नवीन भाई भी डाक पत्थर में जमे हैं आजकल। टंटा समिति पर एक पोस्ट जल्द आयेगी। फिलहाल जादै इमोस्नल न होता हुआ मैं दर्द साहब के स्थाई भाव को व्यक्त करता उन्ही का शेर लगाता हूँ :
शराब-ओ-जाम के इस दर्जा वो करीब हुए
जो दर्द भोगपुरी थे गटर नसीब हुए
Tuesday, 6 November 2007
दर्द भोगपुरी उर्फ़ नवीन नैथानी का ताज़ा शेर
मैं तमाम पव्वे उठा उठा के, गरीब लोगों में बाँट दूं।
बस एक बार वो मैकदे का निजाम दे मेरे हाथ में।
(नवीन भाई ने ये शेर आज ही सुबह मुझे एस एम् एस पर इसे भेजा है)
बस एक बार वो मैकदे का निजाम दे मेरे हाथ में।
(नवीन भाई ने ये शेर आज ही सुबह मुझे एस एम् एस पर इसे भेजा है)
Monday, 5 November 2007
पप्पुन का सेर
साहेबान न तो हिन्दी आती है न उर्दू। फारसी जैसी महान भाषा की क्या कहूं। मगर सायरी में बहुत लुफ्त आता है कम्बखत। बीस साल पहले मेरे प्यारे भतीजे रफ़त आलम उर्फ पप्पुन ने एक महान फुस्कारा शेर सुनाया था। पप्पुन के हिसाब से ‘बैतूलखला’ का अर्थ शौचालय होता है और ‘री’ माने वायु विसर्जन से उपजी ध्वनि। हो सकता है यहां स्पैलिंग और अर्थ वगैरा की मिस्टेकें हों मगर असली बात इन लफ्जों से अलहदा है।
बाकी जिस तरह का कोल्ड शोल्डर भाई लोग इस कोटि के शेरों को दे रहे हैं बन्दे के दिल में तमाम तरह के गलत सलत खयालातों का उठना लाज़िमी है। हो सकता है यह आखिरी फुस्कारा शेर हो यहां। वैसे इस तरह के शेर कभी खत्म नहीं हो सकते क्योंकि वैज्ञानिक शोध बतलाते हैं कि एक मनुष्य (यदि जीवित हो तो) दिन में औसतन चौदह बार नैसर्गिक वायु विसर्जन करता है। मरने के बाद भी आदमी की देह से एक बार वायु बाहर आती है। यह प्रक्रिया प्रेम से भी ज्यादा नैसर्गिक है और यकीन मानिए प्रेम से ज्यादा सुकूनदेह भी। मैं तो सीरियसली इस कोटि के काव्य हेतु एक नया ब्लॉग चालू करने की सोच रहा हूं। क्या कहते हो इरफान बाबू। फिलहाल ये रिया सेर :
बैतूलखला से री की तरन्नुम सी आ रही
शायद कोई हसीना पेचिश में मुब्तिला है
(एक झोंक में ब्लॉग भी बन सा गया, www.havahavai.blogspot.com पे भी आयें साहेबान.)
बाकी जिस तरह का कोल्ड शोल्डर भाई लोग इस कोटि के शेरों को दे रहे हैं बन्दे के दिल में तमाम तरह के गलत सलत खयालातों का उठना लाज़िमी है। हो सकता है यह आखिरी फुस्कारा शेर हो यहां। वैसे इस तरह के शेर कभी खत्म नहीं हो सकते क्योंकि वैज्ञानिक शोध बतलाते हैं कि एक मनुष्य (यदि जीवित हो तो) दिन में औसतन चौदह बार नैसर्गिक वायु विसर्जन करता है। मरने के बाद भी आदमी की देह से एक बार वायु बाहर आती है। यह प्रक्रिया प्रेम से भी ज्यादा नैसर्गिक है और यकीन मानिए प्रेम से ज्यादा सुकूनदेह भी। मैं तो सीरियसली इस कोटि के काव्य हेतु एक नया ब्लॉग चालू करने की सोच रहा हूं। क्या कहते हो इरफान बाबू। फिलहाल ये रिया सेर :
बैतूलखला से री की तरन्नुम सी आ रही
शायद कोई हसीना पेचिश में मुब्तिला है
(एक झोंक में ब्लॉग भी बन सा गया, www.havahavai.blogspot.com पे भी आयें साहेबान.)
Sunday, 4 November 2007
इक दिन
Thursday, 1 November 2007
दो शेरों को अलग करने के लिये

चटनी के सैम बुधराम
विमल भाई ने आज ये दो गाने जारी कर के कमाल कर दिया. मेरे दिमाग़ में इस शाम बस यही बज रहे हैं.
मैंने सोचा कि ये दोनों गानें आप तक कम समय में और लड़ते हुए फट पहुंच जाएं.
तो लीजिये भाई रोहित की कारीगरी और मेरी बददिमाग़ी का लुत्फ़ उठाइये.
ये उलझे हुए शेर ख़ास तौर पर उन लोगों के लिये जिन्हें ठुमरी पर ये सुलझे गाने सुनने की तौफ़ीक़ न हुई.
सुलझाने के लिये यहां जाएं.
Tuesday, 30 October 2007
बंगाली उर्दू की सायरी
गीला कोरता हूँ ना शूखा कोरता हूँ
तुम शाला मोत रोहो ये ही दूआ कोरता हूँ।
(keywords: गीला, शूखा , शाला मोत, कोरता। थैँकू शर लोगो।
तुम शाला मोत रोहो ये ही दूआ कोरता हूँ।
(keywords: गीला, शूखा , शाला मोत, कोरता। थैँकू शर लोगो।
Sunday, 28 October 2007
ट्रक ड्राइवरों के नाम
चलती है गाड़ी उड़ती है धूल
जलते हैं दुश्मन खिलते हैं फूल
14 का फूल 45 का माला
बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला
(गाड़ी के नंबर के हिसाब से लिखा जाता है, यानी इस मामले में 1445 नंबर का ट्रक)
टाटा में जन्मी
राँची में सिंगार हुआ
धनबाद से लदके चली
ड्राइवर से प्यार हुआ
(टाटा का ट्रक इंजन जिसकी बॉडी राँची में तैयार हुई और उसके बाद छपरा के ड्राइवर के प्यार में गिरफ्तार हुई)
मालिक तो अच्छा इंसान है
मगर चमचों से परेशान है
(ट्रक मालिक के दोस्तों चमचों के नाम ड्राइवर का संदेश)
मालिक की बीवी धनवंती
मालिक की गाड़ी बसंती
जलता है इराक़ का पानी
ड्राइवर का पसीना और खून
तब रोटी मिलती है दो जून
(एक श्रमजीवी ड्राइवर का बयान)
जलते हैं दुश्मन खिलते हैं फूल
14 का फूल 45 का माला
बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला
(गाड़ी के नंबर के हिसाब से लिखा जाता है, यानी इस मामले में 1445 नंबर का ट्रक)
टाटा में जन्मी
राँची में सिंगार हुआ
धनबाद से लदके चली
ड्राइवर से प्यार हुआ
(टाटा का ट्रक इंजन जिसकी बॉडी राँची में तैयार हुई और उसके बाद छपरा के ड्राइवर के प्यार में गिरफ्तार हुई)
मालिक तो अच्छा इंसान है
मगर चमचों से परेशान है
(ट्रक मालिक के दोस्तों चमचों के नाम ड्राइवर का संदेश)
मालिक की बीवी धनवंती
मालिक की गाड़ी बसंती
जलता है इराक़ का पानी
ड्राइवर का पसीना और खून
तब रोटी मिलती है दो जून
(एक श्रमजीवी ड्राइवर का बयान)
हमने तो उनकी याद में ज़िंदगी गुज़ार दी,
Saturday, 27 October 2007
वे din
मेरी आंखों से दो बूंद आंसू जो टपके
उसने परखनली में लिया टेस्ट कर लिया ।
यह शेर कभी केमेस्टरी लैब की दीवार के साए में लिखा गया था )
उसने परखनली में लिया टेस्ट कर लिया ।
यह शेर कभी केमेस्टरी लैब की दीवार के साए में लिखा गया था )
Friday, 26 October 2007
Soliloqui
mere sheron me numaya hai ek mukhtalif si VARIETY,
kahan main aur kahan ye blogiyon ki MUTUAL ADMIRATION SOCIETY!!
kahan main aur kahan ye blogiyon ki MUTUAL ADMIRATION SOCIETY!!
Thursday, 25 October 2007
मूंछ के बाल काले और सर के बाल सफ़ेद
जब मैंने सस्ता शेर शुरू किया तो मैंने सबसे पहला आमंत्रण विमल भाई को भेजा.अभी तक जानी हुई दुनिया में विमल भाई ही वो व्यक्ति हैं जिनके साथ मेरी ज़िंदगी के ठहाकों का अस्सी प्रतिशत हिस्सा जुड़ा हुआ है.

.तेइस साल पुरानी एक फ़ोटो: बाएं विमल भाई और दाएं मेरा ठहाका
दैनिक जीवन से ऐसी स्थितियों को observe कर लेने की ऐसी extraordinary नज़र फिर मुझे सिर्फ़ राजदीप रंधावा में मिली जो कि आजकल जयपुर के एक एफ़एम रेडियो का ज़िम्मा संभाल रहे हैं. बहरहाल. मैं कई दिनों से ये सोचने में लगा था कि क्या समय के डंडों ने उनकी पुरानी धूल झाड़ डाली है...तभी याद आया पुरनियों का वो मुहावरा चोर चोरी से जाये हेराफेरी से न जाये . तो मैंने उनकी हेराफेरी तलाशना शुरू की. सस्ता शेर की शुरुआत में उन्होंने जो शेर भेजे हैं उनसे मुझे यक़ीन हो गया है कि शेर अभी बूढ़ा नहीं हुआ है. सस्ता शेर में मैंने सात शेरों पर एक लतीफ़े का जो बोनस घोषित किया है वो आइडिया विमल भाई के जग प्रसिद्ध लतीफ़ों को जगह देने का ही है. उन्होंने अभी इस दिशा में खुद क़दम नहीं बढ़ाया है लेकिन हर अपराधी अपने पीछे सूराग़ छोड़ जाता है की तर्ज़ पर आज सुबह मुझे जो सूराग़ मिला उसे पेश कर रहा हूं और इसी के साथ सस्ता शेर में उनसे इस सिलसिले को बढ़ाने की गुज़ारिश कर रहा हू.
नीचे लिखे हिस्से को पूरा पढने के लिये यहां क्लिक करें.
एक बार मै अपने ऑफ़िस की सीढियो से नीचे उतर रहा था तो मेरे एक सीनियर रास्ते में मिल गये, मैने क्या देखा, कि उनकी मूंछ के बाल उनके सर के बालों से कुछ ज़्यादा ही काले नज़र आ रहा थे . मैने इसका राज़ पूछा, तो उन्होने बताया कि मेरी मूंछ की उम्र सर के बालो से सोलह साल कम है, लेकिन ये बताना कि ये कमाल किसी रंग का है, इससे कन्नी काट गये.

.तेइस साल पुरानी एक फ़ोटो: बाएं विमल भाई और दाएं मेरा ठहाका
दैनिक जीवन से ऐसी स्थितियों को observe कर लेने की ऐसी extraordinary नज़र फिर मुझे सिर्फ़ राजदीप रंधावा में मिली जो कि आजकल जयपुर के एक एफ़एम रेडियो का ज़िम्मा संभाल रहे हैं. बहरहाल. मैं कई दिनों से ये सोचने में लगा था कि क्या समय के डंडों ने उनकी पुरानी धूल झाड़ डाली है...तभी याद आया पुरनियों का वो मुहावरा चोर चोरी से जाये हेराफेरी से न जाये . तो मैंने उनकी हेराफेरी तलाशना शुरू की. सस्ता शेर की शुरुआत में उन्होंने जो शेर भेजे हैं उनसे मुझे यक़ीन हो गया है कि शेर अभी बूढ़ा नहीं हुआ है. सस्ता शेर में मैंने सात शेरों पर एक लतीफ़े का जो बोनस घोषित किया है वो आइडिया विमल भाई के जग प्रसिद्ध लतीफ़ों को जगह देने का ही है. उन्होंने अभी इस दिशा में खुद क़दम नहीं बढ़ाया है लेकिन हर अपराधी अपने पीछे सूराग़ छोड़ जाता है की तर्ज़ पर आज सुबह मुझे जो सूराग़ मिला उसे पेश कर रहा हूं और इसी के साथ सस्ता शेर में उनसे इस सिलसिले को बढ़ाने की गुज़ारिश कर रहा हू.
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Wednesday, 24 October 2007
Tuesday, 23 October 2007
Monday, 22 October 2007
Code of conduct(Haryana chapter)
IMLI SE KHATTA NEEMBU , NEEM SE KARELA KADVA
JO NA PEEVE NA PEEN DE AISA YAAR BHADVA!!
JO NA PEEVE NA PEEN DE AISA YAAR BHADVA!!
दारू ख़राब ला के
दारू ख़राब ला के बचाए जो चार सौ
दो टैक्सी में खर्च हुए दो इलाज में
(ज़फर साब से माफ़ी के साथ)
दो टैक्सी में खर्च हुए दो इलाज में
(ज़फर साब से माफ़ी के साथ)
Sunday, 21 October 2007
SANNATE KE ASHAAR
Friday, 19 October 2007
मेरी मौत से कितना फ़ायदा होगा...
Wednesday, 17 October 2007
A AB LAUT CHALEN( O BUDHDHI JEEVI!!)
mar chuka FREUD chala gaya KAMOO,
bhot ho gaya london- paris aao chalen PALAMOO
bhot ho gaya london- paris aao chalen PALAMOO
Tuesday, 16 October 2007
KAFIA & MAFIA
JO KARE HAIN NUKTA CHI BAHOT AUR UTHAVEN HAIN MUDDA KAAFIYE KA,
SAMAJ LEEJO MERI JAAN UNKO TUM MEMBER SHAYRI KE MAFIYE KA !!
SAMAJ LEEJO MERI JAAN UNKO TUM MEMBER SHAYRI KE MAFIYE KA !!
elaan-e-jung
MUJKO YARO MAAF KARNA KI KAAFIYA ZARA TANG HAI,
SHAAYRI KE KHALIFON SE CHUNANCHE AJ MERI JUNG HAI.
Yaar daad bi de diya karo kabhi!!
SHAAYRI KE KHALIFON SE CHUNANCHE AJ MERI JUNG HAI.
Yaar daad bi de diya karo kabhi!!
Sunday, 14 October 2007
मुझे जला देना या
मुझे जला देना या दफना देना ,
मरते समय एक घूंट रम पिला देना /
मै ताजमहल नही मांगता यारो ,
मेरी कब्र पर एक गर्ल्स होस्टल खुलवा देना //
मरते समय एक घूंट रम पिला देना /
मै ताजमहल नही मांगता यारो ,
मेरी कब्र पर एक गर्ल्स होस्टल खुलवा देना //
BAKHAT BAKHAT KI BAAT
RAAM RAAJ ME DOODH MILE AR KISHAN RAAJ ME GHEE,
KALJUG ME MADIRA BHALI JAISE MILE TU PEE.
KALJUG ME MADIRA BHALI JAISE MILE TU PEE.
मुनीश के लिए
मांगे सै ना जिन मिलै़, ना मांगै से रम्म
अपनी दारू पीजिए, बिस्तर परिए धम्म।
(आज के लिए बहुत हो गया)
अपनी दारू पीजिए, बिस्तर परिए धम्म।
(आज के लिए बहुत हो गया)
कतरनें
अशोक पांडे,
टोटली मेरा शेर,
बिक गया माल साहेब
हिंदी साहित्य का सवा सेर
इक डाकू बोला चोर से, मुझे रोक, चोर न बन जाऊं
कवि बोला नामवर से, कहिं फोक लोर न बन जाऊं
कवि बोला नामवर से, कहिं फोक लोर न बन जाऊं
कतरनें
अशोक पांडे,
टोटली मेरा शेर,
नामवर,
मेरी हिंदी महान
टोटल भदेस दुबारा
पाद - ए - मेहबूब ने इक गुलशन पशेमां कर दिया
बन्दा मगर डट्टा रहा खिड़की से बाहर देखता
बन्दा मगर डट्टा रहा खिड़की से बाहर देखता
कतरनें
अशोक पांडे,
टोटली मेरा शेर,
पाद - ए - मेहबूब,
फुस्कारे शेर
टोटल भदेस
पाद - ए - मेहबूब से टुक टेढ़ी न हुई नाक
हैरां हैं मिरी नाक का वो सबर देख के (वास्तविकता)
बो निगह तो ज़रा फेरे, मैं नाक बन्द कर लूं
बिस्कू तो मजा आ रिया है मिरी कबर देख के (ग़ैब)
(इरफान ! ज़रा ग़ैब वाला हिस्सा देख लओ साब और दुरुस्त कल्लो या हटा लओ )
हैरां हैं मिरी नाक का वो सबर देख के (वास्तविकता)
बो निगह तो ज़रा फेरे, मैं नाक बन्द कर लूं
बिस्कू तो मजा आ रिया है मिरी कबर देख के (ग़ैब)
(इरफान ! ज़रा ग़ैब वाला हिस्सा देख लओ साब और दुरुस्त कल्लो या हटा लओ )
कतरनें
अशोक पांडे,
टोटली मेरा शेर,
पाद - ए - मेहबूब,
फुस्कारे शेर
Saturday, 13 October 2007
पारम्परिक कम्यूनिस्टों के लोकगीतों की पहली पंक्तियों से बना शेर
तेरे खेतों में रसिया घुटनों घुटनों पानी (लेनिनवादी)
तेरे खेतों में चाइना गरदन गरदन पानी (माओवादी)
तेरे खेतों में चाइना गरदन गरदन पानी (माओवादी)
मेह्बूब का वादा!!
DEFINING MOMENTS!!
SHAYRI JITNI LIKHO KAM HAI
SHAYRI JITNI LIKHO VO KAM HAI..........
gehrai dekhen--
DARASAL SUKHANVAR KI YE DIMAGI- BALGAM HAI!!
SHAYRI JITNI LIKHO VO KAM HAI..........
gehrai dekhen--
DARASAL SUKHANVAR KI YE DIMAGI- BALGAM HAI!!
Friday, 12 October 2007
Thursday, 11 October 2007
आज के वास्ते जमीलुद्दीन आली का एक आखिरी दोहा
आज भी रोये कोयल बानी, कव्वे मारें तान
आज भी वीर खुले सीने और भांड चलायें बान।
* १९२६ में जन्मे जमीलुद्दीन आली पाकिस्तान के विख्यात कवि हैं। आली ने ज़ुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी से एक दफा चुनाव भी लड़ा था। अलबत्ता उस में वे हार गए थे। एक बेहतरीन गद्यकार के रुप में भी वे काफी नाम कमा चुके हैं और धारदार राजनैतिक व्यंग्य के लिए पाकिस्तान में बहुत लोकप्रिय भी हैं। करीब बीस साल पहले गुलाम अली ने उनकी एक ग़ज़ल गाई थी। तभी मुझे ये दोहे नैनीताल में मेरे परम आदरणीय उस्तादों में एक स्वर्गीय अवस्थी मास्साब ने सुनाये थे। मास्साब को गुलाम अली की गाई उस ग़ज़ल का मतला बहुत पसंद था:
"फिर उस से मिले जिस की खातिर बदनाम हुए, बदनाम हुए।
थे खास बहुत अब तक 'आली' अब आम हुए, अब आम हुए."
आज भी वीर खुले सीने और भांड चलायें बान।
* १९२६ में जन्मे जमीलुद्दीन आली पाकिस्तान के विख्यात कवि हैं। आली ने ज़ुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी से एक दफा चुनाव भी लड़ा था। अलबत्ता उस में वे हार गए थे। एक बेहतरीन गद्यकार के रुप में भी वे काफी नाम कमा चुके हैं और धारदार राजनैतिक व्यंग्य के लिए पाकिस्तान में बहुत लोकप्रिय भी हैं। करीब बीस साल पहले गुलाम अली ने उनकी एक ग़ज़ल गाई थी। तभी मुझे ये दोहे नैनीताल में मेरे परम आदरणीय उस्तादों में एक स्वर्गीय अवस्थी मास्साब ने सुनाये थे। मास्साब को गुलाम अली की गाई उस ग़ज़ल का मतला बहुत पसंद था:
"फिर उस से मिले जिस की खातिर बदनाम हुए, बदनाम हुए।
थे खास बहुत अब तक 'आली' अब आम हुए, अब आम हुए."
जमीलुद्दीन आली का एक और दोहा
बिस उगलें हैं जिनकी जबानें, सड़ गए जिन के नाम
आज भी जब हूँ बरसा बरसे, आय उन्हीं के काम.
आज भी जब हूँ बरसा बरसे, आय उन्हीं के काम.
जमीलुद्दीन आली का एक और दोहा
कविता, शिक्षा, चित्रकला का सौदा रोज़ का खेल
अन्दर मन की आँखें नीची बाहर मूंछ पे तेल।
अन्दर मन की आँखें नीची बाहर मूंछ पे तेल।
जमीलुद्दीन आली का एक दोहा
जिनके पड़ोसी भी नहीं जाने हैं उनके शुभ नाम
लंदन, बंबई, हॉलीवुड में वे सब कविता राम।
लंदन, बंबई, हॉलीवुड में वे सब कविता राम।
बाग्बां की बेटी और उसका आसिक
आसिक कहता है:
" ए बाग्बां की बेटी हमसे हुई क्यों बाग़ी
दो सेब तुझ से मांगे, कच्चे दिए ना दागी।"
बाग्बां की बेटी का उत्तर (क्या मीटर दुरुस्त किये जाने की दरकार रखता है भाईलोगो? सुझाव दें।) :
" ए बादशाह मेरे हम हैं गुलाम तेरे
टहनी पकड़ हिला ले, जितने गिरे वो तेरे।"
" ए बाग्बां की बेटी हमसे हुई क्यों बाग़ी
दो सेब तुझ से मांगे, कच्चे दिए ना दागी।"
बाग्बां की बेटी का उत्तर (क्या मीटर दुरुस्त किये जाने की दरकार रखता है भाईलोगो? सुझाव दें।) :
" ए बादशाह मेरे हम हैं गुलाम तेरे
टहनी पकड़ हिला ले, जितने गिरे वो तेरे।"
Wednesday, 10 October 2007
ASHOK KABAADI KI KHATIR
yahan vahahan ke jaane kahan hum ghooma kiye zamane me
mahol pursukoon paya magar ek tere KABAADKHAANE me!!
mahol pursukoon paya magar ek tere KABAADKHAANE me!!
दो सवालों के जवाब दें : एक मैथ्स का एक समाजशास्त्र का
एक:
एक आशिक एक दिन में जाता उन्नीस मील
तीन आशिक कितने दिन में जायेंगे पच्चीस मील।
दो:
मादर-ए-लैला ने तो ब्याही ना लैला क़ैस से
तुम अगर लैला की माँ होते तो क्या करते, लिखो!
एक आशिक एक दिन में जाता उन्नीस मील
तीन आशिक कितने दिन में जायेंगे पच्चीस मील।
दो:
मादर-ए-लैला ने तो ब्याही ना लैला क़ैस से
तुम अगर लैला की माँ होते तो क्या करते, लिखो!
अब कलम से इजारबंद ही डाल (' सहाफी से')

(कुछ दिन पहले मैंने अपनी कमजोर पड़ रही याददाश्त से इस नज़्म की दो गलतसलत पंक्तियां लिख दीं थीं सस्ता शेर पर। तब से बेचैन था। कल दिन भर सारा घर छान मारा और अपने कबाड़ से ये नज़्म वाली 'पहल' खोज डाली। ज्ञान जी और उर्दू से हिंदी में लिप्यान्तरण करने वाली परवीन खान को आभार के साथ साथियों के लिए पेश है पूरी नज़्म।)
हबीब जालिब की नज़्म
कौम की बेहतरी का छोड़ ख़्याल
फिक्र-ए-तामीर-ए-मुल्क दिल से निकाल
तेरा परचम है तेरा दस्त-ए-सवाल
बेजमीरी का और क्या हो मआल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
तंग कर दे गरीब पे ये ज़मीन
ख़म ही रख आस्तान-ए-ज़र पे ज़बीं
ऐब का दौर है हुनर का नहीं
आज हुस्न-ए-कमाल को है जवाल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
क्यों यहाँ सुब्ह-ए-नौ की बात बात चले
क्यों सितम की सियाह रात ढले
सब बराबर हैं आसमान के तले
सबको राज़ाअत पसंद कह के ताल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
नाम से पेश्तर लगाके अमीर
हर मुसलमान को बना के फकीर
कस्र-ओ-दीवान हो कयाम कयाम पजीर
और खुत्बों में दे उमर की मिसाल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
आमीयत की हम नवाई में
तेरा हम्सर नहीं खुदाई में
बादशाहों की रहनुमाई में
रोज़ इस्लाम का जुलूस निकाल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
लाख होंठों पे दम हमारा हो
और दिल सुबह का सितारा हो
सामने मौत का नज़ारा हो
लिख यही ठीक है मरीज़ का हाल
अब कलम से इजारबंद ही डाल
*सहाफी : पत्रकार
Tuesday, 9 October 2007
इस मुल्क में
Monday, 8 October 2007
अशोक पांडे को सप्रेम.....

मिल गये नेट-कैफ़े में आज जनाब अब्दुर्रहीम खानखाना,
अमा,मिल गये नेट-कैफ़े में आज जनाब अब्दुर्रहीम खानखाना,
देखा के मुस्का रए हैं ओ बी पढ़-पढ के कबाड़खाना

दिल में तुम हो,
नज़र में तुम हो,
सांसों में तुम हो,
यादों में तुम हो,
domex वाले अंकल ठीक ही कहते हैं...किटाणु हर जगह रहते हैं..!!
कतरनें
कहो नितिन,
ये शायरी मेरी नहीं है,
स.म.स. शायरी
प्यार हुआ करे !!
चांद और सूरज
CONFESSIONS
KAMBAKHAT EK KHAAJ HAI SAAYRI JISKO HAME KHUJAANA HAI/
YE BATIYANA IS- US BLOG PE YARO FAKAT BAHANA HAI!!
bolo tara rara tara rara ........
YE BATIYANA IS- US BLOG PE YARO FAKAT BAHANA HAI!!
bolo tara rara tara rara ........
मीडिया के लिए
बहुत साल पहले 'पहल' के किसी अंक में एक पाकिस्तानी शायर (शायद शिकेब जलाली) की नज़्म पढी थी। उसी का मुखड़ा पेश है (बाक़ी याद नहीं है। किसी भाई के पास हो तो कृपा कर के भेजें। नज़्म का शीर्षक था 'सहाफी से' . बाई द वे ,पत्रकार को उर्दू में सहाफी कहा जाता है. ) :
मुल्क की बेहतरी का छोड़ ख़्याल
अब कलम से इजारबन्द ही डाल.
मुल्क की बेहतरी का छोड़ ख़्याल
अब कलम से इजारबन्द ही डाल.
बहुत पुरानी सायरी
काव्यांजलि
मुझे बाथरूम जाना है (माफ़ी चचा)
जीजा मुझे रोके है जो खींचे है मुझे गुस्ल
बाबा मेरे पीछे है भतीजा मिरे आगे।
बाबा मेरे पीछे है भतीजा मिरे आगे।
Sunday, 7 October 2007
' ओल्ड मौंक' मुनीश को उस से भी ओल्ड मौंक का सलाम
कल पी रहे शराब थे होटल के हाल में
अब हाय हाय कर रहे हैं अस्पताल में।
-अकबर इलाहाबादी
अब हाय हाय कर रहे हैं अस्पताल में।
-अकबर इलाहाबादी
जैसे उड़ी जहाज कौ पंछी
सस्ता शेर आज तक लिखा नहीं गया।
इसलिये सारे यारों से माफी के साथ ! ये उम्मीद भी कि उस सबसे सस्ते शेर को हम लोग ही पैदा करेंगे।
अब मैंने कहीं नहीं जाना बाबू साहेब
पहले वही कि
'जंगल में रहता हूँ शेर मत समझना।
मैं तुम्हारा ही हूँ गेर मत समझना।'
ये एंट्री इरफान के नाम :
तोते के पांव आम के कन्धों पे जो पड़े
तोती के आम पक गए पेटी में जो धरे ।
इसलिये सारे यारों से माफी के साथ ! ये उम्मीद भी कि उस सबसे सस्ते शेर को हम लोग ही पैदा करेंगे।
अब मैंने कहीं नहीं जाना बाबू साहेब
पहले वही कि
'जंगल में रहता हूँ शेर मत समझना।
मैं तुम्हारा ही हूँ गेर मत समझना।'
ये एंट्री इरफान के नाम :
तोते के पांव आम के कन्धों पे जो पड़े
तोती के आम पक गए पेटी में जो धरे ।
oonche log oonchi pasand
Bhool nahi pata vo chitvan aj bhi mera chitt,
mera sara kaavya karm hai ussi ke nimitt!
mera sara kaavya karm hai ussi ke nimitt!
Saturday, 6 October 2007
Friday, 5 October 2007
ऋतू बीत ना जाये सावन की
हे अष्ठपुत्री सौभाग्यावती ना सोचो नैहर जावन की
दिल मे उमंग अब भी मेरे, हो भले उमरिया बावन की
अब तो हो सजनी लूप्वती चिन्ता ना किसी के आवन की
सारा आसाढ़ यूं ही बीता ऋतु बीत ना जाये सावन की
दिल मे उमंग अब भी मेरे, हो भले उमरिया बावन की
अब तो हो सजनी लूप्वती चिन्ता ना किसी के आवन की
सारा आसाढ़ यूं ही बीता ऋतु बीत ना जाये सावन की
Wednesday, 3 October 2007
शायरी गुड़गांव की
लो बांध लो नाव इस ठांव ओ बंधु
हमें तो जाना है गुड़गांव बंधु
दिल्ली और गुड़गांव के दरम्यां कोई नदी बहती नहीं
बहोत याद आती है वो लड़की जो मोहल्ले में अब रहती नहीं
हमें तो जाना है गुड़गांव बंधु
दिल्ली और गुड़गांव के दरम्यां कोई नदी बहती नहीं
बहोत याद आती है वो लड़की जो मोहल्ले में अब रहती नहीं
Tuesday, 2 October 2007
उपेक्षित काव्य
धूल धूसरित ट्रक की कमर पर खुदा वो शेर भी एक काव्य है,
किंतु मद में स्वयंभू विद्वता के हो उसकी उपेक्षा ये सहज संभाव्य है
किंतु मद में स्वयंभू विद्वता के हो उसकी उपेक्षा ये सहज संभाव्य है
बहुत मंगल काज है बंधु
बहुत मंगल काज बंधु हमारे ब्लॉग पे हो रहा है
अब चौंक उठेगा ये ज़माना जो पांव पसारे सो रहा है
अब तक तिरस्कृत काव्य को नये सोपान देकर,
बीज उजले भविष्य के हर कॉन्ट्रीब्यूटर बो रहा है
बहुत सुंदर काज बंधु इस ब्लॉग पर हो रहा है
है कोई निर्लज्ज अधम आलोचक?
है कोई निर्लज्ज अधम आलोचक?
...
जो बाट पिटने की जोह रहा है!!
अब चौंक उठेगा ये ज़माना जो पांव पसारे सो रहा है
अब तक तिरस्कृत काव्य को नये सोपान देकर,
बीज उजले भविष्य के हर कॉन्ट्रीब्यूटर बो रहा है
बहुत सुंदर काज बंधु इस ब्लॉग पर हो रहा है
है कोई निर्लज्ज अधम आलोचक?
है कोई निर्लज्ज अधम आलोचक?
...
जो बाट पिटने की जोह रहा है!!
तबला और मैं
मैंने तुझे चाहा अबला समझ कर
मैंने तुझे चाहा अबला समझ कर
मैंने तुझे चाहा अबला समझ कर
...
...
तेरे बाप ने मुझे पीटा तबला समझ कर.
[यह उनके लिए नहीं है]
मैंने तुझे चाहा अबला समझ कर
मैंने तुझे चाहा अबला समझ कर
...
...
तेरे बाप ने मुझे पीटा तबला समझ कर.
[यह उनके लिए नहीं है]
Monday, 1 October 2007
madhu samay
IS diljalon ki mehfil me kuch dillagi bhi jaroori hai'
IS diljalon ki mehfil me kuch dillagi bhi zaroori hai,
madhu premion ka asirvad chahoonga..............
IS diljalon ki mehfil me kuch dillagi bhi zaroori hai
ama RUM chot karti hai seedhi ye WHISKEY to ji hajoori hai!!
IS diljalon ki mehfil me kuch dillagi bhi zaroori hai,
madhu premion ka asirvad chahoonga..............
IS diljalon ki mehfil me kuch dillagi bhi zaroori hai
ama RUM chot karti hai seedhi ye WHISKEY to ji hajoori hai!!
Sunday, 30 September 2007
नॉस्टेल्जिया
तवारीख़ में दफ़्न है अब वो शम्शीर, वो लहू, वो सुल्ताना रजिया,
खोले बैठे हैं बोतल हुम कबसे कि जाने कब आयेगी नमकीन भजिया !!
खोले बैठे हैं बोतल हुम कबसे कि जाने कब आयेगी नमकीन भजिया !!
दर्द
गेंदा, गुलाब, जूही, चंपा-चमेली और केवड़ा
गेंदा, गुलाब, जूही, चंपा-चमेली और केवड़ा
ग़ौर कीजियेगा....
गेंदा, गुलाब, जूही, चंपा-चमेली और केवड़ा
लवली-लवली से दो पेग लगाओ तो भी दुनिया बोले बेवड़ा !!
गेंदा, गुलाब, जूही, चंपा-चमेली और केवड़ा
ग़ौर कीजियेगा....
गेंदा, गुलाब, जूही, चंपा-चमेली और केवड़ा
लवली-लवली से दो पेग लगाओ तो भी दुनिया बोले बेवड़ा !!
नासा की तस्वीरों को भी तुमने नासा

"नासा ने आकाश से खींची थी तस्वीर ,
मानव निर्मित है नहीं, शंका रखी अधीर।
शंका रखी अधीर, ईश ने इसे बनाया,
टापू-टापू जुड़े, राम का सेतु कहाया।
चक्र सुदर्शन घूमा, बोला कथन भला-सा,
नासा की तस्वीरों को भी तुमने नासा।"
-अशोक चक्रधर
तहलकाडाट काम से.
Saturday, 29 September 2007
शिकवा
न तो झूटा ना सच्चा, न ही बुरा या अच्छा
क्यूं मुद्दत से भेजा नहीं तुमने कोई SMS का बच्चा.
(only true diljale will understand)
क्यूं मुद्दत से भेजा नहीं तुमने कोई SMS का बच्चा.
(only true diljale will understand)
आंखों में नहीं चैन, न दिल में करार
Friday, 28 September 2007
मासूम मोहब्बत
उस बेवफ़ा का यारो अंदाज़ है ऐसा जानलेवा
उस बेवफ़ा का यारो अंदाज़ है ऐसा जानलेवा
के अंगूर कहूं मैं उसको
या के विलायती मेवा!!
उस बेवफ़ा का यारो अंदाज़ है ऐसा जानलेवा
के अंगूर कहूं मैं उसको
या के विलायती मेवा!!
देखा जो ब्लॉग आपका
देखा जो ब्लॉग आपका जी बहल गया
देखा जो ब्लॉग आपका जी बहल गया
चलो ये भी अच्छा हुआ...चलो ये भी अच्छा हुआ...
कि तुमने बेच खाई है हया!!
देखा जो ब्लॉग आपका जी बहल गया
चलो ये भी अच्छा हुआ...चलो ये भी अच्छा हुआ...
कि तुमने बेच खाई है हया!!
Thursday, 27 September 2007
क्यों श्रीमान! कैसा है अनुमान ?
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