Thursday, 25 December 2008
ये दिल है, ये जिगर है, ये कलेजा..
Wednesday, 17 December 2008
बुढ़ापे की ग़ज़ल!!
जज़्बात में वो पहले सी शिद्दत नहीं रही
सर में वो इन्तज़ार का सौदा नहीं रहा
दिल पर वो धड़कनों की हुकूमत नहीं रही
पैहम तवाफ़-ए-कूचा-ए-जाना के दिन गये
पैरों में चलने फिरने की ताक़त नहीं रही
कमज़ोरी-ए-निगाह ने संजीदा कर दिया
जलवों से छेड़-छाड़ की आदत नहीं रही
चेहरे की झुर्रियों ने भयानक बना दिया
आईना देखने की भी हिम्मत नहीं रही
अल्लाह जाने मौत कहां मर गई 'ख़ुमार'
अब मुझको ज़िंदगी की ज़रूरत नहीं रही
-- ख़ुमार बाराबंक्वी
Saturday, 29 November 2008
यकीन है इक रोज़ जायेगी जान दिल्ली में...
शिकम में चूहे उछलते थे भूख के मारे,
रकम थि जेब में कम,दोस्तों मैं क्या करता,
लगी जो पाँव में ठोकर, सँवर गयी तक़दीर,
गिरा जो हाथ से तरबूज,जिन्न निकल आया,
जो हो सके ना किसी से करूँ वो काम मैं आका,
बना दूँ तुमको मैनेजर यतीम-खाने का,
पलक झपकते में शायर,शायरा हो जाये,
इबादतें करें मुल्ला, तुम्हें सवाब मिले,
अगर मैं चाहूँ तो अहमक़ को सरफ़राज़ करूँ,
मैं अह्द-ए-पीरि में, बीवी जवान दिलवा दूँ,
ये पकड़ो कुन्जियाँ क़ारूँ के खज़ाने की,
मैं हाथ जोड़ के बोला मकान दिलवा दे,
अजीब वक़्त है बिगड़े हुए हैं सब के दिन,
मकान जो मिलता तो भला तरबूज में क्यूँ रहते हम?
Thursday, 13 November 2008
दुनिया अपने को बहुत सता रेली है...
दुनिया अपने को बहुत सता रेली है,
बात बात पे अपनी हटा रेली है,
जूली माल तो अपना खाती है,
पर सुना है पप्पू को घुमा रेली है,
कितना भी पी लो साला चढती ही नही,
दारू भी डुप्लीकेट आ रेली है,
मटके का माल भर के बोतल में,
मक्डावेल का लेबल आंटी लगा रेली है,
बिना किसी लोचे के फ़टके लगा रेली है,
सूनसान इलाके में कहीं ले जाकर,
अच्छे अच्छों को टपका रेली है,
पाकेटमार को भी मीडिया डाँन बुला रेली है,
अपुन भी सोच रेला है पोलिटिक्स जायन करने का,
काम वोइच पर इज़्ज़त से डबल इन्कम आ रेली है,
सलमा अपुन को बुला रेली है,
"सस्ता" मिले तो बोलना चमाट खायेगा मेरे हाथ से,
आजकल उसे ज़्यादा समझ में आ रेली है.....
Wednesday, 12 November 2008
मुझसे पहले सी मुहब्बत मेरे महबूब न माँग...
Monday, 10 November 2008
सिगरेटिया गज़ल !

Saturday, 8 November 2008
आँखें भीग जाती हैं...
Monday, 3 November 2008
राम युग में दूध मिला !!
राम युग में दूध मिला !
कृष्ण युग में घी !!
कलियुग में दारू मिली !
सोच समझ के पी!!
Saturday, 1 November 2008
रात भर दबा के पी, खुल्लम खुल्ला बार में...
सारा दिन गुजार दिया बस उसी खुमार में,
गम गलत हुआ जरा तो इश्क जागने लगा,
रोज धोखे खा रहे हैं जबकि हम तो प्यार में,
कैश जितना जेब में था, वो तो देकर आ गये,
बाकी जितनी पी गये, वो लिख गई उधार में,
यों चढ़ा नशा कि होश, होश को गंवा गया,
और नींद पी गई उसे बची जो जार में,
वो दिखे तो साथ में लिये थे अपने भाई को,
गुठलियाँ भी साथ आईं, आम के अचार में,
याद की गली से दूर, नींद आये रात भर,
सो गया मैं चैन से चादर बिछा मजार में,
हुआ ज़फ़र के चार दिन की उम्र का हिसाब यूँ,
कटा है एक इश्क में, कटेंगे तीन बार में,
होश की दवाओं में, बहक गये "लेले" भी,
फूल की तलाश थी, अटक गये हैं खार में....
Friday, 31 October 2008
बुढ़ापा मत देना हे राम!
साठ साल की बुढ़िया हो गई है बिल्कुल बेकाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!
आँत भी नकली, दाँत भी नकली आँख पे चढ़ गया चश्मा
काँटा लगा दिखाई ना दे तब्बू और करिश्मा
देख के भागे दूर लड़कियाँ जैसे हूँ सद्दाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!
परियों-सी सुंदरियाँ बोलें बाबा, कहें खटारा
ऊपर राख जमी लेकिन भीतर धधके अंगारा
मन आवारा बंजारा तन हुआ रसीला आम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!
पहले बुढ़िया थी ऐश्वर्या मैं सलमान के जैसा
अब वो टुनटुन जैसी लगती मैं महमूद के जैसा
दिल अब भी मजनूँ जैसा है अंग-अंग गुलफ़ाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!
फ़ैशन टी.वी. वाली छमिया जी हमरा ललचाए
चले 'रैंप' पर मटक-मटक 'कैरेक्टर' फिसला जाए
कैसे जपूँ तुम्हारी माला जी भटके हर शाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!
'व्हिस्की' छूट गई लटकी है 'ग्लूकोज' की बोतल
जी करता 'डिस्को' 'पब' जाऊँ पाँच सितारा होटल
'डांस बार' में बैठूँ चाहे हो जाऊँ बदनाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम।
पाल-पोसकर बड़े किए वो लड़के काम न आए
मुझे बराती बना दिया दुल्हन को खुद ले आए
मैं भी दूल्हा बनूँ खर्च हों चाहे जितने दाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!
उमर पचहत्तर अटल बिहारी को दी तुमने क्वारी
मेरी तो सत्तर है किरपा करिए कृष्ण मुरारी
गोपी अगर दिला दो तो बनवा दूँ तेरा धाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!
रोम-रोम रोमांस भरा है राम न दिल को भाएँ
अस्पताल जाऊँ तो नर्सें हँस-हँस सुई चुभाएँ
कामदेव यमराज खड़े हैं दोनों सीना तान।
बुढ़ापा मत देना हे राम!
लोग पुराना टीव़ी लेकर जाएँ नया ले आएँ
हम टूटी फूटी बुढ़िया को किससे बदलकर लाएँ
'फेयर एंड लवली' छोड़के बैठी रगड़ रही है बाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!
क्लिंटन की तो खूब टनाटन मिलवाई थी जोड़ी
मेरे लिए ना उपरवाले कोई मोनिका छोड़ी
खुशनसीब होता गर मुझ पर भी लगता इल्ज़ाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम!
मेरे संग-संग हुई देश की आज़ादी भी बूढ़ी
जनता पहने बैठी नेताओं के नाम की चूड़ी
अंग्रेज़ों से छूटे अंग्रेज़ी के हुए गुलाम।
बुढ़ापा मत देना हे राम
-डॉ. सुनील जोगी
Wednesday, 22 October 2008
बीवी-नामा...
Monday, 20 October 2008
हिंग्रेज़ी कविता...

Friday, 17 October 2008
इश्क़ में ज़िन्दगी मुहाल न हो...
तेरे जैसा हमारा हाल न हो,
ऐ ख़ुदा इतना पेट भर देना,
फिर कभी ख्वाहिश-ए-रियाल न हो,
वो भी रखता है जेब में कन्घी,
एक भी सर पे जिसके बाल न हो,
इश्क़ उससे कभी नहीं करना,
जेब में जिसके माल-वाल न हो,
उसको तोहफ़े में गालियाँ देना,
जिसकी शादी में श्रीमाल न हो,
बीवीयाँ खुश रहा नहीं करतीं,
खून में जब तक उबाल न हो...

Wednesday, 15 October 2008
हाथों में अब के साल भी पर्चियाँ हज़ारों हैं...
Monday, 13 October 2008
खट्टी कढी औ बैंगन बघारे...
Saturday, 11 October 2008
जी चाहता है...
Friday, 10 October 2008
मुखतलिफ़ अश'आर..
Wednesday, 8 October 2008
बकवास और टोटल टाईमपास...
अम्मी ने मुझे समझाई नहीं,
जब मैनें मिठाई खाई नहीं,
फ़िर हमने इसे क्यूँ पाला है,
जो खाला को मार निकाला है,
ये बात समझ में आई नहीं...
क्यूँ लंबे बाल हैं भालू के,
अम्मी ने मुझे समझाई नहीं...
Monday, 6 October 2008
मुफ़त की रोटियाँ तोड़ो ससुर जी माल वाले हैं...
Saturday, 4 October 2008
फ़ुटकर शे'र...
हर गली हर दीवार पर तेरा नाम है,
हर गली हर दीवार पर तेरा नाम है,
ऊपर लिखा है "चप्पल चोर"
और नीचे 5 रुपये का ईनाम है!
(2)
अगर ताँगे में आना था तो पीछे बैठ जाना था,
तेरे पहलू में बैठा कोचवाँ अच्छा नहीं लगता...
(3)
इश्क़बाजी में जान देने लगा,
और आहटों पे कान देने लगा,
जब से देखी पडोसी की मुर्गी,
मेरा मुर्गा अजान देने लगा..

(4)
महफ़िल में इस खयाल से आ गया हूँ मैं,
शायद मुझे निकाल कर कुछ खा रहे हों आप..
(5)
गुनगुनाता नाचता गाता हुआ दरकार है,
दिल को बहलाने की खातिर झुनझुना दरकार है,
इक सहेली दूसरी से हँस के बोली एक दिन,
जिस को शौहर कह सकूँ वो मसखरा दरकार है...
(6)
भैंस की दुम बेसबब नहीं गालिब,
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है !

Wednesday, 1 October 2008
तुम्हारी भूख की खातिर मुझी पर क्यूँ अजाब आये?

फ़िट्टे उस मुँह से लेता है मेरी बेटी का तू जो नाम,
दुआ है खाक उस मुँह में तेरे भी बेहिसाब आये,
हिफ़ाज़त अब मेरे ईमान की मालिक ही करे लोगों!,
की फ़रमाइश थी ज़मज़म की वो लेकर के शराब आये,
जमीं पर गंद फैली थी पर वो पहने जुराब आये,
कि पीरी में भी बुड्ढे पर बहार आये शबाब आये,
शराफ़त है कहाँ की ये कि तोहफ़े में खिजाब आये,
तुम्हारी भूख की खातिर मुझी पर क्यूँ अजाब आये?
मेरे दुशमन की हर मुर्गी ने सोने के दिये अंडे,
मेरी मुर्गी से आये जो सभी अंडे खराब आये,
तेरी किस्मत में ऐ "सस्ते" न जाने कब क़बाब आये...
Monday, 29 September 2008
घर पे आये वो बाँधने राखी...
Saturday, 27 September 2008
शादी के जो अफ़साने हैं रंगीन बहुत हैं...
Thursday, 25 September 2008
नक़्श फ़रियादी है किसकी शोखी-ए-तहरीर का...
आशिक़ी इक मारिका है परतवे-तदबीर का,
देग चूल्हे पे चढा है मार है कफ़गीर का,
उनके डैडी ने भी आखिर फ़ैसला कर ही दिया,
मेरे उनके दरमियाँ दीवार की तामीर का,
मुस्करा कर ही फेर देते हैं गले पर छुरी,
नाम तक लेते नहीं हैं तस्मिया तक्बीर का,
उनके भाई माहिर-ए-जूडो कराटे हो गये,
आशिक़ी अब हश्र क्या होगा तेरी तदबीर का,
शायरी करते हैं लेकिन बहर् से हैं दूर दूर,
एक मिसरा तीर का तो दूसरा है मीर का,
चार टुकडों के लिये हम घर से बेघर हो गये,
नक़्श फ़रियादी है किसकी शोखी-ए-तहरीर का,
उनके दूल्हे से भी हम ने दोस्ती कर ली मगर,
फ़ायदा कुछ भी हुआ न हम को इस तदबीर का..
Tuesday, 23 September 2008
क्यूँ नहीं देते ?
(1)
है ख्वाहिश अगर चप्पल की तो दिला क्यूँ नहीं देते,
बेगम को मुसीबत से बचा क्यूँ नहीं लेते,
पूछे अगर कोई मोची नाप पावों की,
पीठ पर जो नक़्श है दिखा क्यूँ नहीं देते...
(२)
औलाद को धन्धे पे लगा क्यूँ नहीं देते,
बुक हाथ में चंदे की थमा क्यूँ नहीं देते,
लुच्चा है, लफंगा है, अगर आप का बेटा,
बस्ती का उसे लीडर बना क्यूँ नहीं देते...
Saturday, 20 September 2008
बढ रहा है क़ौम के बच्चों में ज़ौक-ए-शायरी,
गोया शायरी हर फ़र्द पर एक फ़र्ज़ है,
रहा यही आलम तो हर बच्चा पैदाइश के बाद,
साँस लेते ही पुकारेगा- "मत्ला अर्ज़ है" !
(2)
ये मुझको खबर है कि नहीं मुझमें कोई गुन,
लेकर के यहाँ आया हूँ मैं आज नई धुन,
तू अपनी गज़ल पढ के खिसकता है किधर को,
मैंने तो तुझे सुन लिया अब तू भी मुझे सुन...
(3)
शे'र अच्छा है,फ़न अच्छा है,क़माल अच्छा है,
देखना सब ये कहेंगे के खयाल अच्छा है,
दोस्तों आप को सुनाऊँगा नये शे'र अभी,
वो अलग बाँध के रक्खा है जो माल अच्छा है...
Monday, 15 September 2008
क़सम से पटाने को जी चाहता है....
पुरानी जलाने को जी चाहता है,
मियाँजी क भारी हुआ है प्रमोशन,
सो पैसे उड़ाने को जी चाहता है,
जो बातें सुनी थीं पड़ोसन के घर में,
वो बातें बताने को जी चाहता है ,
सुना है बड़ा खूबरू है पड़ोसी,
क़सम से पटाने को जी चाहता है,
ये हलवा जो मैने पकाया है मुझको,
उसे भी खिलाने को जी चाहता है,
बनी जब से सौतन, सहेली हमारी,
कहीं भाग जाने को जी चाहता है ,
बड़े मूड में आज आया है ज़ालिम!
उसे तड़पाने को जी चाहता है,
सुना कर उसे अपनी गज़लें धड़ाधड़,
मुसल्सल पकाने को जी चाहता है,
मुझे जितना उसने सताया है उतना,
उसे भी सताने को जी चाहता है ...
Saturday, 13 September 2008
दिलजलों की शायरी
(1)
तू पहले ही है पिटा हुआ, ऊपर से दिल नाशाद न कर,
हो गई ज़मानत तो जाने दे, वो जेल के दिन अब याद ना कर,
तू उठ के रात को 12 बजे ,विह्स्की रम की फ़रियाद ना कर,
तेरी लुटिया डूब चुकी है , ऐ इश्क़ मुझे बर्बाद न कर....
(२)
खा के क़स्में प्यार की आए यहाँ,
गर्दिशों में पेंच ढीले हो गये,
ढूँढते हम फिर रहे हैं नौकरी,
और उनके हाथ पीले हो गये !!!
(३)
नंबर वाला पहन लिया चश्मा,
अब बड़ों में शुमार हमारा है,
आँखों में जो बसी थी कभी,
उसने भी अंकल कह के पुकारा है!
(४)
लड़की कहाँ से लाऊँ मै शादी के वास्ते,
शायद के इसमें मेरे मुक़द्दर् क दोष है,
अज़रा,नसीम,सना ओ सबा भी गईं,
एक शमा रह गई है सो वो भी खामोश है !
(५)
6 महीने ही में ये हाल हुआ शादी के,
साल तो दूर है फिर कभी ख्वाबों में मिलें,
इस तरह रक्खा है बेगम ने मुझे घर में,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें..
Thursday, 11 September 2008
जिस क़दर जूते पड़ें आराम है !
आशिक़ी बे-गैरती का नाम है,
खूब हैं आँखें तेरी छोटी-बड़ी,
एक है अखरोट इक बादाम है,
इश्क़ के मिस्कीं जूते खाये जा,
बाद हर तकलीफ़ के आराम है,
उफ़ मेरी लैला का मुझसे पूछ्ना,
कहिये मजनू आप ही का नाम है?
Wednesday, 10 September 2008
चाँद औरों पर मरेगा क्या करेगी चाँदनी?
प्यार में पंगा करेगा क्या करेगी चाँदनी,
चाँद से हैं खूबसूरत भूख में दो रोटियाँ,
कोई बच्चा जब मरेगा क्या करेगी चाँदनी,
डिग्रियाँ हैं बैग में पर जेब में पैसे नहीं,
नौजवाँ फ़ाँके करेगा क्या करेगी चाँदनी,
जो बचा था खून वो तो सब सियासत पी गई,
खुदकुशी खटमल करेगा क्या करेगी चाँदनी,
दे रहे चालीस चैनल नंगई आकाश में,
चाँद इसमें क्या करेगा क्या करेगी चाँदनी,
साँड है पंचायती ये मत कहो नेता इसे,
देश को पूरा चरेगा क्या करेगी चाँदनी,
एक बुलबुल कर रही है आशिक़ी सय्याद से,
शर्म से माली मरेगा क्या करेगी चाँदनी,
लाख तुम फ़सलें उगा लो एकता की देश में,
इसको जब नेता चरेगा क्या करेगी चाँदनी,
ईश्वर ने सब दिया पर आज का ये आदमी,
शुक्रिया तक ना करेगा क्या करेगी चाँदनी,
गौर से देखा तो पाया प्रेमिका के मूँछ थी,
अब ये "हुल्लड़" क्या करेगा, क्या करेगी चाँदनी....
Tuesday, 9 September 2008
खटमल हैं चारपाई में !
नींद यूँ भी कहाँ जुदाई में,
उस पे खटमल हैं चारपाई में,
सामने आऐं तो दुल्हन बन कर,
जान दे दूँगा मुँह दिखाई में,
खुश हुईं उनकी माँ भी अब क्या है,
उँगलियाँ घी में हैं सर कढाई में,
नहीं चेचक के दाग उस रुख पर,
मक्खियाँ लिपटी हैं मिठाई में...
Monday, 8 September 2008
ख़लीफ़ा बब्बर की खोपड़ी
दर्शकों का नया जत्था आया
गाइड ने उत्साह से बताया—
ये नायाब चीज़ों का
अजायबघर है,
कहीं परिन्दे की चोंच है
कहीं पर है।
ये देखिए
ये संगमरमर की शिला
एक बहुत पुरानी क़बर की है,
और इस पर जो बड़ी-सी
खोपड़ी रखी है न,
ख़लीफा बब्बर की है।
तभी एक दर्शक ने पूछा—
और ये जो
छोटी खोपड़ी रखी है
ये किनकी है ?
गाइड बोला—
है तो ये भी ख़लीफ़ा बब्बर की
पर उनके बचपन की है।
धूम से सूली चढाना याद है!
पेशे-ख़िदमत है हुसैनी खांडवी साहब की एक गज़ल, जिसमें वो अपना और हमारे शादी-शुदा पाठकों का हाले-दिल बयाँ कर रहे हैं-
आज तक वो बैण्ड-बाजे शामियाना याद है,
खुद को इतनी धूम से सूली चढाना याद है,
तीन मौके भी दिये थे काज़ी ने गौर-ओ -फ़िक्र के,
आज तक वो कीमती मौके गँवाना याद है,
घर जिसे लाये थे हम रोटी पकाने के लिये,
अब पकाती है हमें उसका पकाना याद है,
ना सिलाई जानती है ना कुकिंग मालूम है,
हाँ उसे शौहर को उँगली पर नचाना याद है,
उसकी हर इक बात पर कहना ही पड़ता है "बज़ा"
इस तरह उसका हमें बरसों बजाना याद है
मानते हैं हम "हुसैनी" हादिसा होगा शदीद,
क्यों कि तुमको वाक़या इतना पुराना याद है
-हुसैनी खांडवी
Saturday, 6 September 2008
मुश्किल है अपना मेल प्रिये..
प्रस्तुत है सस्ता शेर की अब तक की सबसे ज़्यादा शब्द संख्या वाला पोस्ट। ये गीत मेरे पास रोमन लिपि में था,पर इसे देवनागरी में टंकित करने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। आज पहली बार देवनागरी में मिला, सो जैसे का तैसा चस्पा कर रहा हूँ. आशा है आपको मज़ा आयेगा-
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम एम ए फ़र्स्ट डिवीज़न हो, मैं हुआ मैट्रिक फेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम फ़ौजी अफ़सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम राबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सप्रेटा हूँ,
तुम ए. सी. घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेटा हूँ,
तुम नई मारुति लगती हो, मैं स्कूटेर लंबरेटा हूँ,
इस कदर अगर हम चुप-चुप कर आपस मे प्रेम बढ़ाएँगे,
तो एक रोज़ तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जाएँगे,
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये,
तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखो की हड़ताल प्रिये,
तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो, मैं almuniam का थाल प्रिये,
तुम चिक्केन-सूप बिरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये,
तुम हिरण-चौकरी भरती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये,
तुम चंदन वन की लकड़ी हो, मैं हूँ बबूल की छाल प्रिये,
मैं पके आम सा लटका हूँ, मत मारो मुझे गुलेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
मैं शनी-देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कन्चन काया हो,
मैं तन से मन से कांशी राम, तुम महा चंचला माया हो,
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ,
तुम राज घाट का शांति मार्च, मैं हिंदू-मुस्लिम दंगा हूँ,
तुम हो पूनम का ताजमहल, मैं काली गुफ़ा अजन्ता की,
तुम हो वरदान विधता का, मैं ग़लती हूँ भगवांता की,
तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलम-ठेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम नई विदेशी मिक्सी हो, मैं पत्थर का सिलबट्टा हूँ,
तुम ए के-सैंतालीस जैसी, मैं तो इक देसी कट्टा हूँ,
तुम चतुर राबड़ी देवी सी, मैं भोला-भाला लालू हूँ,
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मैं चिड़ियाघर का भालू हूँ,
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वी. पी. सिंह सा ख़ाली हूँ,
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं पुलिसमैन की गाली हूँ,
कल जेल अगर हो जाए तो दिलवा देना तुम बेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितारा होटल हो,
मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम रेड-लेबल की बोतल हो,
तुम चित्र-हार का मधुर गीत, मैं कृषि-दर्शन की झाड़ी हूँ,
तुम विश्व-सुंदरी सी कमाल, मैं तेलिया छाप कबाड़ी हूँ,
तुम सोने का मोबाइल हो, मैं टेलीफ़ोन वाला हूँ चोँगा,
तुम मछली मानसरोवर की, मैं सागर तट का हूँ घोंघा,
दस मंज़िल से गिर जाऊँगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्ष की लाचारी हूँ,
तुम हो ममता-जयललिता जैसी, मैं क्वारा अटल-बिहारी हूँ,
तुम तेंदुलकर का शतक प्रिये, मैं फॉलो-ओन की पारी हूँ,
तुम getz, matiz, corolla हो मैं Leyland की लॉरी हूँ,
मुझको रेफ़री ही रेहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये,
मैं सोच रहा की रहे हैं कब से, श्रोता मुझको झेल प्रिये,
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये...
शायरों की शहर में किल्लत नहीं रही!
हाथों में लड़ने-भिड़ने की ताकत नहीं रही,
थाने कि एक पिटाई ने सन्जीदा कर दिया,
जलवों से छेड़छाड़ की आदत नहीं रही,
हमको वतन से दूर किया रोज़गार ने,
दामने-यार से कोई निस्बत नहीं रही,
पानी नहीं है घर में कई दिन से ऐ खुदा,
आईना देखने की भी हिम्मत नहीं रही,
मजबूर कर दिया है गरीबी ने इस क़दर,
सिगरेट-ओ-पान की कोई आदत नहीं रही,
होते हैं सामयीन तो मुश्किल से दस्तयाब,
पर शायरों की शहर में किल्लत नहीं रही,
ऊल्लू हमारे पहले से सीधे हैं "माहताब" ,
ऊल्लू को सीधा करने की ज़हमत नहीं रही...
Thursday, 4 September 2008
गर्दिश-ए-अय्याम....
ये शे'र विजयशंकर चतुर्वेदी जी के एक पोस्ट से प्रेरित हैं, पर उनके स्कूल आँफ़ थाट्स से सरोकार रखने वाले लोग इसके रिक्त स्थानों की पूर्ति ना करें :) । बाकी सब लोग कोशिश कर सकते हैं-
हर सुबह, हर शाम की माँ ____ के रख दी,
तुमने तो गर्दिश-ए-अय्याम की माँ ____के रख दी,
ठर्रा भी पिलाया मुझे व्हिस्की भी पिलाई,
साकी ने तो मेरे जाम की माँ ____ के रख दी...
खुली छोड़ देते हैं .........
वैधानिक चेतावनी : अनुरोध है कि इस कविता को मेरी सम्पूर्ण नारी जाति के प्रति भावनाओं से न जोड़ा जाये ।
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एक शराबी भैंस से टकरा के बोला हम ये बोतल तोड़ देते हैं
बहन जी मुआफ करना हम यह पीना पिलाना छोढ़ देते हैं
और फ़िर एक मोटी सी औरत से टकरा के गुर्रा के बोला
यह साले बाँध कर नहीं रख्ते अपनी भैंसें खुली छोढ़ देते हैं
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Tuesday, 2 September 2008
बेसिरपैर के शे'र
पेश हैं दुष्यन्त कुमार के चंद बेसिरपैर वाले शे'र, जो कहते हैं कि उन्होंने उज्जैन में होने वाले किसी कवि सम्मेलन में सुनाए थे. चौथे शे'र में इंगित "सुमन" कौन हैं, मुझे नहीं मालूम. अगर आपको मालूम हो तो ज़रूर बताएँ-
याद आता है कि मैं हूँ शंकरन या मंकरन,
आप रुकिये फ़ाइलों में देखकर आता हूँ मैं,
इनका चेहरा है कि हुक्का है कि गोबर गणेश,
किस क़दर संजीदगी,यह सबको समझाता हूँ मैं,
उस नई कविता पर मरती ही नहीं हैं लड़कियां,
इसलिये इस अखाड़े में नित गज़ल गाता हूँ मैं,
ये "सुमन" उज्जैन का है इसमें खुश्बू तक नहीं,
दिल फ़िदा है इसकी बदबू पर क़सम खाता हूँ मैं,
इससे ज़्यादा फितरती इससे हरामी आदमी,
हो न हो दुनिया में पर उज्जैन में पाता हूँ मैं...
Monday, 1 September 2008
वो बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है!
हज अदा करने गया कौम का लीडर,
संगबारी के लिये शैतान् तक जाना पड़ा,
एक कंकड़ फेंकने पर ये सदा आई उसे,
तुम तो अपने आदमी थे तुमको आखिर क्या हुआ?
(2)
पीटा है तेरे बाप ने कुछ इस तरंग से,
टीसें सी उठ रही हैं मेरे अंग अंग से,
फ़रियाद करने पे मेरे कुछ इस तरह कहा,
गिरते हैं शह-सवार ही मैदान-ए-जंग में!
(3)
इंडस्ट्रियाँ सारी मेरे यार खा गये,
मेरी सारी जायदाद रिश्तेदार खा गये,
मेरे मरने के बाद भी की उन्होंने बेईमानी,
बनाई मज़ार तो मीनार खा गये!
(4)
कब से परदेस में हैं घर की नहीं ली सुध भी,
एक बच्चे की खबर आज भी यार आई है,
उनको परदेस में क़ुदरत ने ये बख्शी इज़्ज़त,
वो बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है!
Saturday, 30 August 2008
हप्ते का हिसाब
तो कल इतवार होगा,
कल इतवार है
तो परसों सोमवार होगा.
( सप्ताह के बाकी दिनों का हिसाब,
खुद ही समझ लें जनाब !
ऊपर लिखा 'सेर' जमे तो चंगा,
नहीं तो काहे मुफ़्त का पंगा !! )
Tuesday, 26 August 2008
हर अदा उसकी...

ऐसे में तज़ुर्बे से गुज़रा हूँ यारों कि मुझे,
जब कहीं बन-सँवर के जाने लगूँ,
सख्त गर्मी में भी नहाने के लिये,
कहाँ छूने की तमन्ना थी और अब ये आलम,
Saturday, 23 August 2008
इश्क़ की मार....

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इश्क़ की मार क्या करें साहिब,
दिल है बीमार क्या करें साहिब,
एक लैला थी एक मजनू था,
अब है भरमार क्या करें साहिब,
जिस ने चाहा उसी ने लूट लिया,
हम थे हक़दार क्या करें साहिब,
उनको मेक-अप ने डुप्लीकेट किया,
ऐसा सिंगार क्या करें साहिब,
पेट तो भूख से परेशान है,
रंग-ओ-गुल्नार क्या करें साहिब,
जिनसे है प्यार की उम्मीद हमें,
वो हैं खूंखार क्या करें साहिब...
Wednesday, 20 August 2008
दुष्यन्त कुमार की सस्ती गज़लें...
हिन्दी गज़लों के माई-बाप कहे जाने वाले श्री दुष्यन्त कुमार ने धर्मयुग के संपादक अपने मित्र धर्मवीर भारती के नाम ये सस्ती गज़लें लिखी थीं, पता नहीं धर्मवीर जी तक ये पहुँचीं थीं या नहीं। देखिये...
पत्थर नहीं हैं आप तो पसीजिए हुज़ूर,
संपादकी का हक़ तो अदा कीजिए हुज़ूर,
अब ज़िन्दगी के साथ ज़माना बदल गया,
पारिश्रमिक भी थोड़ा बदल दीजिए हुज़ूर,
कल मैक़दे में चेक दिखाया था आपका,
वे हँस के बोले इससे ज़हर पीजिए हुज़ूर,
शायर को सौ रुपए तो मिलें जब गज़ल छपे,
हम ज़िन्दा रहें ऐसी जुगत कीजिए हुज़ूर,
लो हक़ की बात की तो उखड़ने लगे हैं आप,
शी! होंठ सिल के बैठ गये ,लीजिए हुज़ूर॥
उपरोक्त गज़ल का संभावित उत्तर, दुष्यन्त जी के ही शब्दों में-
जब आपका गज़ल में हमें ख़त मिला हुज़ूर,
पढ़ते ही यक-ब-यक ये कलेजा हिला हुज़ूर,
ये "धर्मयुग" हमारा नहीं सबका पत्र है,
हम घर के आदमी हैं हमीं से गिला हुज़ूर,
भोपाल इतना महँगा शहर तो नहीं कोई,
महँगी का बाँधते हैं हवा में किला हुज़ूर,
पारिश्रमिक का क्या है बढा देंगे एक दिन,
पर तर्क आपका है बहुत पिलपिला हुज़ूर,
शायर को भूख ने ही किया है यहाँ अज़ीम,
हम तो जमा रहे थे यही सिलसिला हुज़ूर...
Tuesday, 19 August 2008
तेरी गली में....
ये संदेश उन सब के नाम जो अब तक नहीं पटीं,और आगे पटने की संभावना भी नगण्य है :-)
इतने पड़े डंडे अबकी तेरी गली में,
अरमाँ हो गये सब ठंडे तेरी गली में,
हाथ में कंघी है,ज़ुल्फ़ें सँवारते हैं,
गड़ेंगे आशिक़ी के झंडे तेरी गली में,
अब क्या बताएँ ज़ालिम कैसे गुज़रते हैं,
संडे तेरी गली में, मंडे तेरी गली में,
हम ढूंढ लेंगे कोई दीदार का बहाना,
हम बेचा करेंगे अंडे तेरी गली में...
Wednesday, 13 August 2008
शोभना चौरे की शायरी: नमूने देखें
जिसे चाहा वो बेवफा हो गया है|
तुम्हारे लिए तुम्हे ही छोड़ दिया है,
सिर्फ़ अल्फाजो से क्या होता है,
मेने अपने ज़ज्बतो को भी छोड़ दिया है|
सवालो के जंगल मे घूमते हुए
जिंदगी खो देते हम,
जवाबो की चाहत मे शातिर हो बैठे हम
ये कहना आसान है,
बंदे मासूम है आप
इस मासूमियत मे,
अपनी काबिलियत गवा बैठे हम|
Tuesday, 12 August 2008
आँखें...

विनय शर्मा की एक सस्ती ग़ज़ल
है लेकिन ये एकदम खस्ता
इसकी ही है चर्चा हरसू
गली-गली औ' रस्ता-रस्ता
टूटा हैं यह कसता-कसता
उजड़ गया है बसता-बसता
उसकी किस्मत-मेरा क्या है
निकला है वो फँसता-फँसता
दुनिया क्यों है रोती रहती
जग है फ़ानी-जोगी हंसता
Friday, 8 August 2008
पेश हैं अनुराग शर्मा के भेजे दो अशआर .
ूओओओओओओओओओओओओओओ
ओओओओओओओओओओओओओओ
ओओओओओओओओओ
ओओओओओओओओओओओओओओओओओओओओ
ओओओओओओओओओओओओओओओओओओ
उल्लू के पट्ठे, हुए हैं इकट्ठे
बिठाने चले हैं, अपने ही भट्टे
हम चमक गए, वो चमका गए
मजूरी ले गए, चूना भी लगा गए.
Thursday, 7 August 2008
आपमें से कितनों ने प्याज का हलवा खाया है?
अध पकी खिचड़ी रखी है शौक़ फ़रमाऐंगे क्या?
तौबा खाली पेट ही दफ़्तर चले जाऐंगे क्या?
चाय में लहसन की बदबू आ गई तो क्या हुआ?
अल्लाह! माँ-बहन पर आप उतर आऐंगे क्या?
दूध में मक्खी ही थी चूहा तो न था ऐ हूज़ूर,
हाथ धो कर आप अब पीछे ही पड़ जाऐंगे क्या?
प्याज का हलवा बना दूँ ऐ ज़रा रुक जाइये,
भूखे रह कर आप मेरी नाक कटवाऐंगे क्या?
Tuesday, 5 August 2008
जिस शख्स को ऊपर से कमाई नहीं होती...
जिस शख्स को ऊपर से कमाई नहीं होती,
सोसाइटी उस की कभी हाई नहीं होती,
करती है वो उसी रोज़ शापिंग का तक़ाज़ा,
जिस रोज़ मेरी ज़ेब में पाई नहीं होती,
पुलिस करा लाती है हर चीज़ बरामद,
उस से भी के जिस ने चुराई नहीं होती,
मक्कारी-ओ-दगा आम है पर इस के अलावा,
सस्ते शायर में कोइ भी बुराई नहीं होती :)
ये शेर आज ही संस्कृति के चार अध्याय में पढ़ा अच्छा लगा सो आप भी सुनें
संस्कृति के चार अध्याय में वैसे तो काफी कविता है पर कुछ अच्छे शेर भी वहां पर हैं जो आनंद देते हैं गद्य के बीच में जब पद्य आता है तो उसका मजा ही अलग होता है और उस पर हम तो ठहरे कविता वाले लोग हम तो हर जगह कविता को ही ढूंढते हैं
तेरी बेइल्मी ने रख ली बेइल्मों की शान
आलिम-फाजिल बेच रहे हैं अपना दीन-ईमान
Saturday, 2 August 2008
मेरी दास्ताने-हसरत...
प्लेटें दे के बहलाया गया हूँ,
न आई पर न आई मेरी बारी,
पुलाव तक बहुत आया-गया हूँ,
कबाब की रकाबी ढून्ढने को,
कई मीलों में दौड़ाया गया हूँ,
ज़ियाफ़त के बहाने दर-हक़ीक़त,
मशक़्क़त के लिये लाया गया हूँ...
Friday, 1 August 2008
नॉन-वेजीटेरियन शायरी
तू टिंडा है तू भिन्डियों की जीत पर यक़ीन कर
कहीं दिखे जो मुर्ग़ तो तू गाड़ आ ज़मीन पर.
... इस के आगे कोरस
(पोस्ट का टाइटिल एक ख़ास सस्ते मकसद से गलत लिखा गया है. क्योंकि सनसनी फैलाने का कॉपीराइट केवल महंगों के पास ही नहीं होता. एक रिक्वेस्ट: इस गीत को आगे ले जाने और पूरा करने की यात्रा में भाजीदार बनें)
अन्दाज़-ए-बयाँ कैसे कैसे...
कुछ रीपीट मार दिया हो तो माफ़ करें...
1. कौन कहता है प्यार में पकड़े जाएँगे,
वक़्त आने पर बहन-भाई बन जाएँगे!
2. मुहब्बत मुझे उन जवानों से है,
जो खाते-पीते घरानों से हैं......
3. दिल तो चाहा था तेरे नाज़ुक होठों को चूम लूँ,
पर तेरी बहती हुई नाक ने इरादा बदल दिया !
4. यूँ लड़कियों से दोस्ती अच्छी नहीं "फ़राज़",
बच्चा तेरा जवान है कुछ तो ख्याल कर !
5. लोग रात कहते हैं ज़ुल्फ़ों को तेरी,
तू सर मुँड़ा ले तो सवेरा हो जाये...
6. सुना है सनम के कमर ही नहीं,
खुदा जाने वो नाड़ा कहाँ बाँधते होंगे!
7. यूँ तो तुम्हारे हुस्न का हुक्का बुझ चुका है,
वो तो हम हैं कि मुसल्सल गुड़गुड़ाए जा रहे हैं।
8. मुझको ये नया ज़माना हैरत में डालता है,
जिसका गला दबाओ वो आँखें निकालता है !
9. लड़की वही जो लड़कियों में खेले,
वो क्या जो लौंडों में जाके दण्ड पेले!
और ये सियार-ए-आज़म-
10.हँसती थी हँसाती थी,
देखता था तो मुस्कराती थी,
रोज़ अदाओं से सताती थी,
एक अर्से बाद पता चला,
साली चूतिया बनाती थी!
Thursday, 31 July 2008
घुड़की जो दिखाओ...
ये एक मित्र ने सुनाई थी-
मेरा ये बौस हाय रे मर क्यूँ नहीं जाता,
सर पे खड़ा है सीट पर क्यूँ नहीं जाता,
जब सामने दारू है और हाथ में पत्ते,
तुम पूछते हो कि वो घर क्यूँ नहीं जाता,
फिर लाया इम्तिहान में तू मुर्गी का अन्डा,
ओ बेहया तू डूब के मर क्यूँ नहीं जाता,
दो-चार किलो सौंफ़ तो मैं फ़ाँक चुका हूँ,
दारू का मेरे मुँह से असर क्यूँ नहीं जाता,
झाँका जो एक बार उसकी माँ थी सामने,
उस दिन से मैं अपनी छत पर नहीं जाता,
सीखा है ज़ीस्त से सबक हमने ये यारों,
घुड़की जो दिखाओ तो बन्दर नहीं जाता...
Wednesday, 30 July 2008
श्वान हल्द्वानवी का बासी क़लाम
हम हुए, तुम हुए कि श्वान हुए
सस्ता कहने को ग़ज़लख़्वान हुए
-श्वान हल्द्वानवी
Monday, 28 July 2008
सौंदर्य वर्णन !
एक नारी अपूरब देखि परी कटि है जेंहि की धमधूसर सी,
गज सुन्ड समान बने भुज हैं तामें अन्गुरी लगि मूसर सी,
प्रति अंग में रोम उगे तृन से अरु दीठी बिराजत ऊसर सी,
निसि भादव के सम केस खुले करिया मुख ताड़का दूसर सी..
जब से बेगम ने मुझे मुर्गा बना रक्खा है....
हक़ीम नासिर साहब से माफ़ी की गुज़ारिश के साथ,राम रोटी आलू के उन पाठकों को समर्पित,जो शादी-शुदा हैं (मैं छड़ा होने के नाते इस मज़े से नावाकिफ़ हूँ)-
जब से बेगम ने मुझे मुर्गा बना रक्खा है,
मैनें आँखों की तरह सर भी झुका रक्खा है,
बर्तनों आज मेरे सर पे बरसते क्यूँ हो,
मैनें तुमको तो हमेशा से धुला रक्खा है,
पहले बेलन ने बनाया था मेरे सर पे गूमड़,
और अब चिमटे ने मेरा गाल सजा रक्खा है,
खा जा इस मार को भी हँसकर प्यारे,
बेगम से पिटने में क़ुदरत ने मज़ा रक्खा है..
मुझ से कुत्तों सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
मुझ से कुत्तों सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो कुकुरहाव है हयात
तेरा मुंह है तो ग़म-ए-मुर्ग़ का लफड़ा क्या है
अपने चूरन से है पेटों में भोजन का सवाद
तेरी चांपों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाये तो पड़ोसी की चूं हो जाये
मूं न था मैं ने फ़क़त चाहा था मूं हो जाये
और भी दुम हैं ज़माने में मुझ कुत्ते के सिवा
बोटियां और भी हैं बकरे की रानों के सिवा
मुझ से कुत्तों सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
अनगिनत कुतियों के तारीक-ओ-लतीफ़ाना जिस्म
फ़ैशन-ए-आज-ओ-माज़ी के दुत्कारे हुये
जा-ब-जा भूंकते कूचा-ओ-बाज़ार में तमाम क़िस्म
बोटियां चाबते औ ना कभी नहलाये हुये
जिस्म पकते हुये अमरूद के सड़े कीड़ों से
मिर्च लगती हुई बाज़ार आई हूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी जाहिल है तेरा श्वान मग़र क्या कीजे
और भी दुम हैं ज़माने में मुझ कुत्ते के सिवा
बोटियां और भी हैं बकरे की रानों के सिवा
मुझ से कुत्तों सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
-श्वान हल्द्वानवी
Saturday, 26 July 2008
बम रहने दे!
पोपुलर मेरठी की कलम से-
मैं हूँ जिस हाल में ऐ मेरे सनम रहने दे
तेग़ मत दे मेरे हाथों में क़लम रहने दे
मैं तो शायर हूँ मेरा दिल है बहोत ही नाज़ुक
मैं पटाके ही से मर जाऊँगा, बम रहने दे
महबूब वादा कर के भी आया न दोस्तो
क्या क्या किया न हम ने यहाँ उस के प्यार में
मुर्ग़े चुरा के लाये थे जो चार "पोपुलर""
दो आरज़ू में कट गये, दो इन्तज़ार में"
और एक मुर्गे की कहानी-
जिस दिन हुआ पठान के मुर्ग़े का इन्तक़ाल,
दावत की मौलवी की तब आया उसे ख़याल,
मुर्दार मुर्ग़ की हुई मुल्लाह को जब ख़बर,
सारा बदन सुलग उठा, ग़ालिब हुआ जलाल,
कहने लगे खिलाओगे नरम गोश्त?
तुम को नहीं ज़रा भी शरियत का कुछ ख़याल
मुर्दार ग़ोश्त तो शरियत में है हराम,
जब तक न ज़िबाह कीजिये, होता नहीं हलाल,
फ़तवा जब अपना मौलवी साहब सुना चुके,
झुन्झला के ख़न ने किया तब उन से ये सवाल,
कैसी है आप की ये शरियत बताईये,
बंदे को कर दिया है ख़ुदा से भी बा-कमाल,
अल्लाह जिस को मार दे, हो जाये वो हराम,
बन्दे के हाथ जो मरे, हो जाये वो हलाल...
अब इसे क्या कहेंगे?
"बड़ी अम्मा के मरने पर बड़े किस्से बयाँ निकले,
जहाँ जहाँ क़बर खोदी,वहीं पे अब्बा मियाँ निकले"
स्टाक क्लीयेरेंस
अल्लाह के घर से कुछ गधे फ़रार हो गये
उनमे से कुछ पकडे गये और कुछ अपने यार हो गये ॥
एक और ....
मेरा कुत्ता मुझसे रुठ गया
जाके गंदे नाले मे डुब गया
और डुबते हुये बोला
या अल्लाह अब ये ना सहेंगे
एक ही घर मे दो नही रहेंगे ॥
Friday, 25 July 2008
महाभारत स्टाइल
आर्य पुत्र उठीये अब तक शैय्या पर कैसे है
डार्लींग तुम्हारे पर्स मे चिल्हर पैसे है
सुबह से दुध वाला चिल्ला रहा है
चिल्ला-चिल्ला के हस्तीनापुर का सिहांसन हिला रहा है ॥
दुसरा सीन देखीये जब शादीशुदा लाला भिष्मपितामह की स्टाईल मे मर रहा है !!
मै जा रहा हुँ माते
बंद कर देना मेरे बैंक के चालु खाते ॥
मै दुर्योधन की हैंडराईटींग से डर रहा हुँ॥
शक्कर का व्यापारी हुँ,डाइबिटीज से मर रहा हुँ ॥
Thursday, 24 July 2008
रितेश की एक सस्ती ग़ज़ल
गुलों के भी गुल खिलाते जाइये,
शर्म की चादर उतारें,फेंक दें,
खूब गुलछर्रे उड़ाते जाइये,
शान से चाँदी का जूता मार कर,
काम सब अपने बनाते जाइये,
गर्ज़ हो तो बाप गधे को कहें,
अन्यथा आँखें दिखाते जाइये,
झाँकिये मत खुद गिरेबाँ में कभी,
गैर पर उँगली उठाते जाइये,
दिन नहीं बीड़ा उठाने के रहे,
शौक़ से बीड़ा चबाते जाइये...
आज फिर रिक्त स्थान की पूर्ति करें- अमा बदौलत शेर इलाहाबाद स्कूल का समझते हैं
ऊऊऊऊऊऊऊऊ
ऊऊऊऊऊऊऊन
गूऊऊऊन
ऊऊऊऊऊन
ऊऊऊऊओन
ऊऊऊऊओन
ऊऊऊऊन
नमस्तुभ्यम..........
ऊऊऊऊऊऊऊऊऊम
ऊऊऊऊऊऊऊऊऊओम
रिक्त स्थान की पूर्ति करें---
सरकार ने जिस शख्स को जो काम दिया था
उस शख्स ने उस काम की माँ ----- के रख दी!
Tuesday, 22 July 2008
सस्ते शेर ने एक दुर्घटना टाली
तो पेशे खिदमत है वह गीता सार जो हमने अपने दोस्त से कही !!
हम तो दोस्त है
तुम्हारा गाना बजाना भी झेल जायेंगे
पर गर उन्होने तुम्हे बजा दिया
तो हम सिर्फ़ ताली बजाते रह जायेंगे
Sunday, 20 July 2008
हिन्दी बचाओ
एक युवक का भाषण सुनकर मै हो गया मुग्ध ॥
उसने हवा मे हाथ लहराया और जोरदार आवाज मे फ़रमाया ॥
लेडीस एंड जेंटलमेन इंडिया हमारी कंट्री और हम इसके सिटीजेन ॥
बट आज की यंग जनरेशन वेनएवर माउथ खोलती है ॥
तो ओनली एंड ओनली इंग्लीश बोलती है ॥
हमे इंग्लीश हटाना है हिन्दी फ़ैलाना है
तभी मेरे और भारत मां के सपने होंगे सच
थैंक्यु वेरी मच ,थैंक्यु वेरी मच ॥
Friday, 18 July 2008
अहमद फ़राज़ को श्रद्धांजलि
Sunday, 13 July 2008
Saturday, 12 July 2008
शेर नम्बर ५००
पेश -ऐ- खिदमत है एक शेर यह शेर नम्बर/ पोस्ट नम्बर ५०० है पोस्ट के मुताबिक
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ख़ुद को कर बुलंद इतना,
की हिमालय की चोटी पे जा पहुचे !
और खुदा तुमसे ये पूछे,
अबे गधे अब नीचे उतरेगा कैसे !!
--शैलेन्द्र
Friday, 11 July 2008
सस्ते शेर नहीं मिलते ....
राम खड़े हैं प्रतीक्षा में शबरी के बेर नहीं मिलते
इस मंहगाई के जमाने में सस्ते शेर नहीं मिलते ।
Tuesday, 8 July 2008
तसव्वुरात की परछाइयां
मैं धूल फ़ांक रहा हूं तुम्हारे कूचे में
तुम्हारी टांग मरम्मत से दुखती जाती है
न जाने आज तेरा बाप क्या करने वाला है
सुबह से टुन्न हूं लालटेन बुझती जाती है
कुत्तों के सरदार की सायरी
वो तो हमें नहीं मिली, मगर हम कुत्तों के सरदार हो गए
रदी शेर पर एक और ज़्यादा रद्दी शेर ...
शाहजहाँ से उन की बेगम नाराज लगती है
क्यों कि हर मोहतरमा उन्हें मुमताज़ लगती है।
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Monday, 7 July 2008
रद्दी शेर
सफ़र लम्बा है बहुत, दोस्त बनाते चलो
दिल मिले या ना मिले हाथ मिलाते चलो
कंगलों से नहीं शाहों से बनता है ताजमहल
हो सके तो हर जगह मुमताज बनाते चलो
Sunday, 6 July 2008
शेर गौर फरमाए
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------------------बहार आने से पहले खिजा आ गई,
बहार आने से पहले खिजा आ गई, दो फूल खिलने से पहले बकरी खा गई । ।
--शैलेन्द्र
Monday, 30 June 2008
एक बत्तखिया शेर !
न इश्क हकीकी से और न मजाज़ी से
हमें सरोकार ऐ रिंद फ़क़त बत्तख्बाज़ि से
Saturday, 28 June 2008
मुनीश जी कहा है
मेरे दील के अरमा आँसुओ मे बह गये ॥
हम गली मे थे गली मे रह गये
कमबख्त लाइट चली गयी वक्त पे
जो बात उनसे कहनी थी उनकी मम्मी से कह गये॥
Friday, 27 June 2008
पेश-ऍ-खिदमत है सास-बहू वाला शेर-

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$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$४४४
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& अब लीजिये...
सुना है सास को आज इक बहू ने पीट दिया
तो इस खबर पे ये हंगामा चारसू क्या है
मियाँ से लड़ने झगड़ने के हम नहीं क़ाइल
जो सास को ही न ठोके तो फिर बहू क्या है।
(शायर: दिलावर फ़िगार)
Wednesday, 25 June 2008
छोटी सी ये सीख
गाठबांध ले अपनी छोटी सी ये सीख ॥
हाथी पर शिर्षासन लगा और फ़ोटो खींचा ।
उस फ़ोटो को उल्टा कर और दुनिया को दिखा ॥
Tuesday, 24 June 2008
सस्ती रातें
सस्ते शेर, सस्ती बातें
मंहगें दिन, सस्ती रातें।
इस शेर से पहले, मैं शब्दों के साथ कुछ और लिखने के लिये हाथापाई कर रहा था। थोड़ी सी धीकामुस्ती के बाद शब्दों को जब ठेला तो वो कुछ इस तरह से इकट्ठे हो गये (खाने की टेबल पर लेट पहुँचने वाले सभी मर्दों को समर्पित) -
तुस्सी ग्रेट हो जी,
कोरी एक स्लेट हो जी,
जल्दी से प्लेट लाओ
खाने में लेट हो जी।
Sunday, 22 June 2008
पेले खिदमत है एक उड़ाया हुआ सस्ता शेर
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माथे पे पसीना था सिर पे रेत था
'डार्लिंग' ने फूल फेका गमले समेत था
Friday, 20 June 2008
चंद शब्द चुनकर लाया हूँ
शेर तुम, गजल तुम, गीत और कविता भी तुम
चंद शब्द चुनके लाया था, जाने कहाँ वो हो गये गुम।
कोई आंखों पे गुनगुनाता है, कोई मंदिर में जा सुनाता है
'तरूण' ये सुखनवरों की बस्ती है, यहाँ हर शब्द दिल को भाता है।
चलो तुम मीर बन जाओ, गालिब का तख्ल्लुस मैं ले लूँ
शब्दों के फूल तुम चुनो, और मैं उन से माला बुन लूँ।
ऊपर की इन लाईनों को आज छापने से पहले थोड़ा दुरस्त किया गया है, वैसे ये कई हफ्तों से किसी लावारिस पेपर में लिखी घर के किसी कोने में पड़ी थी, आज नजर गयी तो जैसे इनको भी इनका खोया चांद मिल गया। दुरस्त करने से पहले का ड्राफ्ट वर्जन कुछ ऐसे था -
शेर तुम, गजल तुम, गीत और कविता भी तुम
बहुतों ने करी कोशिश, सीधी ना कर पाये कुत्ते की दुम।
कोई आंखों पे गुनगुनाता है, कोई मंदिर में जा सुनाता है
'तरूण' ये सुखनवरों की बस्ती है, आ तू भी अपना आशियाँ यहाँ बुन।
चलो तुम मीर बन जाओ, गालिब का तख्ल्लुस मैं ले लूँ
सस्ते शेरों की ये दुनिया सही, यहाँ शायर कभी नही होते गुम।
Wednesday, 18 June 2008
कर दिया इज़हार-ए-इश्क
Monday, 16 June 2008
zaraa gaur farmaaye.n
ikhattar bahattar tihattar chauhattar
ikhattar bahattar tihattar chauhattar
pichahattar chhiyattar satattar athattar
Thursday, 12 June 2008
ग़ालिब का एक अवधी अनुवाद
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का .
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इसे अवधी में पढिये-
वस्तर पहिरे कागद केरा, चित्र एक-एक चिल्लाय,
कवने ठगवा अपनी कलम से हमको अइसन दियो बनाय
जूते उतार के .....
आलू, अंडे और टमाटर की बौछार के बाद
हमारे कवि मित्र सुरक्षा का आभास पाते हैं,
मंदिर में होने वाले कवि सम्मेलन में
श्रोता जूते उतार के आते हैं ।
Monday, 9 June 2008
अर्ज़ किया है......
वो मेहरबान भी हुए हमपे तो इस तरह.....
मरहम लगाया ज़ख्म पर खंजर के नोक से
Sunday, 8 June 2008
कमबखत बादल छाए हैं

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आज बारिश का शेर ।।
वाह वाह भाय बादल छाए हैं ।
वाह वाह भाय बादल छाए हैं ।
वाह वाह भाय बादल छाए हैं ।
अबे चुप कमबखत चेक कर
हमने अपने छाते सिलवाए हैं ।
Saturday, 7 June 2008
जिन आंखों पर हैं आशिक
यहां तो बस पार उतरें वही जो इनमें डूब-डूब जायें

क्योंकि
इस बाबत एक नेक सलाह
अपने प्यारे बाबा मीर तकी़ 'मीर' दे गए हैं
आइए देखें-
जिन आंखों पर हैं आशिक उन आंखों के दिखाये!
जुते खो गये
हमने कहा आप शेर शुरु तो किजिये इतने बरसेंगे आप गिन नही पायेंगे ॥
'सस्ता शेर' की पिछली त्रिवेणी पढ़कर यह शेर-

इस प्रकार के शेरों का रचयिता शायद कोई व्यक्ति नहीं बल्कि समाज होता है और इससे उस समाज का इथोस झलकता है. मूल दोहा है- माटी कहे कुम्हार से... आप सब जानते ही हैं. अब इसे पढ़िये....-----------------------------
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कच्छा बोला धोबी से, तू क्यों पीटे मोहि
अगर कहीं मैं फट गया, पिटवाऊंगा तोहि.
Friday, 6 June 2008
SMS वाला शेल
पेले खिदमत है एक SMS वाला शेल
उनके लिए जब हमने भटकना छोड़ दिया,
याद में उनकी जब तडपना छोड़ दिया !!
वो रोये बहुत आ कर तब हमारे पास,
जब हमारे दिल ने धड़कना छोड़ दिया !!
या ले के जाओगे ...
सागर खैयामी साहब का एक नायाब कता ....
गौर फ़रमाइये ...
बोला दुकानदार कि क्या चाहिये तुम्हे
जो भी कहोगे मेरी दुकाँ पर वो पाओगे
मैनें कहा कि कुत्ते के खाने का केक है
बोला यहीं पे खाओगे या ले के जाओगे
Wednesday, 4 June 2008
नियम के प्याले टूट गये
आया कलयुग झूम के यारो ,नियम के प्याले टूट गये ॥
जो रिश्वत देते पकडे गये वो रिश्वत देके छूट गये ॥
Tuesday, 3 June 2008
बहुत ही सस्ता
बहुत ही सस्ता शेर .....किसी ट्रक के पीछे लिखा था
गाड़ी चलाने से पहले हैंडिल देख लेना
...
गाड़ी चलाने से पहले हैंडिल देख लेना
...
लड़की छेड़ने से पहले सैंडिल देख लेना
Monday, 2 June 2008
गोबर की गुणवत्ता

इस वर्ष बोर्ड के पेपर भैस ने खा लिये है अब विद्यार्थियो को गोबर की गुणवत्ता के आधार पे नंबर दिया जायेगा ..
और अंत मे एक सस्ता विज्ञापन ...
उसकी याद मे हम सारी-सारी रात पीते रहे
कलेजा फ़ट कर बाहर आ गया उसे दिन भर सीते रहे
(वर्तनी की गलती अशोक जी के निर्देशानुसार सुधारी गयी है )
Sunday, 1 June 2008
मैंने कब तारीफ़ें की हैं, उनके बांके नैंनों की
देख री, तू पनघट पै जाके मेरा ज़िक्र न छेड़ा कर
क्या मैं जानूं, कैसे हैं वो, किस कूचे में रहते हैं
मैंने कब तारीफ़ें की हैं, उनके बांके नैंनों की
"वो अच्छे ख़ुशपोश जवां हैं" मेरे भय्या कहते हैं
Thursday, 29 May 2008
पेश-ए-खिदमत है एक एसएमएस वाला शेरनुमा कुछ-

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ख्वाब मंजिल थे और मंजिलें ख्वाब थीं, रास्तों से निकलते रहे रास्ते,
जाने किस वास्ते....
जाने किसकी तलाश उनकी आंखों में थी,
आरज़ू के मुसाफिर भटकते रहे,
जितने भी वे चले उतने ही बिछ गए,
राह में फासले...
Monday, 26 May 2008
जेब से पौव्वा निकला
आदम कि शकल मे हौव्वा निकला
हमे जो पिने से रोकते रहे शराब
आज उन्ही के जेब से पौव्वा निकला
Saturday, 24 May 2008
'फिक्र' ददा माफ़ करना
एक बहुत पुराना किस्सा कही सुना था फिक्र दद्दा के बारे मे। बहुत अच्छे शायर थे (है ?)। किसी ने उन्हे कहा की आपका बेटा जो बाहर पढ़ने भेजा हुआ है आज कम पढ़ाई मे कम और इश्क मे ज्यादा मसरूफ है । फिक्र साहिब गए वहाँ पर लड़का नही मिला। उन्हे आईडिया आया और वोह उस लड़की के पीछे हो लिए इस उम्मीद मैं की कभी न कभी तो लड़का इससे मिलने आयेगा । काफी देर पीछा करने पर लड़की को भी कुछ अहसास हुआ की एक बुड्ढा उसका पीछा कर रहा है । मामला कही उल्टा न पड़ जाए यह सोच कर फिर्क ने कुछ इस तरह मामला सुलझाया :-
ऐ फ्राक वाली ये 'फिक्र' नही तेरी फिराक मे !
यह तो ख़ुद है उसकी फिराक मे जो है तेरी फिराक में !!
--शैलेन्द्र
Friday, 23 May 2008
स्टार टी वी के हर दर्शक के दिल का शेर..
कितना भीगे तुम
इतना भिगोया की सब भीग गए।
जो सूखे रह गए , उन्हें पता ही नही चला कि दिल्ली में बारिश भी हुई ,
धोबी, गदहा और धोबिन संबन्धी एक शेर-
तो शेर अर्ज़ है कि ...
धोबी के साथ गदहे भी चल दिये मटककर,
धोबिन बिचारी रोती, पत्थर पे सर पटककर।
Thursday, 22 May 2008
मैथ मैटिक पिटाई
मैने तुझे प्यार किया तेरे बाप ने मुझे पीटा।
Sin theta by cos theta is equal to tan theta
--शैलेन्द्र
हाले गुलिस्ता क्या होगा
एक उल्लु ही काफ़ी है गुलिस्ता खाक करने को "
हर साख पे उल्लु बैठा है अब हाले गुलिस्ता क्या होगा ॥
वो नादान है दोस्तो
मिलेगी नजर तो नजर झुका लेगी
उसे मेरी कब्र पर दिया जलाने को मत कहना
वो नादान है दोस्तो अपना हाथ जला लेगी
ज़िन्दगी की राहें मुश्किल हैं तो क्या हुआ
थोड़ा सा तुम चलो, थोड़ा सा हम ...
फिर रिक्शा कर लेंगे
(आज सुबह मिला एक एस एम एस)
Tuesday, 20 May 2008
Well Played !!!
कोइ बम फ़ट जाये
दीपक सोच-विचार के घर से निकलो भाय ।
ना जाने किस मोड पे कोइ बम फ़ट जाये "
Monday, 19 May 2008
चलो पिच्चर चलें
शेर कहता हु मै !
मुझे नही आता किसी और से सुनो

हाथ उनके उठे थे मदद के लिये ही लेकिन"
साहिल ने उसे सलाम ए अलविदा समझा "
Sunday, 18 May 2008
एक नये शायर की संभावना
एक नये शायर शैलेंद्र यादव सस्ते शेरों का दरवाज़ा खटखटा रहे हैं। बानगी पर नज़र डालिये और कहिये कैसे लगे?
शादी से पहले
तकदीर है मगर किस्मत नही खुलती
ताज तो बनवा दु मगर मुमताज नही मिलती
शादी के बाद
तकदीर तो है मगर किस्मत नही खुलती
ताज तो बनवा दु मगर मुमताज नही मरती
Saturday, 17 May 2008
शक O' शुबहे का शेर
Friday, 16 May 2008
महंगाई के दौर में एक और फुटपाथ पे मिलने वाला सस्ता शेर
Thursday, 15 May 2008
पेल-ए-खिदमत है एक घिसा-पिटा शेर:-
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(पिछली मर्तबा ससुरा ऊपर ही नज़र आ गया था, अबकी गहरे दफ़न किया है)....
तो शेर अर्ज़ है-
अजब तेरी दुनिया, अजब तेरा खेल,
छछूंदर के सर पर चमेली का तेल।
Tuesday, 13 May 2008
महंगाई मार गयी
घर लौट के बहुत रोये मा बाप अकेले मे
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते नही थे मेले मे
सस्ता शेर समंदर है
बाल्टी भर याद रहता है ,मग भर लिख पाता हुँ"
इस महफ़ील मे कँजुस बहुत है लोग ।
तभी तो चुल्लु भर दाद पाता हुँ ।
और अभी मुनिष जी और विजय भाई के लिये खास पेशकश गुरुरब्रह्मा कि तर्ज पर
गुरु "रम "हा ,गुरुर विस्की ,गुरुर "जीन "एश्वरा "
गुरुर साक्षात पेग ब्रह्मा ,तस्मै श्री "बियरे" नमः
भगवान आपको सदा टुन्न रखे "
और अब आखरी है इसे भी झेल लिजिये...
कोइ पत्थर से ना मारे मेरे दिवाने को "
बम से उडा दो साले पैजामे को "
Monday, 12 May 2008
आपको देखकर !!
आपको देखकर !!
फूल खुशबू छोड़ता है !
आपको देखकर !!
हम अपने दिल की क्या कहें !
हज़ारों दिल धड़कते हैं !!
आपको देखकर !!!
Sunday, 11 May 2008
एक पव्वा रम तो है, हरगाम हमन अफ़ोर्ड
पैसे की काहे फिर तुमन दिखलाओ हो तड़ी
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर
लड़कियां हंसती रहीं और चूतिया कटता गया
(आशुतोष उपाध्याय को नैनीताल की खचुवाई हुई स्मृतियों के साथ सादर)
पेश है एक प्रेमीपुंगव का एसएमएस वाला शेर
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एक अजीब-सा मंज़र नज़र आता है
हर एक कतरा समंदर नज़र आता है
कहाँ जाकर बनाऊं मैं घर शीशे का
हर एक हाथ में पत्थर नज़र आता है.
Saturday, 10 May 2008
पैरोडी ..... वो पास रहें या दूर रहें .....
वो मेल करें चाहे न करें हम आस लगाए रहते हैं
इतना तो बता दे कोई हमें, क्या ..........
मेलबॉक्स हमारा खाली है
हम जानते तो है हाय मगर
जब तक नेट कनेक्ट न हो जाए
हम माथा पीटते रहते हैं
Friday, 9 May 2008
तुम्हारा घर जलाना चाहता हूँ .....
अंधेरे को मिटाना चाहता हूँ
तुम्हारा घर जलाना चाहता हूँ
मै अब के साल कुरबानी करूँगा
कोई बकरा चुराना चाहता हूँ
नई बेगम ने ठुकराया है जब से
पुरानी को मनाना चाहता हूँ
और अंत में मेरा सब से पसंदीदा शेर :
मेरा धँधा है कब्रें खोदने का
तुम्हारे काम आना चाहता हूँ
Wednesday, 7 May 2008
दीपक रुपिया राखिये
रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सुन
पानी गये ना उबरै मोती ,मानुष चुन "
पर मुझे लगता है अब इसकी व्याख्या बदल गयी है और इस दोहे को भी modify कर देना चाहिये तो नेकी और पुछ पुछ !!
ये काम हम ही कर देते है मै अपनी कहता हू आप अपनी कहियेगा ...
दीपक रुपिया राखिये बिन रुपिया सब बेकार "
रुपिया बिना ना चिन्हे बॆटा , नेता ,यार "
Monday, 5 May 2008
शेर नंबर 420
गया है । किसी ने सही कहा है अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान "
हमारी तरह शेर पढो ,नाम हो जायेगा "
अँडे टमाटर बरसेंगे खुब
सुबह के नाश्ते का इंतजाम हो जायेगा "
तो शेर अर्ज है भगवान राम तुलसी दास और उनके चेले चपाटो (जिनमे मै भी शामील हूँ)से क्षमा प्रार्थना के साथ....
चित्रकुट के घाट पर भये पँचर के भीड "
तुलसीदास पँचर घीसे हवा भरे रघुवीर
ज़िन्दगी में हमेशा नये लोग मिलेंगे..............
कहीं ज़्यादा तो कहीं कम मिलेंगे
ऐतबार ज़रा सोचकर करना
मुमकिन नहीं, हर जगह तुम्हें हम मिलेंगे
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लोग अपना बना के छोड़ देते हैं
रिश्ता गैरों से जोड़ लेते हैं
हम तो एक फूल भी न तोड़ सके
लोग तो दिल भी तोड़ देते हैं
दहेज मांगोगे तो....
दूध मांगोगे तो खीर देंगे,
दहेज मांगोगे तो चीर देंगे.
Saturday, 3 May 2008
मयखाने का असर
हम बेधडक पेलते जाते है शेर ,हम दाद का इंतजार नही करते "
तो आप सबो के लिये आदाब बजा के लाता हूँ, अपनी औकात पे आता हूँ और फ़रमाता हूँ !!
गर हिम्मत है तो ताज महल को हिला के देख "
नही है तो आ बैठ दो पैग मार "
और ताज महल को हिलता हुआ देख "
Friday, 2 May 2008
अबे देखता क्या है..
पेले खिदमत है यारो शेर मेरे सस्ते
महँगाई के दौर में भी है ये हंसते..
अब तक सस्ती टिप्पणिया ही देता रहता था.. सोचा इस महँगाई के दौर में आप लोगो को थोड़ी राहत तो दे ही दु... कुछ सस्ते शेरो से तो पेले खिदमत है हमारा पहला सस्ता शेर...

"इंसान की शॅक्ल में खड़ा है भालू...
अबे देखता क्या है ये है राम रोटी आलू.."
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इक गीदड़भभकी वाला शेर, इझा आईला!
शेर मर्ज़ किया है के-
अभी देहली में आके हम पूरा इक ड्रम पी जावैंगे,
फिर उगने 'भास्कर' तक पूरा 'हिन्दुस्तान' देखेगा।
-विजय ड्रमसोखवी। (ऋषि अगस्त्य का वंशज हूँ. हाँ!)
इरफ़ान भाई, ५ बोतल पीके ट्राई किया है. कम हो गया है तो बताइए. और २-४ लीटर और जमा लूँ.
आखिर को शेर सस्ता ही निकला. लाहौल विला कुव्वत!
Thursday, 1 May 2008
रवि रतलामी ने भेजी दैनिक भास्कर की कतरन
अभी पिछले ही हफ्ते दैनिक हिंदुस्तान का एक कॉलम सस्ता शेर को समर्पित था और आज भाई रवि रतलामी ने मुझे दैनिक भास्कर की एक कतरन भेजी है जिसका भी एक स्तंभ सस्ता शेर के नाम किया गया है। हमने रवि भाई को आपकी तरफ़ से आभार और अपनी तरफ़ से आमंत्रण भेज दिया है. इन दोनों अख़बारों की तारीफ़ में एक क़सीदा तो काढिये भाई विजयशंकर!
कतरन को ठीक से पढने के लिये कर्सर उस पर ले जाकर डबल क्लिक कीजिये.
अब पेल-ए-खिदमत है 'थ्योरी ऑफ़ मिसेज/मिस. अंडरस्टैंडिंग' का शेर:-
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पिस्टल से आम तोड़ दें, निशाना अचूक था,
पर आ गिरी बटेर, क्या ग़ज़ब का फ्लूक था.
हम समझे थे सड़क पे सिक्का पड़ा हुआ है
नज़दीक जाके देखा, तो बेग़म का थूक था।
-विजय चित्रकूटवी
थियोरी ऑफ रिलेटिविटी का तीसरा शेर

अभी तक आपने थियोरी आफ रिलेटिविटी के दो शेर सुने ।
आइंस्टीन ने थियोरी ऑफ रिलेटिविटी यानी सापेक्षता का सिद्धान्त
किन अवलोकनों के सहारे दिया था, हम नहीं जानते ।
लेकिन थियोरी ऑफ रिलेटिविटी की वैज्ञानिक शायरी करते हुए
'रेडुआई शेर' को मज़ा आ रहा है ।
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मिलो ना तुम तो हम घबराएं, मिलो तो आंख चुराएं ।
मिलो जो तुम तो भी घबराएं तो भी आंख चुराएं ।।
हमें क्या हो गया है ।।
अरे क्या हो गया है ।।
*चित्र साभार : www.artists.org से ।
Wednesday, 30 April 2008
जिनके पास कुछ भी नहीं,उनसे दुनियाँ जलती है
उसपे दुनियाँ हँसती है,
जिसके पास सब कुछ है
उससे दुनियाँ जलती है,
आपके पास हमारी दोस्ती है,
जिसे पाने के लिये पूरी दुनियाँ तरसती है !!
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दिल तो अरमानों से हाउसफ़ुल है !
पूरे होंगे या नहीं, ये डाउटफ़ुल है !!
यूं तो दुनिया में हर चीज़ वन्डरफ़ुल है !
पर ज़िन्दगी, आप जैसे दोस्तों से ही ब्यूटीफ़ुल है !!